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Monday 14 July 2014

मूक प्राणियों के प्रती संवेदना



मद्रास मे कांग्रेस का २६वा अधिवेशन चल रहा था. गांधीजी श्रीवास आयंगार के मकान मे ठहरे थे. वे उन दिनो किसी कारणवश राजनिती से अलग रह रहे थे.
एक दिन शाम के समय गांधीजी आगंतुको से बातचीत कर रहे थे. तभी श्री आयंगार एक मसौदा सामने लेकर आए , जिसमे हिंदू मुस्लीम समझौते की बात थी.
सारी बात सुनकर गांधीजी ने कहा, "भाई इसमे मुझे दिखाने जैसा क्या है? किसी भी शर्त पर हिंदू मुस्लीम समझौता हो सके मुझे मंजूर ही होगा ."
श्री आयंगार मसौदा लेकर आगे की प्रक्रिया पूर्ण करने चलें गये . गांधीजी शाम की प्रार्थना के बाद सो गये .
प्रातः उठते ही गांधीजी ने तात्काल महादेव देसाई और काका कालेलकर को तुरंत बुलाया और कहा, "कल शाम मुझसे बहोत बडी गलती हो गई . मैने मसौदे पर बिना विचार किए ही सहमती दे दी. उसमे मुस्लिमो को गोवध करने की आम इजाजत दी गई है. गोवध मुझसे भला कैसे बर्दाश्त होंगा? अतः उन लोगो को तुरंत जाकर कह आओ की यह प्रस्ताव मुझे मान्य नही. परिणाम चाहे जो हो पर मैं बेचारी गायो का जीवन संकट मे नही डाल सकता ."
वह प्रस्ताव तात्काल अस्वीकृत कर दिया गया.
सारांश
वस्तूतः मुक प्राणियों के प्रती संवेदना रख हम स्वयं को सच्चा मानव सिद्ध  करते है.



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