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Monday, 12 October 2015

आयुष्याला द्यावे उत्तर..


ही कविता अशीच सोशल मीडिया वर सापडली खुप छान वाटली कुणी लिहिली हे महित नाही पण ज्याणीपण लिहिली सुरेख आहे


असे जगावे दुनियेमध्ये,
आव्हानाचे लावुन अत्तर,
नजर रोखुनी नजरे मध्ये,
आयुष्याला द्यावे उत्तर..

नको गुलामी नक्षत्रांची,
भीती आंधळी ताऱ्यांची,
आयुष्याला भिडतानाही,
चैन करावी स्वप्नांची..

असे दांडगी इच्छा ज्याची,
मार्ग तयाला मिळती सत्तर,
नजर रोखुनी नजरे मध्ये, 
आयुष्याला द्यावे उत्तर..

पाय असावे जमिनीवरती, 
कवेत अंबर घेताना,
हसू असावे ओठांवरती, 
काळीज काढुन देताना..

संकटासही ठणकावुन सांगावे, 
आता ये बेहत्तर,
नजर रोखुनी नजरे मध्ये, 
आयुष्याला द्यावे उत्तर..

करुन जावे असेही काही, 
दुनियेतुनी या जाताना,
गहिवर यावा जगास  सा-या, 
निरोप शेवटचा देताना..

स्वर कठोर त्या काळाचाही, 
क्षणभर व्हावा कातर कातर,
नजर रोखुनी नजरे मध्ये, 
आयुष्याला द्यावे उत्तर...


        किमान दोनदा वाचा

मीठा एप्पल

एक छोटा सा बच्चा अपने दोनों हाथों में एक एक एप्पल लेकर खड़ा था

उसके पापा ने मुस्कराते हुए कहा कि "बेटा एक एप्पल मुझे दे दो"

इतना सुनते ही उस बच्चे ने एक एप्पल को दांतो से कुतर लिया.

उसके पापा कुछ बोल पाते उसके पहले ही उसने अपने दूसरे एप्पल को भी दांतों से कुतर लिया

अपने छोटे से बेटे की इस हरकत को देखकर बाप ठगा सा रह गया और उसके चेहरे पर मुस्कान गायब हो गई थी..

तभी उसके बेटे ने अपने नन्हे हाथ आगे की ओर बढाते हुए पापा को कहा.... "पापा ये लो.. ये वाला ज्यादा मीठा है."

शायद हम कभी कभी पूरी बात जाने बिना निष्कर्ष पर पहुंच जाते हैं.. किसी ने क्या खूब लिखा है: नजर का आपरेशन तो सम्भव है, पर नजरिये का नही..!!! 


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गणपती का बसवतात?


आपण सगळे दर वर्षी गणपती बसवतो पण का बसवतो याचे कारण कोणालाही माहीत नाही. आपल्या धर्म ग्रंथानुसार भगवान वेद व्यास ऋषि यांनी महाभारत हे महाकाव्य रचले, परन्तु त्यांना त्याचे लिखाण करणे शक्य होत नव्हते म्हणून त्यांनी श्री गणेशाची आराधना केली आणि गणपती ला महाभारत लिहिन्याची विनंती केली. त्या वेळी गणपती ने होकार दिला. हे लिखाण दिवस रात्र चालेल आणि त्या मुळे गणपती ला थकवा येईल, आणि पाणि ही वर्ज्य होते अशा वेळी गणपतीच्या शरीराचे तापमान वाढू नए म्हणून व्यास यांनी श्री गणपती ला मृत्तिकेचे म्हणजे मातीचे लेपन केले आणि भाद्रपद शुक्ल चतुर्थीला गणपती ची यथा सांग पूजा केली. माती चे लेपन केले म्हणून गणपती अकडून गेला म्हणून याला पार्थिव गणेश असे नाव पडले. हे लिखाण दहा दिवस चालले. अनंत चतुर्दशीला हे लिखाण संपल्यावर व्यास यांनी गणपती कड़े पाहिले असता त्याच्या शरीराचे तापमान खुप वाढले होते. हे तापमान कमी व्हावे आणि गणपती च्या अंगावरची माती निघावी म्हणून व्यासांनी गणपती ला पाण्यात शिरवले. या दहा दिवसात व्यासांनी गणपती ला खाण्यास वेगवेगळे पदार्थ दिले. तेव्हा पासून गणपती बसवण्याची प्रथा पडली. या काळात गणपती ला आवडणारे पदार्थ नैवेद्य म्हणून दाखवतात.

गणपती बाप्पा मोरया



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रामायण के प्रमाण

रामायण और भगवान राम से हिन्दुओं की आस्था जुड़ी हुई है, लेकिन अकसर ये सवाल उठते रहे हैं कि क्या सच में भगवान राम का इस धरती पर जन्म हुआ था? क्या रावण और हनुमान थे? हम उनको तो किसी के सामने नहीं ला सकते लेकिन उनके अस्तित्व के प्रमाण को आपके सामने ला सकते हैं. भारत और श्रीलंका में कुछ ऐसी जगहें हैं जो इस बात का प्रमाण देती हैं कि रामायण में लिखी हर बात सच है.


1. कोबरा हुड केव श्री लंका 
कहा जाता है कि रावण जब सीता का अपहरण कर के श्रीलंका पहुंचा तो सबसे पहले सीता जी को इसी जगह रखा था. इस गुफ़ा पर हुई नक्काशी इस बात का प्रमाण देती है.

2. हनुमान गढ़ी 
यह वही जगह है जहां हनुमान जी ने भगवान राम का इंतज़ार किया था. रामायण में इस जगह के बारे में लिखा है, अयोध्या के पास इस जगह पर आज एक हनुमान मंदिर भी है.

3. भगवान हनुमान के पद चिन्ह
जब हनुमान जी ने सीता जी को खोजने के लिए समुद्र पार किया था तो उन्होंने भव्य रूप धारण किया था. इसीलिए जब वो श्रीलंका पहुंचे तो उनके पैर के निशान वहां बन गए थे, जो आज भी वहां मौजूद हैं.

4. राम सेतु
रामायण और भगवान राम के होने का ये सबसे बड़ा सबूत है. समुद्र के ऊपर श्रीलंका तक बने इस सेतु के बारे में रामायण में लिखा है और इसकी खोज भी की जा चुकी है. ये सेतु पत्थरों से बना है और ये पत्थर पानी पर तैरते हैं.

5. पुरातत्व विभाग ने भी माना
भगवान राम के होने की बात खुद पुरातत्व विभाग भी मानता है. पुरातत्व विभाग के अनुसार 1,750,000 साल पहले श्रीलंका में ही सबसे पहले इंसानों के घर होने की बात कही गई है और राम सेतु भी उसी काल का है.

6. पानी में तैरने वाले पत्थर
राम सेतु एक ऐसा पुल था जिसके पत्थर पानी पर तैरते थे. सुनामी के बाद रामेश्वरम में उन पत्थरों में से कुछ अलग हो कर जमीन पर आ गए थे. शोधकर्ताओं नें जब उसे दोबारा पानी में फेंका तो वो तैर रहे थे, जबकि वहां के किसी और आम पत्थर को पानी में डालने से वो डूब जाते थे.

7. द्रोणागिरी पर्वत
युद्ध के दौरान जब लक्ष्मण को मेघनाथ ने मूर्छित कर दिया था और उनकी जान जा रही थी, तब हनुमान जी संजीवनी लेने द्रोणागिरी पर्वत गए थे. उन्हें संजीवनी की पहचान नहीं थी तो उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का निर्णय लिया. युद्ध के बाद उन्होंने द्रोणागिरी को यथास्थान पहुंचा दिया. उस पर्वत पर आज भी वो निशान मौजूद हैं जहां से हनुमान जी ने उसे तोड़ा था.

8. श्रीलंका में हिमालय की जड़ी-बूटी
श्रीलंका के उस स्थान पर जहां लक्ष्मण को संजीवनी दी गई थी, वहां हिमालय की दुर्लभ जड़ी-बूटियों के अंश मिले हैं. जबकि पूरे श्रीलंका में ऐसा नहीं होता और हिमालय की जड़ी-बूटियों का श्रीलंका में पाया जाना इस बात का बहुत बड़ा प्रमाण है.

9. अशोक वाटिका
हरण के पश्चात सीता माता को अशोक वाटिका में रखा गया था, क्योंकि सीता जी ने रावण के महल में रहने से मना कर दिया था. आज उस जगह को Hakgala Botanical Garden कहते हैं और जहां सीता जी को रखा गया था उस स्थान को 'सीता एल्या' कहा जाता है.

10. लेपाक्षी मंदिर
सीता हरण के बाद जब रावण उन्हें आकाश मार्ग से लंका ले जा रहा था तब उसे रोकने के लिए जटायू आए थे. रावण ने उनका वध कर दिया था. आकाश से जटायू इसी जगह गिरे थे. यहां आज एक मंदिर है जिसे लेपाक्षी मंदिर के नाम से जाना जाता है.

11. टस्क हाथी
रामायण के एक अध्याय, सुंदर कांड में श्रीलंका की रखवाली के लिए विशालकाय हाथी का विवरण है, जिन्हें हनुमान जी ने धराशाही किया था. पुरातत्व विभाग को श्रीलंका में ऐसे ही हाथियों के अवशेष मिले हैं जिनका आकार आम हाथियों से बहुत ज़्यादा है.

12. कोंडा कट्टू गाला
हनुमान जी के लंका जलाने के बाद रावण भयभीत हो गया था कि हनुमान जी दोबारा हमला न कर दें, इसलिए रावण ने सीता जी को अशोक वाटिका से हटा कर कोंडा कट्टू गाला में रखा था. यहां पुरातत्व विभाग को कई गुफ़ाएं मिली हैं जो रावण के महल तक जाती हैं.

13. रावण का महल
पुरातत्व विभाग को श्रीलंका में एक महल मिला है जिसे रामायण काल का ही बताया जाता है. यहां से कई गुप्त रास्ते निकलते हैं जो उस शहर के मुख्य केंद्रो तक जाते हैं. ध्यान से देखने पर ये पता चलता है कि ये रास्ते इंसानों द्वारा बनाए गए हैं.

14. कालानियां
रावण के मरने के बाद विभीषण को लंका का राजा बनाया गया था. विभीषण ने अपना महल कालानियां में बनाया था जो कैलानी नदी के किनारे था. पुरातत्व विभाग को इस नदी के किनारे उस महल के कुछ अवशेष भी मिले हैं.

15. लंका जलने के अवशेष
रामायण के अनुसार हनुमान जी ने पूरे लंका को आग लगा दी थी, जिसके प्रमाण उस जगह से मिलते हैं. जलने के बाद उस जगह की मिट्टी काली हो गई है जबकि उसके आस-पास की मिट्टी का रंग आज भी वही है.

16. दिवूरमपोला, श्रीलंका
रावण से सीता को बचाने के बाद भगवान राम ने उन्हें अपनी पवित्रता साबित करने को कहा था, जिसके लिए सीता जी ने अग्नि परीक्षा दी थी. आज भी उस जगह पर वो पेड़ मौजूद है जिसके नीचे सीता जी ने इस परीक्षा को दिया था. उस पेड़ के नीचे वहां के लोग आज भी अहम फ़ैसले लेते हैं.

17. रामलिंगम
रावण को मारने के बाद भगवान राम को पश्चाताप करना था क्योंकि उनके हाथ से एक ब्राहमण का कत्ल हुआ था. इसके लिए उन्होंने शिव की आराधना की थी. भगवान शिव ने उन्हें चार शिवलिंग बनाने के लिए कहा. एक शिवलिंग सीता जी ने बनाया जो रेत का था. दो शिवलिंग हनुमान जी कैलाश से लेकर आए थे और एक शिवलिंग भगवान राम ने अपने हाथ से बनाया था, जो आज भी उस मंदिर में हैं और इसलिए ही इस जगह को रामलिंगम कहते हैं.

18. जानकी मंदिर
नेपाल के जनकपुर शहर में जानकी मंदिर है. रामायण के अनुसार सीता माता के पिता का नाम जनक था और इस शहर का नाम उन्हीं के नाम पर जनकपुर रखा गया था. साथ ही सीता माता को जानकी के नाम से भी जाना जाता है और उसी नाम पर इस मंदिर का नाम पड़ा है जानकी मंदिर. यहां सीता माता के दर्शन के लिए हर रोज़ हज़ारो श्रद्धालु आते हैं.

19. पंचवटी
नासिक के पास आज भी पंचवटी तपोवन है, जहां अयोध्या से वनवास काटने के लिए निकले भगवान राम, सीता माता और लक्ष्मण रुके थे. यहीं लक्ष्मण ने सूपनखा की नाक काटी थी.

20. कोणेश्वरम मंदिर
रावण भगवान शिव की अराधना करता था और उसने भगवान शिव के लिए इस मंदिर की भी स्थापना करवाई. यह दुनिया का इकलौता मंदिर है जहां भगवान से ज़्यादा उनके भक्त रावण की आकृति बनी हुई है. इस मंदिर में बनी एक आकृति में रावण के दस सिरों को दिखाया गया है. कहा जाता है कि रावण के दस सिर थे और उसके दस सिर पर रखे दस मुकुट उसके दस जगहों के अधिपत्य को दर्शाता है.

21. गर्म पानी के कुएं
रावण ने कोणेश्वरम मंदिर के पास गर्म पानी के कुएं बनवाए थे, जो आज भी वहां मौजूद हैं.


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श्रीगणेश एकदंत कैसे हुए ?


कार्तवीर्यका वध कर कृतार्थ हुए भगवान परशुरामजी कैलासपर गए । वहां उनकी भेंट सभी गणोंसे तथा गणाधीश गणपतिसे भी हुई । शंकरजीके दर्शनकी इच्छा श्रीपरशुरामके मनमें थी; परंतु उस समय शिव-पार्वतीजी विश्राम कर रहे थे । श्रीपरशुराम श्रीगणेशजीसे बोले, ‘‘ मैं परमेश्वरको नमस्कार करने हेतु अंतःपुरमें जा रहा हूं, प्रणाम कर मैं शीघ्र वापस आ जाऊंगा । जिसकी कृपासे मैं ने कार्तवीर्यको मारा, इक्कीस बार पृथ्वी निःक्षत्रिय की, उस जगद्गुरुसे जितना शीघ्र हो सके, मुझे भेंट करनी ही चाहिए ।’’ यह सुनकर गणेशजी बोले, ‘‘आप थोडी देर रुक जाइए ।’’

परंतु गणेशजीका कहना न मानकर हाथमें परशु लिए परशुरामजी निर्भयतासे भीतर जाने लगे, तब गणेशजीने उठकर उन्हें रोका । प्रेम तथा नम्रतासे एक ओर किया ।क्रोधसे उन्हें मारने हेतु परशुरामजीने परशु उठाया । धर्मको साक्षि रखकर गणेशजीने पुनः परशुरामजीको भीतर न जानेके लिए कहा । फिर भी परशुरामजी न माने । अतः अपनी सूंड कोटि योजन बढाकर उसमें परशुरामजीको फंसाकर गणेशजीने सारे सप्त लोकोंमें घुमाया । उस भ्रमणसे सुध-बुध खाए परशुरामजी जब सावध हुए तब उन्होंने गुरु दत्तने दिया स्तोत्रकवच पढकर गणेशजीपर अपना परशु फेंका । उसे व्यर्थ करने हेतु गणेशजीने अपना बायां दांत आगे किया । परशुका वार व्यर्थ गया; परंतु गणेशजीका दांत टूट गया ।

सभी ओर हंगामा मच गया । सभी एकत्रित हो गए । शंकर-पार्वतीजी भी बाहर आ गए । पूरी घटना समझनेपर पार्वतीजीने परशुरामजीसे कहा, ‘‘अरे राम, तुम्हारा जन्म ब्राह्मणवंशमें हुआ है, तुम पंडित हो । जमदग्नीका पुत्र होकर तुम योगीराजजीके शिष्य हो । तुम्हारी माता, मामाजी, नानाजी सारे ही श्रेष्ठ हैं, फिर तुमने कौनसे दोषके कारण ऐसा वर्तन किया ? अमोघ जैसा परशु लेकर कोई भी सिंहको मार सकता है, तुमने ऐसा परशु गणेशपर चलाया ! तुम जैसे कोटि कोटि रामोंको मारनेके लिए यह गणेश समर्थ है । अरे, यह गणेश कृष्णांश हैं । बडे व्रतके प्रभावसे इसका जन्म हुआ है ।’’

श्रीविष्णुजीने कहा, ‘‘हे देवी पार्वती, हमारी सुनें । आपके लिए जैसे गजानन एवं कार्तिकेय हैं, वैसे ही यह परशुराम भी हैं । इनके स्नेह एवं प्रेममें कुछ भेद नहीं है । आजसे आपके इस पुत्रका नाम एकदंत हो गया है । इनके कुल आठ नाम हैं – गणेश, एकदंत, हेरंब, विघ्ननायक, लंबोदर, शूर्पकर्ण, गजवक्र, गुहाग्रज ।’’ श्रीविष्णुजीने गणेशस्तोत्र कथन किया और कहा, ‘‘हे दुर्गे, इस परशुरामपर गुस्सा न करें । इस घटनासे ही गणेशजीको एकदंत नाम प्राप्त हुआ । आप पुत्रवत परशुरामको अभय दें ।’’ तबसे श्रीगणेश एकदंत हो गए ।


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समुद्र मंथन

हिन्दूधर्म की पौराणिक कथाओं में वैसे तो कई कथाएँ प्रचलित हैं… लेकिन देवता और दानवों द्वारा कियें गया समुद्र मंथन की कहानी सबसे अधिक प्रसिद्ध हैं.

कहा जाता हैं कि मंदार पर्वत को शेषनाग से बांधकर समुद्र का मंथन किया गया था और उस मंथन में समुद्र से ऐसी कई चीज़े प्राप्त हुई थी, जो बहुत अमूल्य थी. मंथन से प्राप्त चीजों में से एक चीज़ अमृत भी थी, जिसे लेकर देवताओं और असुरों में देवासुर युद्ध हुआ था और भगवान विष्णु की मदद से देवता इस युद्ध में अमृत को पाकर विजय प्राप्त कर पाए थे.

लेकिन क्या आप जानते हैं कि समुद्र का मंथन करने की बात देवतों के मन में आई कैसी थी? इस पुरे वाकये के पीछे एक रोचक कहानी हैं जिसे आज हम आपको बतायेंगे.

विष्णु पुराण की एक कथा के अनुसार एक बार देवराज इन्द्र अपनी किसी यात्रा से बैकुंठ लोक वापस लौट रहे थे और उसी समय दुर्वासा ऋषि बैकुंठ लोक से बाहर जा रहे थे. दुर्वासा ऋषि ने ऐरावत हाथी में बैठे इन्द्रदेव को देखा तो उन्हें भ्रम हुआ कि हाथी में बैठा व्यक्ति त्रिलोकपति भगवान् विष्णु हैं. अपने इस भ्रम को सही समझ कर दुर्वासा ऋषि ने इन्द्र को फूलों की एक माला भेंट की लेकिन अपने मद और वैभव में डूबे देवराज इन्द्र वह माला अपने हाथी ऐरावत के सिर पर फेंक दी और ऐरावत हाथी ने भी अपना सिर झटक कर उस माला को ज़मीन पर गिरा दिया जिससे वह माला ऐरावत के पैरों तले कुचल गयी.

दुर्वासा ऋषि ने जब इन्द्र की इस हरकत को यह देखा तो क्रोधित हो गए. उन्होंने ने इन्द्र द्वारा किये गए इस व्यवहार से खुद का अपमान तो समझा ही साथ ही इसे देवी लक्ष्मी का भी अपमान समझा.

इन्द्र द्वारा किये गए इस अपमान के बाद दुर्वासा ऋषि ने इन्द्र की श्रीहीन होने का श्राप दे डाला. ऋषि द्वारा दिए गए श्राप के कुछ ही समय बाद इन्द्र का सारा वैभव समुद्र में गिर गया और दैत्यों से युद्ध हारने पर उनका स्वर्ग से अधिकार छीन लिया गया.

अपनी इस दशा से परेशान होकर सभी देवता इंद्रदेव के साथ भगवान् विष्णु के पास पहुचे और इस समस्या का समाधान पूछा. तब भगवान् ने देवताओं को समुद्र मंथन कर स्वर्ग का सम्पूर्ण वैभव वापस पाने और मंथन से निकलने वाले अमृत का उपभोग करने का रास्ता सुझाया.

देवताओं को भगवान् विष्णु द्वारा सुझाया गया यह मार्ग स्वीकार था लेकिन इस समाधान में एक दिक्कत यह थी कि समुद्र मंथन अकेले देवताओं के बस की बात नहीं थी उन्हें इसमें दैत्यों को भी शामिल करना आवश्यक था. देवता नारायण की इस बात के लिए राजी हो गए और उन्होंने दानवो के साथ मिल कर समुद्र मंथन किया.

मान्यता हैं कि समुद्र मंथन से अमृत के अलावा धन्वन्तरी, कल्पवृक्ष, कौस्तुभ मणि, दिव्य शंख, वारुणी या मदिरा, पारिजात वृक्ष, चंद्रमा, अप्सराएं, उचौ:श्राव अश्व, हलाहल या विष और कामधेनु गाय भी प्राप्त हुई थी. लेकिन अमृतपान के लि ए देवता और असुरों में युद्ध हुआ था. भगवान् विष्णु की मदद से देवताओं ने यह युद्ध जीत लिया और अंततः देवताओं को अमृत की प्राप्ति हो पाई थी.


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जो जीवित है उनकी सेवा करो।

एक बार रामानंद जी ने कबीर जी से कहा की हे कबीर आज श्राद्ध का दिन है और पितरो के लिये खीर बनानी है. आप जाइये पितरो की खीर के लिये दुध ले आइये..

कबीर जी उस समय 9 वर्ष के ही थे.. कबीर जी दुध का बरतन लेकर चल पडे... चलते चलते आगे एक गाय मरी हुई पडी थी.. कबीर जी ने आस पास से घास को उखाड कर गाय के पास डाल दिया और वही पर बैठ गये..

दुध का बरतन भी पास ही रख लिया... जब काफी देर होगयी तो रामानंद ने सोचा.. पितरो को छिकाने का टाइम हो गया है.

कबीर अभी तक नही आया.. तो रामानंद जी खुद चल पडे दुध लेने.. चले जा रहे थे तो आगे देखा की कबीर जी एक मरी हुई गाय के पास बरतन रखे बैठे है...

रामानंद जी बोले अरे कबीर तु दुध लेने नही गया.. कबीर जी बोले स्वामी जी ये गाये पहले घास खायेगी तभी तो दुध देगी..

रामानंद बोले अरे ये गाये तो मरी हुई है ये घास कैसे खायेगी??

कबीर जी बोले स्वामी जी ये गाय तो आज मरी है.. जब आज मरी गाय घास नही खा सकती.. तो आपके 100 साल पहले मरे पितर खीर कैसे खायेगे...?? !! अतः जो जीवित है उनकी सेवा करो। सच्चा श्राद तो वो है।


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