जंगल जंगल ढूँढ रहा है, मृग अपनी कस्तूरी को
कितना मुश्किल है तय करना, खुद से खुद की दूरी को
=====बेगाने होते लोग देखे, अजनबी होता शहर देखा
हर इंसान को यहाँ, मैंने खुद से ही बेखबर देखा।
रोते हुए नयन देखे, मुस्कुराता हुआ अधर देखा
गैरों के हाथों में मरहम, अपनों के हाथों में खंजर देखा।
मत पूछ इस जिंदगी में, इन आँखों ने क्या मंजर देखा
मैंने हर इंसान को यहाँ, बस खुद से ही बेखबर देखा।
====मेरे दिल कि सरहद को पार न करना,
नाजुक है दिल मेरा वार न करना,
खुद से बढ़कर भरोसा है मुझे तुम पर,
इस भरोसे को तुम बेकार न करना।
=====रूखसत-ऐ-यार का मंजर भी क्या मंजर था
हमनें खुद से खुद को बिछडते हुए देखा
====खुद से खुद की तलाश करते-करते
खुद से खुद में ही कहीं खो गए हैंहम
खुद से खुद को बदलते-बदलते
खुद व खुद मतलबी हो गए हैं हम
खुद से खुद की बात करते-करते
खुद व खुद अजनबी हो गए हैं हम
खुद से खुद की मिसाल देते-देते
खुद व खुद बेमिसाल हो गए हैं
=====अंधेरा वहां नहीं है, जहां तन गरीब है!
अंधेरा वहां है, जहां मन गरीब है
ना बुरा होगा, ना बढ़िया होगा!
होगा वैसा, जैसा नजरिया होगा
हजार महफिलें हों, लाख मेले हों!
पर जब तक खुद से न मिलो, अकेले हो
=====बहुत खुशनसीब होते है वो शख्स,
जिनको मोहब्बत के साथ
खुद से ज्यादा फ़िक्र करने वाले शख्स मिलते है।
=====
No comments:
Post a Comment