जिंदगी है तो इश्क, जख्म और मरहम ये रहेंगे ही| मरहम से जुडी कुछ शायरी यहाँ आप सबके के लिए| पढ़िए और ओरोकोभी बताइए|
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१)
बिकती है ना ख़ुशी कहीं, ना कहीं गम बिकता है...
लोग ग़लतफ़हमी में हैं, कि शायद कहीं मरहम बिकता है...
इंसान ख़्वाहिशों से, बंधा हुआ एक ज़िद्दी परिंदा है...
उम्मीदों से ही घायल, उम्मीदोंपर ही ज़िंदा है..!!
२)
इश्क़ की चोट पर ये कैसा दांव चल दिया
अभी मरहम लगाया था कि फिर से घाव कर दिया ।।
३)
मरहम न सही कोई ज़ख्म ही दे दो ऐ ज़ालिम,
महसूसतो हो कि तुम हमें अभी भूले नहीं हो।
४)
दर्द हूँ ,दर्द का अहसास हूँ मरहम सी सेहर ए उजास हूँ
कायनात तक रहूंगा मैं भी विश्वास करो वो विश्वास हूँ
तुम साथ नहीं पास नहीं हो इसलिए मैं गमगीं उदास हूँ
मुझे जीकर देखो दो घड़ी तुम परम आनंद जैसा आभास हूँ
दिलों को पसंद बहुत हूँ हुजूर मैं टूटे दिलों की अटूट आस हूँ
मैं न कर्ता न भोक्ता न वक्ता हूँ मैं उस ब्रह्म के आस पास हूँ
भूल नही सकता कोई मिलकर हुजूर चाहनेवालों का दास हूँ
५)
चल आ तेरे पैरो पर मरहम लगा दूं ऐ मुक़द्दर.
कुछ चोटे तुझे भी आई होगी,मेरे सपनो को ठोकर मारकर ..
६)
दिए हैं ज़ख़्म तो मरहम का तकल्लुफ न करो;
कुछ तो रहने दो, मेरी ज़ात
७)
मरहम ना सही कुछ जख्म ही दे दो..
महसूस तो होने दो कि तुम भूले नहीं..
८)
ऐ सनम ये तेरी तमाम रहमतों का सिला है
मुझे मरहम भी मिला तो काँटों से मिला है
९)
चोट लगे तो रो कर देखो
आंसू भी मरहम होता है
१०)
मरहम गैरों का काम नहीं करेगा,
जख्म मेरे अपनों ने जो दिए है
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