पथवारी की कहानी
दो भाई बेन हां। उली तीर बेन रेवती पेली तीर भाई रेवतो। बेंको नेम हो रोज भाई को मुंडो देखणु। बेन रोज भाई का घर जावती। जाता जाता रास्ताम बा चार पांच कंकर भेळा करती। दूध - दही सु बिन सींचती और एक जगहपर रखकर केवती , "हे पथवारी माता म्हारा भाई की बेलबाड़ी बढबा दे। और पछ भाई का घर जावती। भाई को मुंडो देखर वापस आवति।
एक दिन भाई बोल्यो , " रोज बेन आव। आज म जावु। " और भाई निकल पड्यो। रास्ताम पथवारी को बड़ो सरो डूंगर भाई न दिख्यो। भाई सोच्यो ," म्हारा बेन न आवता जावता कित्ती तकलीफ होती होशी। " जिको बो पथवारी माताका सब कंकर बिखेर देव।
इश्यो का-यासु भाई को पेट दुखबा लाग और बो हाय हाय करतो घर चले जाव। भाई आपरा बेन रा लिय संदेशो भेज , "थारा भाई को पेट घणो दुख ह। भाई को मुंडो देखनु होशी तो जल्दी आ। " बेन घर सु निकल। रस्ताम पथवारी बिखरी पड़ी ही। बेन पूरी पथवारी भेळी करी। बेन ज्यान ज्यान पथवारी भेळी कर ब्यान ब्यान भाई को पेट दुखणु काम हुव। पूरी पथवारी भेळी हुया बाद भाई को पेट दुखणु बंद हुयग्यो। सारी पथवारी दूध दही सु सीची और बोली, " हे पथवारी माता म्हारा भाई की बेलबाड़ी बढबा दे। " पछ बा भाई का घर कण निकली।
बेन घर आया फेर भाई पूछ्यो , "बेन म्हारो इत्तो पेट दुख्यो और तू अब आव ह। " जना बेन बोली, "भाई, म तो निकली घना जल्दी ही। पर रास्तम पथवारी को डूंगर हो जिको कोई बिखेर दियो हो। जिको भेळी करती आई जिकाऊ इत्ती देर हुई। " जना भाई बोल्यो , "पथवारी को डूंगर मच बिख-यो हो। " बेन बोली, "तू बिख-यो जिको दुःख पायो। म तो थारी बेलबाड़ी बढबा का लिय पथवारी रोज सींचती और एक जगह जमा कारण रखती। "
हे पथवारी माँ , भाई को पेट दुख्यो ब्यान कुनको मति दुखन दीज्यो। थान सिच जिकाको चोखो करज्यो। भूली चुकी माफ़ करज्यो।
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