खुद से जीतने की जिद है,
मुझे खुद को ही हराना है,
मै भीड़ नहीं हूँ दुनिया की,
मेरे अन्दर एक ज़माना है
=====वो भी क्या रातें थी जब खूब जगा करता था
क्या खबर थी कि मैं खुद से दगा करता था
=====कुछ शिकायत थी तुमसे भी, खुद से भी
जाने कुछ दर्द था, गजल में लिखा करता था
=====न बढ़ा सका कोई , न किसी का छीनकर
ज़रा हौसला बढ़ा, ज़रा खुद से बात कर
=====तेरी यादों ने मुझे क्या खूब मशरूफ किया है ऐ सनम,
खुद से मुलाकात के लिए भी वक़्त मुकर्रर करना पड़ता है.
=====खुद से जीतने की जिद है, मुझे खुद को ही हराना है,
मै भीड़ नहीं हूँ दुनिया की, मेरे अन्दर एक ज़माना है
=====मुस्कुराना ही खुशी नही होती,
उमर बिताना ही ज़िंदगी नही होती,
खुद से भी ज़्यादा ख्याल रखना पड़ता है दोस्तों का. क्यूँ क़ि
दोस्त कहना ही दोस्ती नही होती.
=====आपके मिल जाने के बाद
खुद से मिलने की भी फुरसत नहीं है अब मुझे,
और आप औरो से मिलने का इलज़ाम लगा रहे है…
=====तू ना हो तो हम खुद से ही उलझते हैं,
क्या करू हमे तेरी आदत सी हो गयी.
हम अपने वजूद में तुझे तलाश करते हैं,
हम इस कदर तुमसे मोहब्बत सी हो गयी.
=====
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