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Tuesday 23 December 2014

श्रद्धांजलि

एक बहुत बड़ी कंपनी के कर्मचारी लंच टाइम में जब वापस लौटे, तो उन्होंने नोटिस बोर्ड पर एक सूचना देखी। उसमे लिखा था कि कल उनका एक साथी गुजर गया, जो उनकी तरक्की को रोक रहा था।
कर्मचारियों को उसको श्रद्धांजलि देने के लिए बुलाया गया था। श्रद्धांजलि सभा कंपनी के मीटिंग हॉल
में रखी गई थी। पहले तो लोगो को यह जानकर दुःख हुआ कि उनका एक साथी नही रहा, फिर वो उत्सुकता से सोचने लगे कि यह कौन हो सकता है?
धीरे धीरे कर्मचारी हॉल में जमा होने लगे। सभी होंठो पर एक ही सवाल था! आख़िर वह कौन है, जो हमारी तरक्की की राह में बाधा बन रहा था। हॉल में दरी बिछी थी और दीवार से कुछ पहले एक परदा लगा हुआ था। वहां एक और सूचना लगी थी कि गुजरने वाले व्यक्ति की तस्वीर परदे के पीछे दीवार पर
लगी है। सभी एक एक करके परदे के पीछे जाए, उसे श्रद्धांजलि दे और फिर तरक्की की राह में अपने कदम बदाये, क्योकि उनकी राह रोकने वाला अब चला गया। कर्मचारिओं के चेहरे पर हैरानी के भाव थे!
कर्मचारी एक एक करके परदे के पीछे जाते और जब वे दीवार पर टंगी तस्वीर देखते, तो अवाक हो जाते। दरअसल, दीवार पर तस्वीर की जगह एक आइना टंगा था। उसके नीचे एक पर्ची लगी थी, जिसमे
लिखा था
"दुनिया में केवल एक ही व्यक्ति है, जो आपकी तरक्की को रोक सकता है, आपको सीमओं में बाँध सकता है! और वह आप ख़ुद है."
अपने नकारात्मक हिस्से को श्रद्धांजलि दे चुके 'नए' साथियो का स्वागत है.

सौंधी खुशबू

मेरी पत्नी ने कुछ दिनों पहले घर की छत पर कुछ गमले रखवा दिए। फिर किसी नर्सरी से कुछ पौधे मंगवा कर छत पर ही उसने एक छोटा सा गार्डेन बना लिया। वो नियमित रूप से उनमें पानी देती है और माली को बुला कर खाद वगैरह डलवा देती है।
शुरू शुरू में मुझे उसकी इस हरकत पर हंसी आई लेकिन ये सोच कर चुप रहा कि चलो कहीं तो अपना दिल लगा रही है। लेकिन पिछले दिनों मैं छत पर गया तो ये देख कर हैरान रह गया कि कई गमलों में फूल खिल गए हैं, नींबू के पौधे में दो नींबू भी लटके हुए हैं, और दो चार हरी मिर्च भी लटकी हुई नज़र आई।
मैं कुछ देर वहीं छत पर बैठ गया। उन पौधों की ओर देखता रहा। अचानक मैंने देखा कि पिछले हफ्ते उसने बांस का जो पौधा गमले में लगाया था, उस गमले को घसीट कर दूसरे गमले के पास कर रही थी।
गमला भारी था, और उसे ऐसा करने में मुश्किल आ रही थी। मैंने उसे रोकते हुए कहा कि गमला वहीं ठीक है, तुम उसे क्यो घसीट रही हो?
पत्नी ने मुझसे कहा कि यहां ये बांस का पौधा सूख रहा है, इसे खिसका कर इस पौधे के पास कर देते हैं। मैं हंस पड़ा और कहा, "अरे पौधा सूख रहा है तो खाद डालो, पानी डालो इसे खिसका कर किसी और पौधे के पास कर देने से क्या होगा?"
पत्नी ने मुस्कुराते हुए कहा, "ये पौधा यहां अकेला है इसलिए मुर्झा रहा है। इसे इस पौधे के पास कर देंगे तो ये फिर लहलहा उठेगा। पौधे अकेले में सूख जाते हैं, लेकिन उन्हें अगर किसी और पौधे का साथ मिल जाए तो जी उठते हैं।"
मेरी पत्नी बोल रही थी और मैं सुन रहा था। क्या सचमुच पौधे अकेले में सूख जाते हैं? क्या सचमुच पौधे को पौधे का साथ चाहिए होता है? बहुत अजीब सी बात थी। मेरे लिए ये सुनना ही नया था। लेकिन सुन रहा था और फिर सोच रहा था। पत्नी गमले को खींच कर दूसरे गमले के पास करके खुश हो गई और मैं उस पौधे की ओर देख कर कहीं खो गया।
एक-एक कर कई तस्वीरें आखों के आगे बनती चली गईं। मां की मौत के बाद पिताजी कैसे एक ही रात में बूढ़े, बहुत बूढ़े हो गए थे। हालांकि मां के जाने के बाद सोलह साल तक वो रहे, लेकिन सूखते हुए पौधे की तरह। मां के रहते हुए जिस पिताजी को मैंने कभी उदास नही देखा था, वो मां के जाने के बाद खामोश से हो गए थे। हालांकि हमारे साथ वो हमारी तरह ही जीते थे, लेकिन कई बार मैंने उन्हें रात के अंधेरे में अकेले सुबकते हुए सुना था।
मेरी पत्नी कह रही थी, "अकेले में पौधे सारी रात सुबकते हैं।"
वो कह रही थी कि ये तो तुमने चौथी कक्षा में ही पढ़ लिया होगा कि पौधों में भी जान होती है, और जब जान होती है तो ये हंसते और रोते भी हैं। देखो न मिर्च कैसी लहलहा रही है, नींबू इस छोटे से गमले में भी कैसा फल रहा है। ये सब साथ का असर है। मिर्च के साथ नींबू और नींबू के साथ तरोई, तरोई के साथ सफेद फूल… बांस का पौधा जरा अलग सा था तो इसे माली ने अकेले में रख दिया था। माली ने ये सोचने की जहमत भी नहीं उठाई कि इतना छोटा पौधा अकेले मेें कैसे रह सकता है? देखो तो सही ये अकेला पौधा कितना डरा हुआ सा लग रहा है? बेचारा डर के मारे सूख रहा है। देखना कल से ये पौधा कैसे हरा नजर आने लगता है।
मुझे पत्नी के विश्वास पर पूरा विश्वास हो रहा था। लग रहा था कि सचमुच पौधे अकेले में सूख जाते होंगे। बचपन में मैं एक बार बाज़ार से एक छोटी सी रंगीन मछली खरीद कर लाया था और उसे शीशे के जार में पानी भर कर रख दिया था। मछली सारा दिन गुमसुम रही। मैंने उसके लिए खाना भी डाला, लेकिन वो चुपचाप इधर- उधर पानी में अनमना सा घूमती रही। सारा खाना जार की तलहटी में जाकर बैठ गया, मछली ने कुछ नहीं खाया। दो दिनों तक वो ऐसे ही रही, और एक सुबह मैंने देखा कि वो पानी की सतह पर उल्टी पड़ी थी। इस एक घटना के बाद मेरे मन से मछली पालने की इच्छा हमेशा के लिए खत्म हो गई। लेकिन आज मुझे घर में पाली वो छोटी सी मछली याद आ रही थी।
बचपन में किसी ने मुझे ये नहीं बताया था कि एक मछली कभी बहुत दिनों तक नहीं जीती। अगर मालूम होता तो कम से कम दो या तीन या और ढेर सारी मछलियां खरीद लाता और मेरी वो प्यारी मछली यूं तन्हा न मर जाती। मुझे लगता है कि संसार में किसी को अकेलापन पसंद नहीं । आदमी हो या पौधा, हर किसी को िकसी न
किसी के साथ की ज़रुरत होती है। आप अपने आसपास झांकिए, अगर कहीं कोई अकेला दिखे तो उसे अपना साथ दीजिए, उसे मुर्झाने से बचाइए। अगर आप अकेले हों, तो आप भी किसी का साथ लीजिए, आप खुद को भी मुर्झाने से रोकिए। पहले भी लिखा था, आज दुहरा रहा हूं कि अकेलापन संसार में सबसे बड़ी सजा है।
गमले के पौधे को तो हाथ से खींच कर एक दूसरे पौधे के पास किया जा सकता है, लेकिन आदमी को करीब लाने के लिए जरुरत होती है रिश्तों को समझने की, सहेजने की और समेटने की।
अगर मन के किसी कोने में आपको लगे कि ज़िंदगी का रस सूख रहा है, जीवन मुर्झा रहा है तो उस पर रिश्तों के प्यार का रस डालिए। खुश रहिए और मुस्कुराइए। कोई यूं ही किसी और की गलती से आपसे दूर हो गया हो तो उसे अपने करीब लाने की कोशिश कीजिए और हो जाइए हरा-भरा। 

केळीच्या पानावर जेवण का.. ?

हिंदू धर्म ग्रंथा मध्ये केळीच्या झाडाला पवित्र मानण्यात आले आहे. याच कारणा मुळे या झाडाची पूजा केली जाते. काही विशेष पूजन कर्मा मध्ये या झाडाच्या पानांचा मंडप ही तयार केला जातो. हे झाड भगवान विष्णूला प्रिय आहे. यामुळे ज्या लोकांचे लग्न जमण्यास उशीर होता आहे त्यांना या झाडाची पूजा करण्यास सांगितले जाते.... वास्तु नुसार केळीचे झाड घराच्या समोर किंवा बागे मध्ये लावणे शुभ मानले जाते......

भारतातील काही भागां मध्ये या झाडाच्या पवित्र ते मुळे याचा उपयोग जेवण करण्यासाठी केला जातो. यामागे धार्मिक तसेच वैज्ञानिक कारण आहे. आज आम्ही तुम्हाला केळीच्या पानांवर जेवण केल्याने कोण कोणते फायदे होतात या संदर्भात माहिती देत आहोत......

१]केळीच्या पानां मधून मिळणारे फायबर चटई, जाड पेपर, पेपर पल्प बनवण्या साठी उपयोगात आणले जाते. केळीच्या पानांवर गरम जेवण वाढल्याने त्या पानांमध्ये असलेले पोषक तत्व अन्नात मिसळतात, जे शरीरा साठी चांगले असतात.....

२]केळीच्या पानांवर जेवण केल्यास डाग-खाज, पुरळ-फोडं अशा समस्या दूर होतात.…

३]केळीच्या पाना मध्ये अधिक प्रमाणात एपिगालोकेटचीन गलेट आणि इजीसीजी सारखे पॉलीफिनोल्स एंटीऑक्सीडेंट आढळतात. केळीच्या पानावर जेवण केल्यास हे एंटीऑक्सीडेंट आपल्या शरीराला मिळतात. हे एंटीऑक्सीडेंट त्वचेला दीर्घ काळा पर्यंत तरुण ठेवण्यास मदत करतात.……

४]त्वचेवर पुरळ, डाग, मुरूम असतील तर केळीच्या पानावर खोबरेल तेल टाकून हे पान त्वचेवर गुंडाळल्यास त्वचेचे आजार लवकर ठीक होतात.……

Thursday 18 December 2014

खोबरेल तेल

जुन्या वर नवा प्रकाश
कोकोनट ऑइल
डॉ. मीना नेरुरकर
     गेली तीस वर्षे नारळाच्या खोबर्‍याला,खोबरेल तेलाला आरोग्यबाधक ठरवल्यावर त्याचे ग्रह पालटले आहेत. दिवसागणिक वाढत असलेल्या अल्झायमर या रोगावर जालीम उपाय म्हणून खोबरेल तेलाला आता महत्त्व आलेले आहे. अमेरिकेत डॉक्टर पेशंटना टोस्टवर खोबरेल तेल लावून द्या असे सांगत आहेत. इतके दिवस आजूबाजूचा काहीही गंध नसलेली अल्झायमर पीडित जनता महिनाभराच्या टोस्टवरच्या खोबरेल तेलाने एकेकाळचे परिचित जग परत नव्याने ओळखायला लागलेली आहे.
     कोकोनट ऑइलचे भाग्य पालटायला डॉ. ब्रूस फाइफ याच्या रूपाने गॉड़ादर लाभला. अमेरिकेच्या र्‍होड आयलंड राज्यात राहणार्‍या या न्यूट्रिशनल डॉक्टरचा शेजारी पॉल सोएर्स नावाचा फिलिपिनो माणूस होता. पॉल मिरॅकल ऑइल विकायचा. आजूबाजूची फिलिपिनो जनता काहीही झाले की, त्याच्या दुकानात धावत यायची व तेल घेऊन जायची. कुतुहल म्हणून ब्रूसने एके दिवशी पॉलला विचारणा केली. पॉल म्हणाला, थायलंड वा फिलिपाइन्स देशातून नारळ आणतो, नारळाच्या डोळ्यात खिळा घालून पाणी काढतो, मग तो हातोड्याने फोडतो, आतले खोबरे किसतो, ते पाण्यात उकळत ठेवतो, पाणी आटून वर राहते ते कोकोनट ऑइल. कसल्याही व्याधीवर उपचार म्हणून देतो.
      डॉ. ब्रूस न्यूट्रिशनिस्ट असल्यामुळे त्याला प्रक्रिया न झालेल्या नैसर्गिक खाद्यपदार्थामध्ये रस होता. खोबर्‍यातून तेल काढण्याची किचकट प्रक्रिया सोपी करायला ब्रूसने खूप मदत केली. पॉलला खोबरे वाटायला मिक्सर आणून दिला. खोबर्‍यातून तेल काढायला द्राक्षातून वाइन काढायचा प्रेस आणून दिला. आता तेल काढणे खूप सोपे झाले. पॉलच्या सांगण्यावरून काहीही दुखत असले की, ब्रूसने चमचाभर कोकोनट ऑइल तोंडाने घ्यायला सुरुवात केली. कापलेल्या खरचटलेल्या ठिकाणी कोकोनट ऑइल लावायला सुरुवात केली. ब्रूसचे वजन कमी झाले, त्याची त्वचा तुकतुकीत दिसायला लागली.जखम पटकन भरायला लागली. ब्रूसच्या आश्चर्याला पारावर उरला नाही.
        इतके दिवस नारळाला का वाईट म्हणत होते याबद्दल त्याने खोलात जाऊन तपास करायला सुरुवात केल्यावर त्याला आढळून आले की, सोयाबीन इंडस्ट्रीने जगात पाय रोवण्यासाठी मुद्दामहून खोबर्‍याविरुद्ध अपप्रचार करायला सुरुवात केली होती. सगळे जण हार्ट ऍटॅकला घाबरतात. खोबरेल तेलात स्निग्धांश जास्त असतात व त्याने हार्ट ऍटॅक येतो, पण सोयाबीनचे पदार्थ खाल्ले तर हृदयविकार कमी होतात असा खोटा प्रचार सुरू केला. झाले. घाबरट लोकांनी हा रिपोर्ट वाचल्यावर कोकोनटचे पदार्थ खाणे कमी केले. चाणाक्ष सोयाबीन इंडस्ट्रीने स्वत:चे घोडे पुढे दामटले.
        ब्रूसने नारळ वापरत असलेल्या देशात जाऊन खोबरेल तेलावर संशोधन केले. खोबर्‍यात असतात ते Medium chain fatty acids असतात जे शरीराला हितकारक असतात. थायलंड,इंडोनेशिया फिलिपाइन्स, पॉलिनेशियन देश खोबर्‍यावर जगतात. त्यांच्यात हार्ट ऍटॅकचे प्रमाण जगापेक्षा खूप कमी आहे. ब्रूसने शोधाअंती खोबर्‍यामुळे हार्ट ऍटॅक येत नाही असे विधान केले.
     १९९९साली त्याने Coconut Oil miracle या नावाचे पुस्तक स्वत:च प्रसिद्ध केले. ते वाचून डॉ. मेरी न्यूपोर्ट हिने २००८ साली अल्झायमरच्या रोग्यांमध्ये कोकोनट ऑइलचा उपयोग करून पाहिला. फरक बघून तीदेखील चकीत झाली. इंटरनेटमुळे तो रिपोर्ट जगभर पसरला.
      डॉ. ब्रूसने एकूण १८ पुस्तके लिहिली. त्यांच्या अनेक आवृत्त्या निघाल्या. लोक एकमेकाला ही पुस्तके भेट द्यायला लागले. केस, त्वचा यावर खोबरेल तेल लावून बघायला लागले.आता अनेक तरुण मंडळी खोबरेल तेल सर्रास वापरतात. यू ट्यूबवर अनेक हेल्थ फूड डॉक्टर नारळाचे दूध कसे बिनधास्तपणे वापरावे याच्या रोज नव्या रेसिपीज देतात.
     माझ्या आजीच्या बटव्यात जगातल्या सगळ्या व्याधींवर अक्सर इलाज म्हणून एकच औषध होते ते म्हणजे खोबरेल तेल.परीक्षा आली की. डोकं थंड राहावे म्हणून ती माझ्या डोक्यावर खोबरेल तेल थापटायची, केस काळे राहावेत म्हणून आंघोळीच्या आधी डोक्याला खोबरल तेलाचा मसाज करायची, कातडी चरबरीत होऊ नये म्हणून अंगाला खोबरेल तेल चोळायची, कान दुखला तर कानात गरम खोबरेल तेलाची धार सोडायची.सर्दी झाली, डोके खाली करून नाकात गरम खोबरेल तेलाचे थेंब घालायची. ती जेव्हा ९५ व्या वर्षी गेली तेव्हा डोक्यावरचे सगळे केस शाबूत होते व काळे होते.
       सध्या माझी हॉर्वर्ड विद्यापीठातली हुशार मुलगी अदिती नियमितपणे खोबरेल तेल वापरते. पणजीसारखे डोक्याला अंगाला तर लावतेच, पण ब्रूसने सांगितल्याप्रमाणे रोज तीन चमचे तेल पिते. खोबरेल तेलात जेवण करते. खोबरेल तेलावर वाढूनही मी त्याचा वापर थांबवला म्हणून माझी कीव करते.
      कोकोनट गुरू डॉ. ब्रूसच्या अथक प्रयत्नांनी अमेरिकेतही खूप लोकप्रिय होत आहे. आता मीही न बिचकता वाटी वाटी सोलकढी पिते. आमट्या,उसळी,कालवणांना नारळाचे वाटण घालते. कोकोनट ऑइल अँटी एजिंग आहे असल्याचे रोज नवनवे रिपोर्ट बाहेर येत आहेत.

Friday 5 December 2014

प्रभु जरुर खुश होगे

एक बार एक अजनबी किसी के घर गया। वह अंदर गया और मेहमान कक्ष मे बैठ गया। 

वह खाली हाथ आया था तो उसने सोचा कि कुछ उपहार देना अच्छा रहेगा। तो उसने वहा टंगी एक पेन्टिंग उतारी और जब घर का मालिक आया, उसने पेन्टिंग देते हुए कहा, यह मै आपके लिए लाया हुँ। घर का मालिक, जिसे पता था कि यह मेरी चीज मुझे ही भेंट दे रहा है, सन्न रह गया। 

अब आप ही बताएं कि क्या वह भेंट पा कर, जो कि पहले से ही उसका है, उस आदमी को खुश होना चाहिए ?
मेरे ख्याल से नहीं....

लेकिन यही चीज हम भगवान के साथ भी करते है। हम उन्हे रूपया, पैसा चढाते है और हर चीज जो उनकी ही बनाई है, उन्हें भेंट करते हैं! लेकिन मन मे भाव रखते है की ये चीज मै भगवान को दे रहा हूँ! और सोचते हैं कि ईश्वर खुश हो जाएगें। 

मूर्ख है हम! हम यह नहीं समझते कि उनको इन सब चीजो कि जरुरत नही। अगर आप सच मे उन्हे कुछ देना चाहते हैं तो अपनी श्रद्धा दीजिए, उन्हे अपने हर एक श्वास मे याद कीजिये और विश्वास मानिए प्रभु जरुर खुश होगे !


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Wednesday 3 December 2014

यक्ष और युधिष्ठिर संवाद


यक्ष– जीवन का उद्देश्य क्या है?
युधिष्ठिर – जीवन का उद्देश्य उसी चेतना को जानना है जो जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त है। उसे जानना ही मोक्ष है।

यक्ष– जन्म का कारण क्या है?
युधिष्ठिर – अतृप्त वासनाएं, कामनाएं और कर्म फल ये ही जन्म का कारण हैं।

यक्ष– जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त कौन है?
युधिष्ठिर – जिसने स्वयं को, उस आत्मा को जान लिया वह जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त है।

यक्ष– वासना और जन्म का सम्बन्ध क्या है?
युधिष्ठिर – जैसी वासनाएं वैसा जन्म। यदि वासनाएं पशु जैसी तो पशु योनि में जन्म। यदि वासनाएं मनुष्य जैसी तो मनुष्य योनि में जन्म।

यक्ष– संसार में दुःख क्यों है?
युधिष्ठिर – लालच, स्वार्थ, भय संसार के दुःख का कारण हैं।

यक्ष– तो फिर ईश्वर ने दुःख की रचना क्यों की?
युधिष्ठिर – ईश्वर ने संसार की रचना की और मनुष्य ने अपने विचार और कर्मों से दुःख और सुख की रचना की।

यक्ष– क्या ईश्वर है? कौन है वह? क्या रुप है उसका? क्या वह स्त्री है या पुरुष?
युधिष्ठिर – हे यक्ष! कारण के बिना कार्य नहीं। यह संसार उस कारण के अस्तित्व का प्रमाण है। तुम हो इसलिए वह भी है उस महान कारण को ही आध्यात्म में ईश्वर कहा गया है। वह न स्त्री है न पुरुष।

यक्ष– उसका स्वरूप क्या है?
युधिष्ठिर – वह सत्-चित्-आनन्द है, वह अनाकार ही सभी रूपों में अपने आप को स्वयं को व्यक्त करता हैं

यक्ष– वह अनाकार स्वयं करता क्या है?
युधिष्ठिर – वह ईश्वर संसार की रचना, पालन और संहार करता है।

यक्ष– यदि ईश्वर ने संसार की रचना की तो फिर ईश्वर की रचना किसने की?
युधिष्ठिर – वह अजन्मा अमृत और अकारण हैं

यक्ष– भाग्य क्या है?
युधिष्ठिर – हर क्रिया, हर कार्य का एक परिणाम है। परिणाम अच्छा भी हो सकता है, बुरा भी हो सकता है। यह परिणाम ही भाग्य है। आज का प्रयत्न कल का भाग्य है।

यक्ष– सुख और शान्ति का रहस्य क्या है?
युधिष्ठिर – सत्य, सदाचार, प्रेम और क्षमा सुख का कारण हैं। असत्य, अनाचार, घृणा और क्रोध का त्याग शान्ति का मार्ग है।

यक्ष– चित्त पर नियंत्रण कैसे संभव है?
युधिष्ठिर – इच्छाएं, कामनाएं चित्त में उद्वेग उतपन्न करती हैं। इच्छाओं पर विजय चित्त पर विजय है।

यक्ष– सच्चा प्रेम क्या है?
युधिष्ठिर – स्वयं को सभी में देखना सच्चा प्रेम है। स्वयं को सर्वव्याप्त देखना सच्चा प्रेम है। स्वयं को सभी के साथ एक देखना सच्चा प्रेम है।

यक्ष– तो फिर मनुष्य सभी से प्रेम क्यों नहीं करता?
युधिष्ठिर – जो स्वयं को सभी में नहीं देख सकता वह सभी से प्रेम नहीं कर सकता।

यक्ष– आसक्ति क्या है?
युधिष्ठिर – प्रेम में मांग, अपेक्षा, अधिकार आसक्ति है।

यक्ष– बुद्धिमान कौन है?
युधिष्ठिर – जिसके पास विवेक है।

यक्ष– नशा क्या है?
युधिष्ठिर – आसक्ति।

यक्ष– चोर कौन है?
युधिष्ठिर – इन्द्रियों के आकर्षण, जो इन्द्रियों को हर लेते हैं चोर हैं।

यक्ष– जागते हुए भी कौन सोया हुआ है?
युधिष्ठिर – जो आत्मा को नहीं जानता वह जागते हुए भी सोया है।

यक्ष– कमल के पत्ते में पड़े जल की तरह अस्थायी क्या है?
युधिष्ठिर – यौवन, धन और जीवन

यक्ष– नरक क्या है?
युधिष्ठिर – इन्द्रियों की दासता नरक है।

यक्ष– मुक्ति क्या है?
युधिष्ठिर – अनासक्ति ही मुक्ति है।

यक्ष– दुर्भाग्य का कारण क्या है?
युधिष्ठिर – मद और अहंकार

यक्ष– सौभाग्य का कारण क्या है?
युधिष्ठिर – सत्संग और सबके प्रति मैत्री भाव।

यक्ष– सारे दुःखों का नाश कौन कर सकता है?
युधिष्ठिर – जो सब छोड़ने को तैयार हो।

यक्ष– मृत्यु पर्यंत यातना कौन देता है?
युधिष्ठिर – गुप्त रूप से किया गया अपराध

यक्ष– दिन-रात किस बात का विचार करना चाहिए?
युधिष्ठिर – सांसारिक सुखों की क्षण-भंगुरता का।

यक्ष– संसार को कौन जीतता है?
युधिष्ठिर – जिसमें सत्य और श्रद्धा है।

यक्ष– भय से मुक्ति कैसे संभव है?
युधिष्ठिर – वैराग्य से।

यक्ष– मुक्त कौन है?
युधिष्ठिर – जो अज्ञान से परे है।

यक्ष– अज्ञान क्या है?
युधिष्ठिर – आत्मज्ञान का अभाव अज्ञान है।

यक्ष– दुःखों से मुक्त कौन है?
युधिष्ठिर – जो कभी क्रोध नहीं करता।

यक्ष– वह क्या है जो अस्तित्व में है और नहीं भी?
युधिष्ठिर – माया।

यक्ष– माया क्या है?
युधिष्ठिर – नाम और रूपधारी नाशवान जगत।

यक्ष ने प्रश्न किया – मनुष्य का साथ कौन देता है?
युधिष्ठिर ने कहा – धैर्य ही मनुष्य का साथ देता है.

यक्ष– यश लाभ का एक मात्र उपाय क्या है?

यक्ष– हवा से तेज कौन चलता है?
युधिष्ठिर – मन.

यक्ष– विदेश जाने वाले का साथी कौन होता है?
युधिष्ठिर – विद्या.

यक्ष– किसे त्याग कर मनुष्य प्रिय हो जाता है?
युधिष्ठिर – अहम्भाव से उत्पन्न गर्व के छूट जाने पर.

यक्ष– किस चीज़ के खो जानेपर दुःख नहीं होता?
युधिष्ठिर – क्रोध.

यक्ष– किस चीज़ को गंवाकर मनुष्य धनी बनता है?
युधिष्ठिर – लोभ.

यक्ष– ब्राम्हण होना किस बात पर निर्भर है? जन्म पर, विद्या पर, या शीतल स्वभाव पर?
युधिष्ठिर – शीतल स्वभाव पर.

यक्ष– कौन सा एक मात्र उपाय है जिससे जीवन सुखी हो जाता है?
युधिष्ठिर – अच्छा स्वभाव ही सुखी होने का उपाय है.

यक्ष– सर्वोत्तम लाभ क्या है?
युधिष्ठिर – आरोग्य.

यक्ष– धर्म से बढ़कर संसार में और क्या है?
युधिष्ठिर – दया.

यक्ष– कैसे व्यक्ति के साथ की गयी मित्रता पुरानी नहीं पड़ती?
युधिष्ठिर – सज्जनों के साथ की गयी मित्रता कभी पुरानी नहीं पड़ती.

यक्ष– इस जगत में सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है?
युधिष्ठिर – रोज़ हजारों-लाखों लोग मरते हैं फिर भी सभी को अनंतकाल तक जीते रहने की इच्छा होती है. इससे बड़ा आश्चर्य और क्या हो सकताहै?
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मन की असीमित इच्छाओं से बनाया गया पात्र

एक राजा बहुत दयालु था। उसके महल के द्वार पर बड़ी भीड़ लगती थी। वो सब की इच्छाएं पूरी करने की कोशिश करता था। उसकीबड़ी खयाति थी। एक बार एक फकीरउसके के द्वार पे आया। राजा ने उससे कहा, ''आप जो भी चाहते हो, मांग लो।''

क्योंकि दिन के पहले याचक की कोई भी इच्छा वो जरूर पूरी करता था। फकीर ने अपने छोटे से भिक्षापात्रको आगे करते हुए कहा, "राजन मुझे जायदा कुछ नहीं चाहिए। बस आप इसे स्वर्ण मुद्राओं से भर दें।''

राजा ने कहा, "बस इतनी सी बात" और भिक्षा पात्र में स्वर्ण मुद्राएं डाली गई। लेकिन यह क्या उसे भरना असंभव साबित हो रहा था। वह तो जैसे जादुई भिक्षा पात्र था। जितनी अधिक मुद्राएं उसमें डाली गईं, वह तो उतना ही अधिक खाली होता गया।

राजा को हैरान और दुखी देख वह फकीर बोला, "राजन अगर आप इसे नहीं भरे सकते तो कह दें मैं वैसे ही खाली पात्र लेकर चला जाऊंगा। ज्यादा से ज्यादा इतना ही होगा ना कि लोग कहेंगे कि राजा अपना वचन पूरा नहीं कर सका।"

पर राजा हार मानने को तैयार नहीं था। उसने धीरे-धीरे अपना सारा खजाना खाली कर दिया। उसके पास जो कुछभी था, सब कुछ उस पात्र में डाल दिया गया। लेकिन वह अद्भुत पात्र ना भर सका।

अब राजा नें हार मान ली, फकीर और उसके उस अद्भुत भिक्षा पात्र के आगे उसका सीस झुक गया। हाथ जोड़ कर उसने कहा, "भिक्षु, तुम्हारा यह पात्र साधारण नहीं है। इसे भरना मेरी सामर्थ्य से बाहर है। क्या मैं पूछ सकता हूं कि इस अद्भुत पात्र का रहस्य क्या है?"

फकीर हंसने लगा और बोला, "कोई विशेष रहस्य नहीं राजन। असल में यह पात्र मनुष्य के मन की असीमित
इच्छाओं से बनाया गया है। क्या आपको ज्ञात नहीं है कि मनुष्य का मन कभी भी भरा नहीं जा सकता? धन से, पद से, ज्ञान से। किसी से भी भरो, वह खाली का खाली ही रहेगा। क्योंकि इन चीजों से भरने के लिए वह बना ही नहीं है। इस सत्य को न जान पाने के कारण ही मनुष्य जितना पाता है, उतना ही और दरिद्र होता जाता है। उसके मन की इच्छाएं कुछभी पाकर शांत नहीं होती हैं। क्योंकि, उसका मन तो परमात्मा को पाने के लिए ही बना है। आप अगर शांति चाहते हो ? संतृप्ति चाहते हो ? तो अपने संकल्प को कहने दो कि परमात्मा के अतिरिक्त और मुझे कुछ भी नहीं चाहिए।"

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