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Thursday, 30 April 2020

कोरोना

सन २०१९ - २० शायद मनुष्य के लिए एक सीख लेकर आया है। पिछले कई महीनों से पूरी दुनिया एक महामारी से डर के गुजर रही है। और वह तो हर कोई जानता है - कोरोना। इस रोग ने सभी धरती वासियों को आजादी दी है सीवा मनुष्य के। हां हम मनुष्य कोरोना की कैद में है। बाकी हर पेड़ पर फूल आ रहे हैं, फल आ रहे हैं। और दुनिया भर के कीट पतंगे इसमें अपना काम पर आगे खनन का काम बखूबी बेखौफ निभा रहे हैं। पंछी नीले गगन में उड़ रहे हैं और उनकी भी जिंदगी कहीं रुक नहीं रही। घर के किसी बालकनी के कोने में मेरे यहां भी कबूतर ने घौसला बनाया। अपना घर बनाते वक्त उस जोड़ी को किसी भी विषाणु का डर ना था। बढ़िया तिनका तिनका जमा करके लाया करते थे और उन्हें जमाते थे कुछ ही दिन में घोंसला बन गया। अंडे दिए और समय के चलते नहीं जिंदगी या धरती पर आई।
और हम मनुष्य आए दिन कोरोना के डर से आपस में दूरी बना रहे हैं। यह जरूरी भी है क्योंकि कोरोना से बचना ही उसका इलाज है। पिछले 30 दिन से ज्यादा हो गए सभी मानव अपने परिवार के साथ अपने अपने घरों में है। कोई घर के बाहर ऐसे ही नहीं जा रहा। बच्चे भी आंगन में खेल नहीं रहे।
कोई कहता है यह कुछ लोगों की गलती है - अमुक अमुक जानवर काट खाया इसीलिए यह रोग आया। विज्ञान की दृष्टि में यह सच है। फिर सरकारों पर भी आरोप लग रहे हैं । प्रशासन को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। कुछ लोग जैविक महायुद्ध की डरावनी कहानी बना रहे हैं फुल हर मनुष्य एक दूसरे को कटघरे में रखने में व्यस्त हैं। 
पर कोई यह नहीं सोच रहा कि जब गाड़ियां सड़कों पर दौड़ रही थी, और पूरी दुनिया भर के सारे कारखाने चल रहे थे तब प्रदूषण था। पूरा पर्यावरण प्रदूषित था। लेकिन तब भी पेड़ फल फूल रहे थे, कीट पतंगे फूलों का रस पी रहे थे, पंछी खुले आसमान में उड़ रहे थे, मनुष्य अपने कमाई में व्यस्त है और पूरी दुनिया जैसा भी है जीवन जी रही थी।
आज धरती प्रदूषण से मुक्त हो रही है पर विषाणु है - एक अनदेखा अंजाना दुश्मन है। लेकिन फिर भी सारे मनुष्येऎतर जीव इस धरती पर शान से जी रहे हैं। और हम मनुष्य अपने ही घरों में कैद हो गए हैं।
एक अच्छे देश का कानून कैद उसे ही बनाता है जिसने अपराध किया हो। प्रकृति ने आज हमें कैदी बनाया है। इसका मतलब कहीं ना कहीं हम सारे मनुष्य दोषी है।
जो लोग प्रशासन के निर्देशों को अनदेखा करके बाहर घूम रहे हैं वह भी मनुष्य ही है। कोई हॉरर सीरियल के मुख्य पात्र नहीं। बस में प्रकृति के कैद खाने के फरार कैदी है। और कुछ नहीं।
प्रकृति के कहर की यह छोटी सी झांकी है। सिर्फ एक छोटा सा ट्रेलर है। कोरोना ने वैसे जितना डराया उसी हिसाब से जाने कम ली। पर पूरी पिक्चर अभी बाकी है और हमें नहीं पता आगे हमें क्या-क्या देखना है?
पर एक बात याद रखिए यह धरती अगर अपना सीना फाड़ कर हमें पोषित करती है तो यही धरती कंप्लीट होकर कई जाने भी ले सकती है। उसका धन्यवाद कीजिए और उससे प्रेम पूर्वक अपनी जाने अनजानी गलतियों के लिए क्षमा मांग लीजिए। एक दूसरे को कटघरे में खड़े करने के बजाए यह सोचिए कि अगर इससे भयंकर महामारी आई तो तब हम मनुष्य क्या करेंगे?
दुनिया में कई धर्म है। कई संप्रदाय है। और हर किसी धर्म या संप्रदाय में निसर्ग की शक्तियों के आगे नतमस्तक होना सिखाया है। कोई भी ऐसा धर्म नहीं कोई भी ऐसा संप्रदाय नहीं जो कहता है की प्रकृति को नुकसान पहुंचाओ। क्योंकि सभी धर्मों के संस्थापकों को सभी संप्रदायों के संस्थापकों को यह पता था कि अगर धरती उपजाऊ नहीं बची तो खाने के लिए कुछ नहीं बचेगा और अगर भूखे मरेंगे जिंदा ही नहीं रहेंगे तो अपने-अपने धर्म के अनुसार ईश्वर का धन्यवाद कैसे करेंगे? तो आइए हम सब मनुष्य ईश्वर की बनाई इस धरती को अपनी अपनी मान्यताओं के हिसाब से धन्यवाद दे और अपने अपने धार्मिक विचारधारा के तहत धरती से हमारे फैलाएं प्रदूषण के लिए माफी भी मांगे।



अंत तक पढ़ने के लिए धन्यवाद। अगर आप मेरी बात से सहमत हैं तो इस लेख को ज्यादा से ज्यादा फैलाए।

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