जय श्री राम सखियों और सखाओं। आज आपके साथ मराठा साम्राज्य के एक सिपाही की कथा साझा कर रही हूँ।
एक दिन दस वर्ष का एक बालक नदी किनारे टहल रहा था। तभी वह शाहू महाराज का ताफा आया। उस बालक ने जोर से कहा, "अरे ओ जोग्दे ! खबरदार अगर मेरी धोती को छुआ तो!"
शाहू महाराज उस दस वर्ष के बालक की निडरता देख कर अच्चम्भित थे। पर देर हो जाने से जल्दी जल्दी स्नान कर रहे थे। उन्होंने नदी में नहाते हुए कहा, "नहीं बाबा तुम्हारी धोती को नहीं छुऊंगा।"
शाहू महाराज अपने दरबार में लौटे और २ सिपाहियों को कहा की उस बालक को दरबार में बुलाओ। सिपाही उस बच्चे को दरबार में लेकर आए।
शाहू महाराज ने उससे पूछा, "तुम्हारा नाम क्या है?"
उस बच्चे ने कहा, "मेरा नाम विठू है।"
महाराज ने विठू से पूछा, "अकेले नदी पर क्या कर रहे थे?"
विठू ने कहा, "माँ कहती है की काम करो नहीं तो फिर घर से निकलो और मैं काम नहीं करता इसलिए नदी के पास टहलने के लिए आया।"
महाराज ने पूछा, "तुम काम क्यों नहीं करते ?"
विठू ने कहा, "माँ के द्वारा जो मुझे काम दी जाते है वो मेरे मन लायक नहीं होते इसलिए मैं टहलने आ जाता हु। मुझे घुड़सवारी करना, शिकार करना ऐसे काम पसंद है।"
महाराज ने उसके खाने का बंदोबस्त किया और एक खेलने के लिए एक लट्टू दे दिया। तथा उसकी निडरता से प्रभावित होकर उसके प्रशिक्षण की व्यवस्था का आदेश दे दिया। उसके बाद शाहू महाराज ने उससे कहा, "कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता। हर काम अपनी जगह लायक होता है। इसीलिए तुम्हारी माँ जो भी तुम्हे कहे भलेही पसंद न हो करना चाहिए इससे तुम उस काम को कैसे करना है ये जान सको।" विठू के बात समझ आयी और वह घर चला गया। उसकी माँ उसे जो भी बोले वो वह करने लगा। तथा महाराज के आदेश के अनुसार उसके प्रशिक्षण की व्यवस्था भी हुई और उसे युद्धकला का प्रशिक्षण देना आरम्भ हुआ।
कुछ दिनों बाद शाहू महाराज ने विठू को शिकार के लिए बुलाया और एक सूअर दिखने पर उन्होंने उस पर गोली ताक दी। लेकिन गोली का निशाना चुक जाने से सूअर बच गया। पर बौखलाया सूअर शाहू महाराज पर झपटा। विठू ने प्रसंगावधान रखते हुए भाले से सूअर को घायल कर दिया। इससे शाहू महाराज बहुत प्रभावित हुए और विठू के लिए १०० घुड़सवारों और बड़ी सी जागीर व्यवस्था कर दी। यही विठू विठ्ठल शिवदेव विन्चुरकर नामसे प्रसिद्ध हुए जिन्होंने ५० ६० सालो तक मराठा साम्राज्य की सेवा की।
वस्तुतः अगर बच्चो को उनके मन को अच्छा लगने वाले काम दो तो उसका अच्छा ही परिणाम मिलता है। इसलिए उनपे अपनी पसंद नहीं थोपना चाहिए। उचित तो यही है की जो उन्हें अच्छा लगता वह उन्हें करने दो। परन्तु यह भी बच्चों को समझाना चाहिए की हर काम कैसे करना यह पता रहना चाहिए। किसी चीज का ज्ञान रहना कभी बेकार नहीं जाता।
कथा को यहाँ तक पढ़ने के लिए धन्यवाद। इस कथा को सभी वाचकों के साथ शेयर करिये और एक बार कमेंट में हिन्दवी स्वराज्य का जयकारा लगा दीजिये।
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