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Tuesday 19 May 2020

गांधी जीने ट्रेन का डिब्बा बदलने से इनकार कर दिया

राष्ट्रहित महात्मा गांधी समय-समय पर उनके स्थानों की यात्रा करते रहते थे। उन्हें लोगों को अपने स्वाधीनता आंदोलन से जोड़ना होता था। सभी वर्गो व धर्मों के लोगों से मिलने के लिए वह यात्राएं करते और लोग उनकी भावना की उच्चता समझ कर उनके मिशन में जुड़ जाते। एक बार गांधीजी कश्मीर जा रहे थे पूर्णविराम बारिश का मौसम था पूर्णविराम वे हमेशा की तरह तृतीय श्रेणी के डिब्बे में यात्रा कर रहे थे उन विराम बारिश का वेद इतना अधिक था कि डब्बा लगभग पूरा गीला हो गया। उसमें बरसात का पानी भर गया। कार्ड को पता था कि उस डिब्बे में गांधी ज यात्रा कर रहे हैं। अतः वह तत्काल और स्टेब्बे में आया और गांधीजी से विनम्रता पूर्वक बोला बापू आप बदल लीजिए मैं आपके लिए किसी दूसरे डिब्बे में अच्छी व्यवस्था कर देता हूं पूर्णविराम गांधी जी ने सहज भाव से पूछा फिर इस डिब्बे का क्या होगा? गांधी जी का यह सवाल सुनकर गार्ड ने उत्तर दिया इस डीबे में हम दूसरे लोगों को बैठा देगे। यह सुनकर गांधी जी ने तुरंत कहा कि दूसरे लोगों को कश्ठ देना ये तो मेरे लिए सोचना भी मुश्किल है। इस तरह गांधी जीने ट्रेन का डीबा बदल ने से इंकार कर दिया। सार यह है कि असली समाजसेवक अपने भले से पहले समाज का भला सोचता है। 

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