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Sunday, 27 January 2019
Motivation
Motivation
Saturday, 26 January 2019
Motivation
Alfred Nobel
ABOUT a hundred years ago, a man looked at morning newspaper and to his surprise and horror, read his name in the obituary column. The news papers had reported the death of the wrong person by mistake.
His first response was shock. Am I here or there?
When he regained his composure, his second thought was to find out what people had said about him. The obituary reads “Dynamite King dies.” And also "He was the merchant of death.”
This man was the inventor of dynamite and when he read the words “merchant of death,” he asked himself a question, "Is this how l am going to be remembered?"
He got in touch with his feelings and decided that This was not the way he wanted to be remembered.
From that day he started working toward peace. His name was Alfred Nobel and he is remembered today by the great Nobel Prize.
Just as Alfred Nebel get in touch with his feelings and redefined his values; we should step back and do the same.
How would you like to be remembered? Will you be spoken well of? Will you be remembered with love and respect? One should work towards a life worth being mentioned even a thousand years down the future lane.
Thursday, 24 January 2019
देवी
आप समस्त स्नेहिजनो को अंतरंग का स्नेह वन्दन
॥ जय श्री राम ॥
शुभ रात्री
आज मनु को देखने और उसके परिवार से मिलने लड़की वाले पटना के मौर्या होटल में आने वाले थे । मनु ने फ़ोन पर भइया और मंझली भाभी को तैयारी के लिए बोला था। इंजीनियरिंग करने के बाद मनु दिल्ली के बड़े कंपनी में एक साल से जॉब कर रहा था ।
इधर मंझली भाभी और भइया बड़े चिंता में थे क्योंकि भाभी के पास एक अच्छी सी साड़ी और भइया के पास अच्छा से कुर्ता तक न था।
सात साल पहले मंझली भाभी छोटे घर से बेरोजगार मंझले भइया से व्याह कर आईं थीं। बड़े भइया को डॉक्टरी पढ़ाने में पिताजी की छोटी से जमा पूंजी भी ख़त्म हो गयी थी और डॉक्टर बनने के बाद बड़े भइया एक डॉक्टरनी से खुद शादी कर लिए। बड़की भाभी ने परिवार से उनका रिश्ता नाता भी तोड़वा दिया था।
फिर मझले भइया किसी तरह परीक्षा पास कर बड़ा बाबू हो गए । माँ बाप को गाँव मे रखकर पटना में एक कमरे का छोटा सा कमरा लेकर छोटे भाई मनु को पढ़ाने लगे। मनु को कंप्यूटर इंजीनियर बनने का बड़ा शौक था।
ऊपरी आमदनी कुछ थी नहीं। पटना जैसे महँगे शहर में रहने छोटे भाई मनु को कॉलेज और ट्यूशन का पैसा वहन करने और माँ बाप को भी कुछ पैसे भेजने के बाद गृहस्थी की गाड़ी बड़ी मुश्किल से चल रही थी। उनका तीन साल का एक छोटा सा बच्चा भी था।
फिर भी मंझले भईया ने कभी भी उफ्फ तक नहीं की। मंझली भाभी ने तो जैसे अपने शौख और खुशियां को बलिदान कर दिया था मनु की पढ़ाई की खातिर घूमना फिरना और जेवर सोना तो दूर की बात, आज तक एक नई साड़ी तक कि जिद न की। पढ़ने के लिए घर मे जो एक ही कमरा था वो भी दे देतीं और बच्चे से पढ़ाई में कोई बाधा न हो बच्चे को लेकर पड़ोस में चली जाती। खुद और भइया तो कम दूध वाली फीकी चाय पीते ही अपने बच्चे को भी थोड़ा दूध कम देतीं लेकिन मनु को खाने पीने में कोई कमी न होने देतीं।
मनु के बहुत अच्छे रिजल्ट के बाद एक सप्ताह के भीतर इंजिनीरिंग कॉलेज में एडमिशन के लिए पचास हजार रुपये की जरूरत थी कोई उपाय न सूझ रहा था। अंत में बड़े भाई को फ़ोन लगाया गया पर पैसे की कोई कमी ना होने के बाद भी बडी भाभी ने पैसे की कमी का रोना शुरू कर दिया।
अब कल ही एडमिशन का आखिरी दिन था । उसी वक़्त मंझली भाभी ने अपना मंगलसूत्र और शरीर के सारे गहने उतारकर भइया के हाथ में रख दिया और कसम दे दी थी। इसके बाद भी पढ़ाई पूरी होने तक मनु की सारी जिम्मेवारियों को मंझले भाई और भाभी ने उठाया।
बर्षों बाद आज मंझली भाभी और भइया मनुआ के रिश्ते के लिए आए लड़की वालों से इतने बड़े होटल में कैसे और किस हाल मिलेंगे ये सोच ही रहे थे कि अचानक से मनु हाथ में कई पैकेट्स लिए आ गया। सबसे पहले भाई के पैर छूते हुए एक सूट और पैंट निकाला और बोला "जरा पहन कर दिखाइये भइया" फिर भतीजे का सुंदर सा ड्रेस दिया और बोला" तुम्हारी पढ़ाई की सारी जिम्मेवारी मेरी अब तुम मेरे साथ रहकर पढ़ाई करोगे और छुट्टीयो में हम सब एक साथ रहकर खूब मस्ती करेंगे" ये सुनकर वो खुशी से नाचने लगा फिर अंत में मंझली भाभी के छुड़ाकर लाये पुराने गहनों के अलावा कई नए गहने और साड़ियां देकर पैरों में गिरकर बोला " ना मत कहना मंझली भाभी मुझे नही पता देवी कैसी होती है पर वो आपके जैसी ही होती होगी मंझली भाभीमाँ
॥ जय श्री राम ॥
शुभ रात्री
पर्दा
आप समस्त स्नेहीजनो को हमारा स्नेह वन्दन
॥ जय श्री राम ॥
शुभ संध्या
कल्लू को लकड़ी की जरूरत थी । उसके घर उसकी पत्नी और वह दोनों ही रहते थे। कल्लू ने पत्नी से कहा - सुन मै लकड़ी लाने जंगल जा रहा हूँ मै बाहर से दरवाजा लगा जाता हूँ तुम भी अंदर से दरवाजा लगा देना मै शाम तक ही वापस आऊँगा। अगर कोई बीच में दरवाजा खटखटाये तो दरवाजा मत खोलना । और वह जंगल चला गया । तभी रास्ते में उसे याद आया की वह लकड़ी बांधने के लिए रस्सी लाना तो भूल गया । वह रास्ते से वापस घर आया और दरवाजा खटखटाया । उसकी पत्नी ने सोचा ये कौन आ गया मेरे पति तो शाम को आने वाले है उसने दरवाजा नही खोला । कल्लू ने फिर दरवाजा खटखटाया पर दरवाजा नहीं खुला । उसने आवाज लगाई अब भी दरवाजा नही खुला तो उसने गुस्से से दरवाजा तोड़ दिया । उसकी पत्नी को डर के कारण कुछ समझ नही आ रहा था । तभी उसने चोर को सबक सिखाने के लिए डण्डा उठाया और चोर समझ अपने पति को मारने लगी।
आस- पड़ोस के सभी लोग इकठ्ठा हो गए। कुछ लोगो ने कल्लू को उठाया और उसकी पत्नी से पूछा क्यों तुझे खुद का पति नही दिखाई देता । झुम्मक की पत्नी सकुचाई और डंडा हाथ से गिर गया। वह डरते हुए बोली - भाई साहब मै हमेशा पर्दा में ही रहती हूँ । आज तक पति की सूरत अच्छे से नही देखी और इन्होंने ही तो कहा था की मै जंगल जा रहा हूँ । शाम तक वापस आऊँगा। अगर बीच में कोई आये और दरवाजा खटखटाये तो दरवाजा मत खोलना ।
कल्लू खाट पर सिर पकड़ बैठ गया ।
प्रणाम
शुभ संध्या
माउथ ऑर्गन
आप समस्त स्नेहीजनों को हमारा स्नेह वन्दन
॥ जय श्री राम ॥
शुभ संध्या
मित्रों बात उन दिनों की है जब प्यार ऐसा ही होता था, ब्लैक एंड वाइट फिल्मों जैसा. नज़रें उठाना, झुकाना, हौले से मुस्कुरा देना और निकल जाना।
उनका प्यार भी ऐसा ही था, मूक फिल्मों सा मासूम। वह कॉलेज से आती चार किताबें सीने से चिपकाए. आँखों में सुरमे की बाहर तक खिंची लकीर, लम्बी सी चोटी, लहराती जुल्फें, छोटी सी काली बिंदी. बस, इतना ही सिंगार।
और वह दूर से ही दिख जाता साइकिल पर लहराता हुआ, एक हाथ साइकिल का हैंडल संभाले, दूसरा होंठों से सटे माउथ ऑर्गन को साधे, और हवा में लहरा जाती एक प्यारी सी धुन पुकारता चला हूँ मैं, गली गली बहार की ! उसकी आँखें भूरी, गोरा रंग, होंठों पर पान की रंगत, नज़रों में भोली सी शरारत, माथे पर जतन से बिखराई हुयी वो आवारा लट।
जैसे जैसे वह पास आता लड़की अपनी गर्दन झुका लेती. शरीफ लडकियां ऐसे ही करती थीं उन दिनों , बेबाक होकर नज़रें चार करना आवारापन की निशानी थी. वह भी एक उचटती नज़र डालता, एक शरारती मुस्कान फेंकता और माउथ ऑर्गन बजाता हुआ निकल जाता. दिल दोनों के धड़धडाते ज़ोर से, लड़की तो उछलते दिल को सीने पर रक्खी किताबों से संभाल लेती, और लड़का माउथ ऑर्गन में जोर जोर से हवा खीँचने लगा देता ।
फिर दोनों दूर से पीछे मुड़कर देखते. 'शायद वह मुस्कुरा रही थी'. लड़का सुबह शाम किसी ना किसी बहाने लड़की के घर के आगे से निकलता. उसके माउथ ऑर्गन की आवाज़ कान में पड़ते ही वह बेचैन हो, कोई ना कोई रास्ता ढूंढती खिड़की से झाँकने का. किस्मत अच्छी हो तो बाहर निकलने का बहाना भी मिल ही जाता. यह सिलसिला करीब तीन साल तो चला ही होगा.
फिर कुछ दिन वह नज़र नहीं आयी. वह बेचैन हो उठा. बार बार चक्कर लगाता, कभी कॉलेज के, कभी उसकी गली के. पर वह नही दिखी. बहुत दिन बाद उसकी खिड़की खुली दिखी, एक उम्मीद बंधी. उसने वहीं साइकिल टिकाई और एक ख़ासा इंतज़ार के बाद आखिर उसकी एक झलक दिख गयी.. दूर से ही देखा था पर उसके चेहरे के भाव पढ़ लिए उसने . जाने क्यूँ उस लड़की ने अपना बायाँ हाथ उठाया जैसे 'बाय' कह रही हो, कुछ समझ नहीं आया लड़के को।
फिर एक दिन उसके घर में रंग बिरंगी लडियां, झंडियाँ झूल रही थीं. केले के तने से सजे मुख्य द्वार पर "वेलकम" सजा था. वह व्याकुल हो उठा. उसका डर सही निकला, उस लड़की का ब्याह था. दिल टूट गया बेचारे का. उस दिन उसके माउथ ऑर्गन के सुर बहुत दर्द भरे थे,
" जिस दिल मेँ बसा था प्यार तेरा, उस दिल को हाय तोड़ दिया ,
जब याद कभी तुम आओगे
समझेंगे तुम्हें चाहा ही नहीं
राहों में अगर मिल जाओगे
सोचेंगे तुम्हें देखा ही नहीं "
रात भर सो ना सका। दिल को किसी ने मुट्ठी में लेकर भींच दिया हो जैसे। सुबह सुबह फिर अपनी साइकिल उसके गेट के सामने खड़ी कर दी, और वहीं बैठ गया इंतज़ार में. ज्यादा इंतज़ार नहीं करना पड़ा उसे. वह विदा हो रही थी. दोनों की नज़रें आखिरी बार टकरायीं. वह सिसक कर लिपट गयी सहेली से. ये आंसू सिर्फ विदाई के नहीं थे, कहीं वह भी था उन में , जानता था वह. वह विदा हो गयी. नवयुवक ने अपना माउथ ऑर्गन वहीं उसके घर के सामने फ़ेंक दिया. और यूं ही दो जोड़ी नज़रों का प्यार, नज़रों में ही रह गया घुल कर।
लड़के ने माउथ ऑर्गन बजाना छोड़ दिया।
लड़की जब भी यह गाना सुनती, "पुकारता चला हूँ मैं ", उसका मन फिर भटकने लगता है मायके की गलियों में. उसकी आँखें भीग जाती हैं, वह गुमसुम हो जाती है. पति कहते हैं
"क्यूँ माँ की याद आ रही है ?"
और वह मुस्कुरा कर सर झुका लेती है।
॥ जय श्री राम ॥
शुभ संध्या
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