रूसो फ्रान्स के महान विद्वान थे. यह कथा उनके बाल्यकाल की है.
रविवार को छुट्टी के दिन बालक रूसो अपने चाचा के यहा जाया करते थे. चाचा का लडका फेंजी रूसो का हमउम्र था. और दोनो मे गहरी मित्रता थी.
रूसो के चाचा का एक कारखाना था. फेंजी ने एक रविवार कारखाने मे जाकर मशिने देखने का प्रस्ताव रखा. रूसो मान गये .
दोनो बच्चे कारखाने पहुच कर मशिने देखने लगे . रूसो का हाथ एक मशीन के पहिए पर था. उस समय फेंजी ने उसी मशीन का पहिया घुमा दिया . इससे रूसो की ऊँगलियाँ पीस गई . खुन का फव्वारा छूट गया . वह दर्द के मारे चिख उठा. यह देख फेंजी ने तात्काल पहिया उल्टा घुमाया. जिससे रूसो की ऊँगलियाँ मशीन से निकली .
फेंजी दौडकर रूसो के पास आया और कातर शब्दों मे उसने कहा , "भैया, चिल्लाओ मत. मेरे पिताजी सुन लेंगे तो मुझे बहुत पिटेंगे."
रूसो ने भी अपना मुंह बलपुर्वक बंद रखा . बहुत देर तक धोने पर रूसो की ऊँगलियों से खुन बहना बंद हुआ . फेंजी ने एक कपडा फाडकर ऊँगलियों पर पट्टी बांध दी.
फेंजी ने चिंता प्रकट की, "भैया , आपके घर के लोग क्या कहेंगे?"
रूसो ने उसे चिंता करने से मना कर दिया.
जब रूसो घर पहुचे तो उनके घरवालो ने पुछा , "बेटा यह चोट कैसे लगी?"
रूसो ने गोलमोल उत्तर दिया , "खेलते वक्त लग गई ."
पुरे चालीस वर्ष तक किसी को इस घटना का पता नही था.
सारांश : किसी की भलाई के उद्देश से बोला गया असत्य न केवल क्षम्य होता है बल्की आदरणीय व प्रशंसनीय होता है.
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