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Tuesday 18 August 2020

तुलाधार से सच्चा पुण्य कमाने की कुंजी पाई साधु ने

तुलाधार एक उदार विचारधारा वाले विद्वान थे। उन्हें व्यर्थ के आडंबर और दिखावे में विश्वास नहीं था। देना कभी किसी धार्मिक यात्रा पर गए और ना ही नित्य मंदिर जाना। पूजा पाठ करना व्रत उपवास रखना उनकी दिनचर्या में शामिल था। प्राणी मात्र की सेवा को सर्वोपरि मानकर उसी में लगे रहते थे। एक दिन तुलाधार के घर एक साधु आए। तुलाधार ने उनका यथोचित सत्कार किया। शेर दोनों के बीच धर्म चर्चा होना होने लगी पूर्ण राम साधु तुलाधार से बहुत प्रभावित हुए। बातों ही बातों में वह बोले बेटा तुम कुछ दिन के लिए तीर्थ यात्रा कर आओ इससे तुम्हें शांति और पुण्य की प्राप्ति होगी। साधु की बात सुनकर तुलाधार मुस्कुरा कर बोला महाराज मेरे इस गांव में कितने ही लोग भूख से पीड़ित है कितनों को दवाइयों की आवश्यकता है और कितने की वस्त्र के जरूरतमंद है। मैं अपनी कमाई के चार पैसे इनकी रोटी कपड़ा और दवा आदि पर खर्च करना अधिक बेहतर मानता हूं। यही मेरी तीर्थयात्रा है और इसी से मुझे परम शांति मिलती है। इससे ही मैं सच्चा पुण्य भी मानता हूं। तुलाधार की बात सुनकर साधु को अपने मित्र अस्तित्व का एहसास हुआ और वे तुलाधार को अपना गुरु मानकर सेवा कार्यों में लग गए।

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