गीत गोविंद के रचियता महाकवि जयदेव तीर्थयात्रा पर निकले थे. किसी राज्य के नरेश ने उनका सम्मान करते हुए बहुत सा धन दिया जिसे मार्ग में डाकुओ ने लूट लिया और हाथ पैर काटकर कुए में फेक दिया. उस कुए में पानी नहीं था. वे कुए में ही कीर्तन करने लगे तभी वहा से महाराज गोदेश्वर राजा लक्ष्मण जी की सवारी गुजरी. जयदेव की आवाज सुन लक्ष्मण ने उन्हें बहार निकला और वे उन्हें लेकर राजधानी में आए. जयदेव की विद्वता और भगवद्भक्ति से प्रभावित हो लक्ष्मणसेन ने उन्हें अपनी पंच्रातना सभा का प्रमुख बना दिया. एक बार राज्य में किसी उत्सव के आयोजन पर वे डाकू भी साधू के वेश में आए. जयदेव को वहा देख सबके प्राण वाही सुख गए. जयदेव ने भी उन्हें पहचान लिया और राजा से कहा ये मेरे कुछ पुराने मित्र है आप चाहे तो इन्हें थोडा धन देदे. राजा ने उन का भव्य सत्कार कर बहुत सारा धन दिया और कुछ सेवक उनके साथ भेज दिए. मार्ग में सेवको ने जयदेव और उनकी मित्रता के बारेमे पूछा डाकू बोले हम सब लोग एक राज्य में कर्मचारी थे जयदेव के बुरे कामो के कारण उसे उस राज्य के राजा ने मृत्यु दंड दिया. लेकिन हमने उसे बचाया. हम ये बात किसी को नहीं बताए इसलिए वह हमें इतना सम्मान दे रहा है. तभी जमीन फटी और डाकू उसके अन्दर समां गए. सेवको के मुह से ये बात सुन जयदेव ने राजा को सब कुछ सच सच बता दिया और भगवान से प्रार्थना की, “मुझे सद्गति दे.” और उनके हाथ पेर फिरसे ठीक हो गए. वस्तुतः ह्रदय से क्षमा लेने और देने वाले का हमेशा कल्याण होता है.
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