- काही झालं तरी कमीत कमी आठवड्यातून एकदा दिवसभर मोबाईल चेक करायचं नाही.
- त्या दिवशी कुठलीही सोशल ऍप वापरायची नाही.
- त्या दिवशी एखाद्या अशा व्यक्ती सोबत नक्की बोलायचं जिच्याकडे साधा मोबाईल पण नाही - मिळणं कठीण आहे पण प्रयत्न करण्यासाठी घराबाहेर तर निघाल तुम्ही.
- शेजारी जे शेजार ग्रुप मधेच भेटतात त्यांना सुद्धा त्या दिवशी प्रत्यक्ष भेटा - थोडं अवघड आहे पण शेजारच्या वयस्क म्हाताऱ्या लोकांसोबत बोलून बघा कदाचित जीवनाचा नवा अनुभव माहीत पडेल हो की नाही !
- त्या दिवशी आपल्या आई वडिलांना विना कामाचा फोन लावा आणि बोला त्यांच्यासोबत आणि ते जर सोबत रहात असतील तर त्यांच्यासोबत त्यांच्या आवडीनुसार वेळ घालवा. नक्की मायेचा पाझर फुटेल तुमच्या स्वतःमध्ये.
- हे तर रोज करायला हवं - घरी लवकर येऊन आपल्या बालगोपाळांसोबत गप्पा मारायलाच हव्यात - नाहीतर आपलं वागणं बघून तेही मोबाईल ऍडिक्ट होतीलच की - कारण मोबाइल काळाची गरज आहे. मग आपण दोष देतो - पण स्वतः सोडू शकत नाही - म्हणून आपण स्वतः गप्पा माराव्यात - करून बघा - फार नवीन गोष्टी कळतील तुम्हाला.
- पुरुषांनो बायको सोबत बसा - मी महिलांनाही म्हणते जरा वेळ ते स्मार्ट खेळणं बाजूला ठेवून नवऱ्या सोबत बसा. गप्पा मारा - एक दुसऱ्यांना सुखी करतील असे कंमेंट करा आणि बघा मग संसार कसा चविष्ट होतो ते.
You are welcome to this blog where you can find a cluster of stories and poems, in various languages spoken in the Indian Sub-continent including English, Hindi, Marathi, Rajasthani, and many more.
YouTube
Wednesday, 25 October 2017
त्या रात्री खूप छान झोप लागली...
Sunday, 8 October 2017
श्रीगणेश संकीर्तन – 2
Readers are requested to share their opinion in comment section for better blog.
Stay Happy! Stay Healthy! Stay Wealthy! Be liberated!
Monday, 2 October 2017
भाषा
*🙏🏼🙏🏼शठे शाठ्यम समाचरेत🙏🏼🙏*
*सन 711ई.* की बात है। अरब के पहले मुस्लिम आक्रमणकारी मुहम्मद बिन कासिम के आतंकवादियों ने मुल्तान विजय के बाद एक विशेष सम्प्रदाय हिन्दू के ऊपर गांवो शहरों में भीषण रक्तपात मचाया था। हजारों स्त्रियों की छातियाँ नोच डाली गयीं, इस कारण अपनी लाज बचाने के लिए हजारों सनातनी किशोरियां अपनी शील की रक्षा के लिए कुंए तालाब में डूब मरीं।लगभग सभी युवाओं को या तो मार डाला गया या गुलाम बना लिया गया। भारतीय सैनिकों ने ऎसी बर्बरता पहली बार देखी थी।
एक बालक तक्षक के पिता कासिम की सेना के साथ हुए युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो चुके थे। लुटेरी अरब सेना जब तक्षक के गांव में पहुची तो हाहाकार मच गया। स्त्रियों को घरों से खींच खींच कर उनकी देह लूटी जाने लगी।भय से आक्रांत तक्षक के घर में भी सब चिल्ला उठे। तक्षक और उसकी दो बहनें भय से कांप उठी थीं।
तक्षक की माँ पूरी परिस्थिति समझ चुकी थी, उसने कुछ देर तक अपने बच्चों को देखा और जैसे एक निर्णय पर पहुच गयी। माँ ने अपने तीनों बच्चों को खींच कर छाती में चिपका लिया और रो पड़ी। फिर देखते देखते उस क्षत्राणी ने म्यान से तलवार खीचा और अपनी दोनों बेटियों का सर काट डाला।उसके बाद अरबों द्वारा उनकी काटी जा रही गाय की तरफ और बेटे की ओर अंतिम दृष्टि डाली, और तलवार को अपनी छाती में उतार लिया।
आठ वर्ष का बालक तक्षक एकाएक समय को पढ़ना सीख गया था, उसने भूमि पर पड़ी मृत माँ के आँचल से अंतिम बार अपनी आँखे पोंछी, और घर के पिछले द्वार से निकल कर खेतों से होकर जंगल में भाग गया।
25 वर्ष बीत गए। अब वह बालक बत्तीस वर्ष का पुरुष हो कर कन्नौज के प्रतापी शासक नागभट्ट द्वितीय का मुख्य अंगरक्षक था। वर्षों से किसी ने उसके चेहरे पर भावना का कोई चिन्ह नही देखा था। वह न कभी खुश होता था न कभी दुखी। उसकी आँखे सदैव प्रतिशोध की वजह से अंगारे की तरह लाल रहती थीं। उसके पराक्रम के किस्से पूरी सेना में सुने सुनाये जाते थे। अपनी तलवार के एक वार से हाथी को मार डालने वाला तक्षक सैनिकों के लिए आदर्श था। कन्नौज नरेश नागभट्ट अपने अतुल्य पराक्रम से अरबों के सफल प्रतिरोध के लिए ख्यात थे। सिंध पर शासन कर रहे अरब कई बार कन्नौज पर आक्रमण कर चुके थे,पर हर बार योद्धा राजपूत उन्हें खदेड़ देते। युद्ध के सनातन नियमों का पालन करते नागभट्ट कभी उनका पीछा नहीं करते, जिसके कारण मुस्लिम शासक आदत से मजबूर बार बार मजबूत हो कर पुनः आक्रमण करते थे। ऐसा पंद्रह वर्षों से हो रहा था।
इस बार फिर से सभा बैठी थी, अरब के खलीफा से सहयोग ले कर सिंध की विशाल सेना कन्नौज पर आक्रमण के लिए प्रस्थान कर चुकी है और संभवत: दो से तीन दिन के अंदर यह सेना कन्नौज की सीमा पर होगी। इसी सम्बंध में रणनीति बनाने के लिए महाराज नागभट्ट ने यह सभा बैठाई थी। सारे सेनाध्यक्ष अपनी अपनी राय दे रहे थे...तभी अंगरक्षक तक्षक उठ खड़ा हुआ और बोला---
*महाराज, हमे इस बार दुश्मन को उसी की शैली में उत्तर देना होगा।*
महाराज ने ध्यान से देखा अपने इस अंगरक्षक की ओर, बोले- "अपनी बात खुल कर कहो तक्षक, हम कुछ समझ नही पा रहे।"
*"महाराज, अरब सैनिक महाबर्बर हैं, उनके साथ सनातन नियमों के अनुरूप युद्ध कर के हम अपनी प्रजा के साथ घात ही करेंगे। उनको उन्ही की शैली में हराना होगा।"*
महाराज के माथे पर लकीरें उभर आयीं, बोले-
"किन्तु हम धर्म और मर्यादा नही छोड़ सकते सैनिक। "
तक्षक ने कहा-
*"मर्यादा का निर्वाह उसके साथ किया जाता है जो मर्यादा का अर्थ समझते हों। ये बर्बर धर्मोन्मत्त राक्षस हैं महाराज। इनके लिए हत्या और बलात्कार ही धर्म है।"*
"पर यह हमारा धर्म नही हैं बीर"
"राजा का केवल एक ही धर्म होता है महाराज, और वह है प्रजा की रक्षा। देवल और मुल्तान का युद्ध याद करें महाराज, जब कासिम की सेना ने दाहिर को पराजित करने के पश्चात प्रजा पर कितना अत्याचार किया था। ईश्वर न करे, यदि हम पराजित हुए तो बर्बर अत्याचारी अरब हमारी स्त्रियों, बच्चों और निरीह प्रजा के साथ कैसा व्यवहार करेंगे, यह आप भली भाँति जानते हैं।"
महाराज ने एक बार पूरी सभा की ओर निहारा, सबका मौन तक्षक के तर्कों से सहमत दिख रहा था। महाराज अपने मुख्य सेनापतियों मंत्रियों और तक्षक के साथ गुप्त सभाकक्ष की ओर बढ़ गए।
अगले दिवस की संध्या तक कन्नौज की पश्चिम सीमा पर दोनों सेनाओं का पड़ाव हो चूका था, और आशा थी कि अगला प्रभात एक भीषण युद्ध का साक्षी होगा।
आधी रात्रि बीत चुकी थी। अरब सेना अपने शिविर में निश्चिन्त सो रही थी। अचानक तक्षक के संचालन में कन्नौज की एक चौथाई सेना अरब शिविर पर टूट पड़ी। अरबों को किसी हिन्दू शासक से रात्रि युद्ध की आशा न थी। वे उठते,सावधान होते और हथियार सँभालते इसके पुर्व ही आधे अरब गाजर मूली की तरह काट डाले गए।
इस भयावह निशा में तक्षक का शौर्य अपनी पराकाष्ठा पर था।वह घोडा दौड़ाते जिधर निकल पड़ता उधर की भूमि शवों से पट जाती थी। आज माँ और बहनों की आत्मा को ठंडक देने का समय था....
उषा की प्रथम किरण से पुर्व अरबों की दो तिहाई सेना मारी जा चुकी थी। सुबह होते ही बची सेना पीछे भागी, किन्तु आश्चर्य! महाराज नागभट्ट अपनी शेष सेना के साथ उधर तैयार खड़े थे। दोपहर होते होते समूची अरब सेना काट डाली गयी। अपनी बर्बरता के बल पर विश्वविजय का स्वप्न देखने वाले आतंकियों को पहली बार किसी ने ऐसा उत्तर दिया था।
विजय के बाद महाराज ने अपने सभी सेनानायकों की ओर देखा, उनमे तक्षक का कहीं पता नही था।सैनिकों ने युद्धभूमि में तक्षक की खोज प्रारंभ की तो देखा-लगभग हजार अरब सैनिकों के शव के बीच तक्षक की मृत देह दमक रही थी। उसे शीघ्र उठा कर महाराज के पास लाया गया। कुछ क्षण तक इस अद्भुत योद्धा की ओर चुपचाप देखने के पश्चात महाराज नागभट्ट आगे बढ़े और तक्षक के चरणों में अपनी तलवार रख कर उसकी मृत देह को प्रणाम किया। युद्ध के पश्चात युद्धभूमि में पसरी नीरवता में भारत का वह महान सम्राट गरज उठा-
"आप आर्यावर्त की वीरता के शिखर थे तक्षक.... भारत ने अबतक मातृभूमि की रक्षा में प्राण न्योछावर करना सीखा था, आप ने मातृभूमि के लिए प्राण लेना सिखा दिया। भारत युगों युगों तक आपका आभारी रहेगा।"
*इतिहास साक्षी है, इस युद्ध के बाद अगले तीन शताब्दियों तक अरबों कीें भारत की तरफ आँख उठा कर देखने की हिम्मत नही हुई।*
*तक्षक ने सिखाया कि मातृभूमि की रक्षा के लिए प्राण दिए ही नही, लिए भी जाते है, साथ ही ये भी सिखाया कि दुष्ट सिर्फ दुष्टता की ही भाषा जानता है, इसलिए उसके दुष्टतापूर्ण कुकृत्यों का प्रत्युत्तर उसे उसकी ही भाषा में देना चाहिए अन्यथा वो आपको कमजोर ही समझता रहेगा।*
🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼
*विनम्र निवेदन*
यह पोस्ट आपके 👌🏽👌🏽✌🏽✌🏽👍🏽👍🏽 की मोहताज नही है। भारत के इतिहास की यह गौरवशाली कथा उच्च कोटि की ही है।
बस आपसे इतना विनम्र निवेदन है कि
पसन्द आये तो forward अवश्य करें
🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼
शांति
😊
(((((((( भीतर की आवाज ))))))))
,
एक बार एक किसान की घड़ी कहीं खो गयी. वैसे तो घडी कीमती नहीं थी पर किसान उससे भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ था और किसी भी तरह उसे वापस पाना चाहता था.
.
उसने खुद भी घडी खोजने का बहुत प्रयास किया, कभी कमरे में खोजता तो कभी बाड़े तो कभी अनाज के ढेर में …. पर तामाम कोशिशों के बाद भी घड़ी नहीं मिली.
.
उसने निश्चय किया की वो इस काम में बच्चों की मदद लेगा और उसने आवाज लगाई , ”
.
सुनो बच्चों , तुममे से जो कोई भी मेरी खोई घडी खोज देगा उसे मैं १०० रुपये इनाम में दूंगा.”
.
फिर क्या था , सभी बच्चे जोर-शोर से इस काम में लग गए… वे हर जगह की ख़ाक छानने लगे , ऊपर-नीचे , बाहर, आँगन में ..हर जगह… पर घंटो बीत जाने पर भी घडी नहीं मिली.
.
अब लगभग सभी बच्चे हार मान चुके थे और किसान को भी यही लगा की घड़ी नहीं मिलेगी,
.
तभी एक लड़का उसके पास आया और बोला , ”
.
काका मुझे एक मौका और दीजिये, पर इस बार मैं ये काम अकेले ही करना चाहूँगा.”
.
किसान का क्या जा रहा था, उसे तो घडी चाहिए थी, उसने तुरंत हाँ कर दी.
.
लड़का एक-एक कर के घर के कमरों में जाने लगा… और जब वह किसान के शयन कक्ष से निकला तो घड़ी उसके हाथ में थी.
.
किसान घड़ी देख प्रसन्न हो गया और अचरज से पूछा
.
बेटा, कहाँ थी ये घड़ी , और जहाँ हम सभी असफल हो गए तुमने इसे कैसे ढूंढ निकाला ?”
.
लड़का बोला,” काका मैंने कुछ नहीं किया बस मैं कमरे में गया और चुप-चाप बैठ गया, और घड़ी की आवाज़ पर ध्यान केन्द्रित करने लगा ,
.
कमरे में शांति होने के कारण मुझे घड़ी की टिक-टिक सुनाई दे गयी , जिससे मैंने उसकी दिशा का अंदाजा लगा लिया और आलमारी के पीछे गिरी ये घड़ी खोज निकाली.”
****
मित्रो, जिस तरह कमरे की शांति घड़ी ढूढने में मददगार साबित हुई उसी प्रकार मन की शांति हमें जीवन की ज़रूरी चीजें समझने में मददगार होती है.
.
हर दिन हमें अपने लिए थोडा वक़्त निकालना चाहिए , जिसमे हम बिलकुल अकेले हों , जिसमे हम शांति से बैठ कर खुद से बात कर सकें और अपने भीतर की आवाज़ को सुन सकें , तभी हम जिंदगी को और अच्छे ढंग से जी पायेंगे.
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
फुल स्टॉप !
अप्रतिम लेख ....
.....परत परत वाचा
नक्की वाचा......
Be the CEO of your own Life ...
बघा फरक पडेल आपल्या आयुष्यात...
👌👌👌👌👌👌
प्रत्येकाने वाचावा असा अप्रतिम लेख...
दोन दिवसांपूर्वीची गोष्ट..
कुटुंबासह कुठल्यातरी मॉलमध्ये होतो.
मुलगा ‘प्ले झोन’ मध्ये, सौ. (विन्डो) शॉपिंगमध्ये आणि मी एसी ची छान गार हवा अंगावर घेत एका कोपऱ्यात पेपर वाचत बसलो होतो.
पेपर खरं तर, नांवाला.
माणसं वाचत बसलो होतो.
विविध चेहऱ्यांची, आकारांची
माणसं जणू ‘आज जगाचा शेवटचा दिवस असावा’ असे भाव आणून शॉपिंग करत होती.
(एवढ्या वस्तू विकत घेऊन माणसं त्या वस्तू घरात कुठे ठेवतात, हा मध्यमवर्गीय प्रश्न मला कायम सतावतो. असो.)
माझं ‘माणसं-वाचन’ चालू असतानाच माझ्या शेजारी एक तरुण येऊन बसला.
जेमतेम चाळीशीचा असावा.
जीन्स आणि खोचलेला टी शर्ट. पायात बूट.
अंगावर ब्रुट.
हातात मराठी पुस्तक.
खिशातला शुभ्र रुमाल काढून त्याने कपाळावरचा घाम पुसला.
रुमालाची (होती तशी) व्यवस्थित घडी घातली आणि (त्याच) खिशात ठेवली. त्याच्या हालचाली शांत झाल्यावर त्याने पुस्तक उघडले. ते पुस्तक माझ्या आवडत्यांपैकी एक होतं.
न राहवून मी म्हटलं, ‘मस्त पुस्तक आहे.’ त्याने माझ्याकडे बघत हसून मान हलवली..
पाच एक मिनिटांनी तो माझ्याकडे वळून म्हणाला, ’वाचन आवडतं?’
‘प्रचंड. रीडिंग इज माय ‘फर्स्ट लव्ह’.
’आजूबाजूला ‘सौ’ नाही हे बघत मी म्हटलं.
‘किती वाचता रोज?’
‘रोज असं नाही…अं.. अं…काही खास ठरवलेलं नाही.
इच्छा झाली की वाचतो.’
अनपेक्षित योर्करला कसंबसं खेळत मी म्हटलं.
‘खायला आवडतं?’
कॉन्जीक्युटीव्ह योर्कर.
‘प्रचंड. इटिंग इज माय ‘सेकंड लव्ह’.’
‘हो? मग रोज जेवता की इच्छा होईल तेव्हा….?’
‘नाही नाही…रोज दोन वेळा..
आणि मधे-मधे काहीना काही खादाडी चालू असतेच..
’हिट विकेट !
तो तरुण हसला. म्हणाला, ‘मी दिवसभरात एक तास वाचतो. वाचल्याशिवाय झोपत नाही. आंघोळ, जेवण.. तसंच वाचन !’
‘बरा वेळ मिळतो तुम्हाला.’
दयनीय चेहरा करत मी म्हटलं..
‘वेळ मिळत नाही. मी काढतो.
‘वेळ’ ही जगातली सगळ्यात ‘टेकन फॉर ग्रान्टेड’ गोष्ट आहे असं मी मानतो..
फॉर दॅट मॅटर, आयुष्यच घ्या ना !
फारच गृहीत धरतो आपण आयुष्याला !
‘मी रिटायर झाल्यावर भरपूर वाचन करणार आहे' असं कोणी म्हटलं नां! की माझी खात्री होते, नवज्योत सिंग सिद्धूसारखा रेड्यावर हात आपटत तो ‘यम’ त्याला हंसत असेल !’
मी हसलो. तसा किंचित गंभीर होत त्याने विचारलं, ‘तुम्ही कधी पाहिलंय यमाला?’
मी आणखी हसू लागलो. ‘आय ऍम प्रीटी सिरीयस.. तुम्ही पाहिलंय यमाला ?
हो, मी पाहिलंय. दोन वर्षांपूर्वी.
रस्ता क्रॉस करत होतो. समोरून भरधाव गाडी आली. त्या दिव्यांच्या प्रकाश झोतातही मी अंधार पाहिला. त्या दोन सेकंदात मला ‘मृत्यूने’ दर्शन दिलं. त्यानंतर जागा झालो तो हॉस्पिटलमध्येच.
गंभीर इजा होऊन सुद्धा मी कसाबसा वाचलो होतो..
हॉस्पिटलमधून घरी आलो तो नवा जन्म घेऊन..
मी ‘देव’ पाहिला नव्हता पण ‘मृत्यू’ पाहिला होता. मृत्यू तुम्हाला खूप शिकवतो.
माझी मृत्यूवर श्रद्धा जडली. आजूबाजूला रोज इतके मृत्यू दिसत असूनही ‘मी’ अमर राहणार असं ज्याला वाटतं, तो माणूस !
तुम्हाला माहितीय, माणूस मृत्यूला का घाबरतो?’
‘अर्थात ! मृत्यूनंतर त्याचे सगे सोयरे कायमचे दुरावतात..
मृत्यूमुळे माणसाच्या इच्छा अपूर्ण राहतात.’ मी म्हटलं..
‘साफ चूक' ! माणूस यासाठी घाबरतो कारण मृत्यूनंतर ‘उद्या’ नसतो !’
‘मी समजलो नाही.’
‘प्रत्येक काम आपल्याला ‘उद्यावर’ टाकायची संवय असते..
वाचन, व्यायाम, संगीत ऐकणे…
गंमत म्हणजे, आहेत ते पैसे देखील आपण ‘आज’ उपभोगत नाही..
ते कुठेतरी गुंतवतो..... भविष्यात ‘डबल’ होऊन येतील म्हणून !
या ‘उद्या’ वर आपला फार भरवसा असतो..
मग तो आपल्या जगण्याचा एक भाग बनतो..
आपण मृत्यूला घाबरतो कारण मृत्यू तुम्हाला हा ‘उद्या’ बघायची संधी देत नाही !
मृत्यू म्हणजे – आहोत तिथे,
आहोत त्या क्षणी फुल स्टॉप !
खेळ ऐन रंगात आला असताना कुणीतरी येऊन तुम्हाला खेळाच्या बाहेर काढावं, तसा मृत्यू तुम्हाला या जगातून घेऊन जातो.
तुमच्यावरील या ‘अन्याया’ विरुद्ध आवाज उठवायला देखील तुम्ही उरत नाही..
माझ्या मृत्यूनंतर मी माझा लाडका ‘उद्या’ पाहू शकणार नाही, या हतबलतेला माणूस सगळ्यात जास्त घाबरतो..
म्हणून हॉस्पिटलमधून घरी आल्यावर ठरवलं, यापुढचं आयुष्य उघड्या डोळ्यांनी जगायचं..
इतके दिवस जेवण नुसतंच ‘गिळलं’.
या पुढे एकेका घासाची मजा घ्यायची..
आयुष्याची ‘चव’ घेत जगायचं. ’
‘म्हणजे नक्की काय केलं?’
माझी उत्सुकता आता वाढली होती.
‘माझ्या आयुष्याची जबाबदारी मी स्वतःवर घेतली..
मी माझ्या आयुष्याचा Chief Executive Officer झालो !’
‘कंपनीचा सीईओ इतपत ठीक आहे. आयुष्याचा ‘सीईओ’ वगैरे… जरा जास्तच होत नाही का?’ मी विचारलं.
‘वेल… तुम्हाला काय वाटतं हे माझ्यासाठी महत्वाचं नाही..
आयुष्य कसं जगायचं याचे नियम मी ‘माझ्यापुरते केलेत त्यामुळे…’
‘मग..तुमच्या कंपनीत किती माणसं आहेत?’ त्याला मधेच तोडत, मस्करीच्या सुरात मी विचारलं.
‘म्हटलं तर खूप, म्हटलं तर कोणीच नाही.’ तो खांदे उडवत म्हणाला.
मला न कळल्याचं पाहून तो पुढे बोलू लागला..
‘मी फक्त माझ्या बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स सोबत डील करतो..
दे व्हर्च्युअली कंट्रोल माय लाईफ.
माझ्या बोर्डवर विविध माणसे डायरेक्टर आहेत..
फरहान अख्तर,
शिवाजी महाराज,
अब्दुल कलाम,
डॉ.बी आर आंबेडकर
चार्ली चॅप्लीन,
महात्मा गांधीजी,
अमिताभ,
हेलन केलर,
जे आर डी टाटा
इत्यादि इत्यादि’....
माझ्या चेहऱ्यावरील बदलत जाणारे भाव न्याहाळत त्याने आणखी काही नावे घेतली.
‘या लोकांबद्दल वाचलं तेव्हा एक लक्षात आलं.
या प्रत्येकामध्ये काहीना काही वैशिष्ट्य आहे.
काही क्वालिटीजमुळे मला ही माणसं ग्रेट वाटतात.
मी काय करतो… अं…उदाहरण देतो…
समजा खोटं बोलण्यावाचून पर्याय नाही अशा परिस्थितीत सापडलो की माझे ‘एथिक्स डायरेक्टर’ गांधीजींना विचारतो, काय करू?
मग ते सांगतील ते करतो.
व्यायाम करायला जाताना सकाळी उठायचा कंटाळा आला तर माझे ‘हेल्थ डायरेक्टर’ फरहान अख्तर मला काय म्हणतील, या विचाराने मी उठून बसतो आणि व्यायाम करायला जातो.
कधीतरी काहीतरी घडतं आणि खूप निराश वाटतं.
मग माझ्या ‘इन्स्पीरेशन डायरेक्टर’ हेलन केलरना पाचारण करतो. त्यांना भेटून आपल्या अडचणी फारच मामुली वाटू लागतात.
कधी दुःखी झालो तर ‘इंटरटेनमेंट डायरेक्टर’ चार्ली चॅप्लीन भेटायला येतात…’
माझ्या चेहऱ्यावरील विस्मयचकित भाव पाहून तो म्हणाला..
’मला माहितीय की ऐकायला हे सगळं विचित्र वाटत असेल'.
पण एक गोष्ट सांगतो. आयुष्य जगणं ही जर परीक्षा असेल, तर प्रत्येक माणसाने स्वतःचा ‘सीलॅबस’ बनवावा हे उत्तम !
आपण अनेकदा ‘इतरांप्रमाणे’ आयुष्य जगायचा प्रयत्न करतो आणि तिथेच फसतो..
जगायचं कसं? या प्रश्नावर चिंतन करणारी लाखो पुस्तके आज बाजारात आहेत.
हजारो वर्षे माणूस या प्रश्नाचं उत्तर शोधतोय..
गौतम बुद्धांनी मात्र फक्त चार शब्दांत उत्तर दिलं -Be your own light..
मला तर वाटतं, याहून सोपं आणि याहून कठीण स्टेटमेंट जगात दुसरं नसेल !’
मी त्या तरुणाला नांव विचारलं, त्याने लगेच सांगितलं. आम्ही एकमेकांचा निरोप घेतला.
चार पावलं चालून गेल्यावर तो तरुण पुन्हा वळून माझ्याकडे आला. म्हणाला, ‘सगळ्यात महत्वाचं सांगायचं राहिलं.
मी एका ऍक्सिडेंटमध्ये वाचलो आणि इतकं काही शिकलो.
तुम्ही…प्लीज..कुठल्या ऍक्सिडेंटची वाट पाहू नका !’ आम्ही दोघेही हसलो.
अपघात फक्त वाहनांमुळेच होतात, असं थोडीच आहे?
ओळखपाळख नसलेला तो तरुणही अपघातानेच भेटला की !
घरी जायला आम्ही रिक्षात बसलो. ‘प्ले झोन’ मध्ये खेळून पोरगं आधीच दमलं होतं..
वाऱ्याची झुळूक रिक्षात येऊ लागली..
मांडीवर बसल्या बसल्या मुलगा झोपून गेला होता..
त्याच्या मऊ मऊ केसांमधून हात फिरवताना संध्याकाळच्या गप्पा आठवत होत्या.
मनात आलं, ‘आपल्या पोराने जर असे ‘बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स’ नेमले, तर त्यात ‘त्याचा बाप’ असेल का?’
परवाच्या रात्री बराच वेळ जागा राहिलो.
कोण जाणे, कदाचित हाच प्रश्न यापुढील आयुष्य ‘चवीने’ जगत राहायची उर्जा देत राहील !
प्रत्येकाने वाचावा असा हा अप्रतिम लेख ....
.....परत परत वाचा
नक्की वाचा......
Be the CEO of your own Life
Strategic Alliances
Strategic Alliances - For any achievement gone need the right person on your team. Sugriv was very keen on this. Very first Sugriva was ...
-
नमस्ते दोस्तों। हाल फ़िलहाल में पूरी दुनिया कोरोना वायरस से जूझ रही है। भारत में तो लॉकडाउन के चलते सभी लोग घर पर ही ...
-
गम ने हसने न दिया , ज़माने ने रोने न दिया! इस उलझन ने चैन से जीने न दिया! थक के जब सितारों से पनाह ली! नींद आई तो तेरी याद ने सोने न दिया! ==...
-
Image Credit: theculturetrip.com मौका देने वाले को धोखा और धोखा देने वाले को मौका कभी भी नहीं देना चाहिए।। ======= बच्चा असफल हो जाये तो दु...