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Friday 11 January 2019

व्यवहारिक योग्यता


एक पण्डित जी को नाव से नदी पार करनी थी। कोई और यात्री था नहीं। अकेले पण्डित जी को लेकर चलने में मल्लाह तैयार नहीं हो रहा था। पंडित जी का जाना आवश्यक था। मल्लाह ने कहा- कुछ अतिरिक्त मजदूरी मिले तो चलूँ। पंडित जी ने कहा- उतराई के पैसों के अतिरिक्त तुम्हें बड़े सुन्दर ज्ञान भरे उपदेश भी दूँगा। मल्लाह ने बैठे से बेगार भली वाली बात सोचकर नाव खोली और पंडित जी को उस पर ले चला।
रास्ते में पंडित जी उपदेश करने लगे। उन्होंने मल्लाह से पूछा- तुम कुछ पूजा पाठ जानते हो? उसने उत्तर दिया, नहीं महाराज। पंडित जी बोले- तब तो तुम्हारे जीवन का एक तिहाई भाग व्यर्थ चला गया। पंडित ने फिर पूछा- कुछ पढ़ना लिखना जानते हो? मल्लाह ने कहा- नहीं महाराज। पंडित जी ने कहा- तो तुम्हारे जीवन का एक तिहाई भाग और व्यर्थ चला गया। अब दो तिहाई जीवन व्यर्थ गँवा देने के बाद एक तिहाई ही शेष है, उसका सदुपयोग करो।
पंडित जी का उपदेश चल ही रहा था कि नाव एक चट्टान से टकराकर टूट गई और पंडित जी पानी में डूबने लगे। उन्हें पकड़ते हुए मल्लाह ने पूछा- महाराज तैरना जानते हो? उनने कहा- नहीं मल्लाह उन्हें पीठ पर रखकर पार लगाने लगा और बोला- महाराज! तैरना न जानने के कारण आपका तो पूरा ही जीवन व्यर्थ चला गया होता। उपदेश करना सीखने के साथ-साथ कुछ हाथ पैर चलाना भी सीखना चाहिए था।
केवल दार्शनिक ज्ञान ही पर्याप्त नहीं, मनुष्य को जीवन समस्याओं को सुलझाने की व्यवहारिक योग्यता भी प्राप्त करनी चाहिए।
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