भारतीय आस्तिक सम्प्रदाय की सर्वमान्य ग्रंथावली में मूर्धन्य स्थान को प्राप्त "दुर्गा सप्तशती "का सम्मान वेदों के सामान ही चिरकाल से किया जा रहा है | भुवनेश्वरी संहिता के अनुसार जिस प्रकार वेद अनादी हैं उसी प्रकार सप्तशती भी अनादी ही है , तथापि नारायणावतार श्री व्यास जी द्वारा रचित महा पुराणों में "मार्कंडेय पुराण "के माध्यम से इसका प्रकाशन हुआ है | सात सौ पद्यों का इसमें समावेश होने से इसे "सप्तशती" कहते हैं | तीनो चरित्रों का योग होने पर सब मिलाकर इसमें २१ शक्तियां पूज्य मानी गयी है |
प्रथम चरित्र =काली ,तारा ,छिन्ना, सुमुखी, भुवनेश्वरी, बाला, कुब्जिका
द्वितीय चरित्र =लक्ष्मी, ललिता ,काली, दुर्गा ,गायत्री ,अरुंधती ,सरस्वती
तृतीय चरित्र =ब्रह्माणी, वैष्णवी ,माहेश्वरी ,इंद्राणी, वाराही ,नारसिंही ,कौमारी
उपरोक्त नामो और शक्तियों पर दृष्टिपात से स्पष्ट है की दशा महाविद्या और दुर्गा सप्तशती की शक्तियां लगभग एक ही है , इनके नाम और शक्तिया -देवता एक दुसरे से अभिन्न हैं | पूरी शप्तशती में ३६० शक्तियों का नाम-कर्मादी के रूप में वर्णन भी प्राप्त होता है और उसके ४०-४० नामों के ९ भाग करके नवरात्री के दिनों में ९ दिन तक पूजन होता है |
श्री यन्त्र के ९ आवरणों में भी प्रत्येक दिन ४० नामों की अथवा प्रत्येक आवरण में एक-एक चत्वारिन्शती की पूजा होती है और जो दशावरणी पूजा करते हैं वे अंतिम दिन समष्टि पूजा करते हैं | इस प्रकार श्री यन्त्र और दुर्गा सप्तशती दोनों में ही ३६० शक्तियों की पूजा होती है |
कात्यायनी तंत्र ,चिदम्बर संहिता ,मारीचि तंत्र ,रुद्रयामल तंत्र आदि भिन्न ग्रंथों में इनका उल्लेख है और भिन्न भिन्न निर्देश भी पाठ से सम्बंधित प्राप्त होते हैं ,जो हजारों वर्षों से भिन्न लोगों द्वारा पाठ होते रहने से विभिन्न प्रकार से पाठान्तरित भी हो गया है | इन पाठान्तरों के अतिरिक्त बीज दुर्गा, लघु दुर्गा, त्रयोदशश्लोकी ,सप्तश्लोकी दुर्गा आदि अनेक रूपों में भी इसका संकोच अथवा विकास होता रहा है |
तंत्र शास्त्रों में इसका सर्वाधिक महत्व प्रतिपादित करने के कारण तांत्रिक प्रक्रियाओं का इसके पाठ में बहुधा उपयोग होता आया है | आगमों में आमने मूलक उपासना पद्धति पर अधिक बल होने से दुर्गा सप्तशती को पश्चिमाम्नायिका कहा गया है , किन्तु प्रकारांतर से वह सर्वाम्नायात्मिका भी सिद्ध की गयी है | इसके साथ ही सभी शाक्त , गाणपत्य , शैव आदि शक्ति की कृपा प्राप्त कर स्वयं को शशक्त बनाने के लिए इसका पाठ करते हैं | पाठकर्ता अपने-अपने आम्नायों के अनुसार इसके पाठ प्रकारों में अनेक विध तांत्रिक -प्रक्रियाओं का समावेश करके सद्यः सिद्धि प्राप्त करते हैं |
दुर्गा सप्तशती के तीनो चरित्रों की अधिष्ठात्रियाँ क्रमशः महाकाली , महालक्ष्मी और महासरस्वती हैं | सर्वसाधारण के लिए प्रचलित नवार्ण मंत्र में इन तीनों के बीज के साथ "चामुण्डायै विच्चे "पद युक्त होता है , जबकि तीनो महादेवियों के पृथक- पृथक मंत्र भी होते हैं और इनमे भी नौ -नौ अक्षर होते हैं | साथ ही इनका जप करने से पूर्व उनके भैरव -मन्त्रों का भी दशांश जप आवश्यक होता है |ये मंत्र प्रत्येक चरित के साथ जपनिय हैं |
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