यह क्रांतिकारी देशभक्त चंद्रशेखर आझाद के बाल्यकाल का है. यह प्रसंग उनमे मौजूद देशभक्ती की भावना को दर्शाता है.
आझाद उन दिनो एक विद्यालय मे पढते थे. एक दिन उनकी कक्षा मे आध्यापक नही आए थे. इसलिए समुचा कमरा बच्चो के शोरगुल से गुंज रहा था. बातो बातो मे एक भारतीय छात्र का हाथ पास की कुर्सी पर बैठे एक अंगरेज छात्र को छू गया. गोरे छात्र ने नाराजी दिखाई और उस भारतीय छात्र को कहा , "ब्लैक हिंदूस्थानी, तुम डंकी हो." यह सुनते ही भारतीय छात्र ने भयभीत होकर उससे क्षमा मांगी.
वही पास मे आझाद बैठे थे. उन्हें गोरे छात्र के मुंह से निकली गाली चुभ गई और उसका मुंह तोड देने की इच्छा हुई . किंतु तभी अध्यापक आ गये और सभी छात्र शांत होकर पढने लगे .
आझाद छुट्टी होने तक अपना क्रोध दबाए बैठे रहे .
जैसे ही छुट्टी हुई सभी छात्र बाहर निकलने लगे , आझाद ने उस गोरे छात्र को धक्का देकर निचे गिराया. फिर उससे कहा , "हमारे देश मे रहते हो और हमे ही गाली देते हो. जब हम बडे होंगे तो तुम सब गोरों को अपने देश से बाहर खदेड देंगे. फिर आझाद ने उसके मुंह पर ऐसे घुसे मारे की खुन निकलने लगा . आखिर मे उस गोरे छात्र ने अपने व्यवहार के लिए क्षमा मांगी.
दरअसल अपने अधिकारों की रक्षा के लिए साम , दाम, दंड ,भेद की चाणक्य निती अपनाना भारतीय परंपरा मे है. अतः अवसर आने पर इनका विवेकपूर्ण उपयोग सर्वथा उचित है.
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