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Friday, 14 August 2015

आज तो कैलाश पर बाज रहे डमरू।

आज तो कैलाश पर बाज रहे डमरू।


आज तो कैलाश पर बाज रहे डमरू
नाच रहे शिवजी बाज रहेघुगरू॥टेर॥

शंकर भी नाचे, संग गौरीभी नाचे,
गणपत भी नाचे, स्वामीकार्तिक भी नाचे।
भूत प्रेत नंदीगण सारा जग नाचे,
पावोमेबांधकर सोनेके घुंगरू॥१॥

ब्रम्हाजी आये, संग सावित्री लाये,
विष्णुजी आये, संग लक्ष्मीजी लाये।
विना बजाते हुयेनारदजी आये,
पावोमेबांधकर सोनेके घुंगरू॥२॥

जटामे शिवजी के गंगा बिराजे,
मस्तकपे शिवजी के चंद्रमाबिराजे।
गले मे शिवजीकेशेषनाग सोहे,
हाथोमेशिवजीके बाज रहा डमरू॥३॥

तीन नयन की शोभा है भारी,
अंग विभूत लगे अतीप्यारी।
नंदी पे शिवजिकि निकली सवारी,
हाथोमेशिवजीके बाज रहा डमरू॥४॥

ब्रम्हाजी शिवजीकी आरती उतारे,
विष्णुजी शिवजीको मालापहनावे।
नाच नाच नारदजीविना बजावे,
पावोमेबांधकर सोनेके घुगरू॥५॥


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ओ शंकर कब होंगे दर्शन तेरे



जीवनपथ पर शाम सवेरे छाये हई घनघोर अंधेरे,
ओ शंकर कब होंगे दर्शन तेरे, ओ शंकर कब होंगे दर्शन तेरे,

मै मुरख तू अंतरयामी, मै सेवक तू मेरा स्वामी,
काहे मुझसे नाता तोडा,मन भी छोडा मंदिर भी छोडा,
कितनी कितनी दूर लागये तूने आज कैलाश पर डेरे,
ओ शंकर कब होंगे दर्शन तेरे, शंकर कब होंगे दर्शन तेरे,

तेरे द्वारे ज्योत जगाते,युग बीते तेरा गुणगाते,
ना मांगू मै हीरे मोती,मांगू बस थोडीसी ज्योती,
खालीहाथ न जाऊंगा मै, हे दाता द्वारसे तेरे,
शंकर कब होंगे दर्शन तेरे, ओ शंकर कब होंगे दर्शन तेरे,

अमृत मांगा विषपाया लेकीन आज समय वो आया,
अपनी आखे तू खोलेगातो तेरा सिंहासन डोलेगा,
वो कैसा भगवान जो अपनेभक्तोसे अखिया फेरे,
ओ शंकर कब होंगे दर्शन तेरे, ओ शंकर कब होंगे दर्शन तेरे,


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Tuesday, 4 August 2015

दही रोटी


बीस बरस का पिवजी हमारा,पचीस बरस घरनार।
हमारी जोडी हिलतीजी मिलती ॥टेर॥

चांदार चांदन माथोजी न्हायो,तो सूरज किरण गूथायो ॥१॥

डाबोजी खोलर नथणीजी पेरी,डाबोजी खोलर गेणोजी पे-यो ॥२॥

पेटीजी खोलर कपडाजी पे-या,तो पेरी कसुंबल साडी ॥३॥

रिमझिम करता महल पधा-या,तो राजिंद मांग दही रोटी ॥४॥

घमघम करता हेटजी उत-या,जाय भाभीजी जगायाजी ॥५॥

उठो भाभीजी थाका देवर हट लाग्या,आदिका मांग दही रोटी ॥६॥

म्हार तो सार नही छ दिवराणी,जाय बाईजी जगाओजी ॥७॥

उठो बाईजी थाका बिरा हट लाग्या,आदिका मांग दही रोटी ॥८॥

म्हार तो सार नही छ भोजाई,जाय माऊजी जगाओजी ॥९॥

उठो सासूजी थाका जाया हट लाग्या,आदिका मांग दही रोटी ॥१०॥

फ्रीजम पडीए बव्हड दहिरी कुंडी,डाबाम थंडी रोटी ॥११॥

रिमझिम करता मेहल पधा-या,ओ ल्यो राजीन्द दही रोटी ॥१२॥

भाभीजीर छान ल्याई दही रोटी,बाईजीर छान ल्याई दही रोटी ॥१३॥


सासुजीर छान ल्याई दही रोटी,तो मोरासु निवालो भरावोजी ॥१४॥


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नथनी

आली जाज्यो, पाली जाज्यो, जाज्यो समुद्रापार।
नथजोगा मोती ल्याज्यो,लाला ल्याज्यो चार।
भोळा बाईसारा बिर, मुखडार मांडन नथ ल्याज्योजी।
सेज सवाई ढोला आया रिज्योजी ॥धृ॥

दसरी घडाव म्हारा देवर जेठ,बिसरी घडाव म्हारा पिया परदेश।
मुखडार मांडन नथ ल्याज्योजी,भोळा बाईसारा बीर ॥१॥

दसरी तो नथ म्हारी लुळ लुळ जाय।
बिसरी तो नथ म्हार उभी झोला खाय,भोळा बाईसारा बीर ॥२॥

आलनपुरको घागरो, ब-हानपूरको चीर।
मुंबईसु साडी ल्याया, ल्याया ठिकठिक,भोळा बाईसारा बीर ॥३॥

फाट गयो घागरो, उधड गयी चीर।
देखो सासुजी थाका जायारी खरीद,भोळा बाईसारा बीर ॥४॥

मती बोलो ए बवड आडा तेडा बोल।
म्हारा जायोडो थान, ल्याया ह मोल,भोळा बाईसारा बीर ॥५॥

मती बोलोजी सासुजी, आडा तेडा बोल।
थाका जायोडा म्हारा नथनीरा मोल,भोळा बाईसारा बीर ॥६॥

नथ बदगी मोती बिखर्‍या जाउरे बलाय,
आवला बाईसारा बिरा, लेऊनी पुवाय,भोळा बाईसारा बीर ॥७॥

अळ्या धुंडी, माळ्या धुंडी, धुंडी मेला माय।


छोटीसी नथ लादी भंवर पटारे माय,भोळा बाईसारा बीर ॥८॥ 



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नागपंचमीकी कहाणी

एक शहरमे एक ब्राम्हण रहता था। ऊसकी पाच बहुए थी। सावनका महिना आया। बडी चार बहुए अपने अपने मायकेगयी। छोटी बहू के मायकेमे कोई नही था। इसलीये वह अपनेही घरमे रुक गयी।

सावन शुद्ध पंचमीके दिन नागपंचमीका त्यौहार आया। छोटी बहुने नाग देवतासे प्रार्थना की,“हे नाग देवता, मेरे मायकेमे कोई नही इसलीये मुझे मायकेमे रहनेका सुखनही है। आपही मुझे मायकेका सुख दीजीये।“

शेषनागजीको ऊसकी दया आयी। शेषनागजी मनुष्य रूप लेकर उस ब्राम्हणके घर आये और बोले,“मै आपकी छोटी बहुका मामा हू। इतने दिन मै परदेस था इसलीये मै विवाहके समय नही आ पाया था। मै अपनी भांजीको लेजाने आया हू।“

ब्राम्हणने शेषनागजीकी बातपर भरोसा किया और बहुको रवाना किया। बहू मनमे सोचने लगी,ये मामाजी कहा ले जायेंगे?’ उतनेमे नागकी बांबीआयी। नागदेवता अपने असली रूपमे आये। वह बहू डर गयी। तब शेषनागजी बोले,“डरो मत बेटी, तुमने मुझे याद किया इसलीये मै तुम्हे लेने आया। तुम मेरी पुछ पकडकर मेरे पीछे आ जाओ।“

घर पहोचनेके बाद नागदेवताने नागराणीको बताया, “यह अपनी बेटी है। इसे कोई तकलीफमत देना और सही तरीकेसे अतिथी सत्कार करना।“

एक दिन नागराणीकी जचकी हुई। छोटी बहू हाथमे दिया लीये खडी थी। छोटे छोटे नाग के बच्चे हिलडूलरहे थे। ऊनको देखकर छोटी बहू डर गयी और उसके हाथसे दिया गीर गया। इस वजहसे छोटे नागकी पुछ जल गयी। नागराणीको यह देख गुस्सा आया और उसने शेषनागजीसे कहा,“ईसे अपने सासुराल पहुचा दिजिये।“ शेषनागजीने सोने चांदीका नजराणा दिया और मनुष्य रूप लेकर छोटी बहुको उसके सासुराल पहुचा दिया।

दिन बितते गये और नागदेवताके बच्चे बडे हो गये, तब उन्होने अपनी पुछ के बारेमे पुछा। तब नागराणीने सारी हकिगत बतायी। सब सुनकर बच्चोको गुस्सा आया और वह उस छोटी बहुको डंख करनेके लीये उसके घरकी तरफ निकल पडे।

उस दिन नागपंचमी थी। छोटी बहूको अपने नाग भाईयो याद आयी। उसने दीवारपर नागदेवताका चित्र निकाला,पुजा की, दूध और ज्वारीकी लाहीका भोग लगाया। उतनेमे नाग के बच्चे वहा पहुचे। उन्होने देखा की छोटी बहू नागदेवतकी पुजा कर रही है। उन्होने ऊसकी प्रार्थना सुनी, “हे नागदेवता, मेरे पुछजलेभाई जहा भी होंगे उन्हे राजीखुशी रखीये, और ऊनको हमेशा सुखी करीये।“

यह सुनकर नागके बच्चोका गुस्सा शांत हो गया और ऊनके मनमे छोटी बहुके लीये प्यार उमडने लगा। इसलीये वह रातभर उसके यहा रुके। अगले दिन दूध पिकर और लाही खाकर अपनी बहनको नवलखा हारका तोहफा देकर नागदेवता चले गये।
हे नागदेवता छोटी बहुको जैसे मायकेका सुख और भाईका प्यारदिया वैसेही सभीको दिजिये।


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Monday, 3 August 2015

दिये की अमावस्या

एक राजा था। उसे एक बेटा और एक बहू थे। बहुने एक दिन घरमे रखी मिठाई चुरकर खा ली और चुहे का नाम लिया। ये सूनकर घर मे रहने वाले सभी चुहोको को गुस्सा आया। सभी चुहोने मिलकर तय किया की राजा की बहू को सबक सिखएंगे।


एक दिन राजा के यहा मेहमान आये। चुहोने मेहमानोके बिस्तरमे राजाकी बहू की चोली रख दी। अगले दिन सबेरे घरके नौकर लोगोने देखाकी बहुराणी की चोली मेहमानोके बिस्तर से मिली और पुरे राजमहल मे एकही बात के चर्चे होने लगे, “बहुराणी की चोली मेहमान के बिस्तर से कैसे मिली?“ राजमहल मे सभी लोग बहुराणी की निंदा करने लगे और उसे राजमहल से निकाल दिया गया।



उस बहू का एक नियम था की रोज दिये अच्छेसे चमकाना और सुबह शाम संध्या समय दिये लगाना। और साल मे एक बार मतलब श्रावण अमावस्या के दिन याने दिये की अमावस्या के दिन मिठी रसोई बनाना,दियोकी पुजा करना और भोग लगाना। ये सब वह बहुरणीही करती थी।


पर जबसे बहुराणी को घर से निकाल दिया गया, घरके दिये किसीने साफ नही किये। दीप अमावस्या के दिन किसीने भी दिये चमकाये नही, मिठी रसोई बनाई नही, दीयो की पुजा नही हुई,भोग नही लगा और दिये भी जलाये नही।


उसी दिन राजा अपने मंत्रीयो और राजकुमार के साथ शिकार करने गया था। वह लोग राजनगरी लौट रहे थे तो उतनेमे रात हो गयी। राजा और उसके सभी साथी एक जगह विश्राम के लीये रुक गये। आधीरातको राजा की निंद खुली और वह उठकर बैठा तो उसे एक चमत्कारिक घटना दिखी।राजाने देखा पासके बरगद के पेड पर राजा की नगरी के सभी दिये आकर बैठे है। सब दिये आपस मे बात कर रहे थे की आज किसने क्या खाया? कैसी पुजा हुई? इतनेमे एक दिया बोल पडा,“पिछले दस साल मे सबसे अच्छा भोग और पुजा मेरी हूआ करती थी पर इस साल तो मेरा नसीब ही फुटा है। इस बार तो मेरी पुजा ही नही हुई तो भोग बहोत दूर की बात है।“



फिर बाकी दियोने पुछा,“भाई तुम्हारे साथ ऐसा कैसे हूआ? इसकी क्या वजह है?” तब वह दिया बोला,“मै राजाके घर का दिया हू। राजाके घरमे एक बहुराणी थी। एकदिन उसने घरकी मिठाई चुराकर खा ली और चुहोका नाम बताया। इस बात का चुहोको गुस्सा आया और बहुराणी को सबक सिखानेके लीये चुहोने बहुराणी की चोली मेहमानोके बिस्तरमे रख दी। इस वजह से बहुराणीकी बहोत निंदा हुई और उसे घरसे निकाल दिया गया। राजाके घरमे सिर्फ बहुराणीही मेरी पुजा करती थी। मीठा भोग लगाती थी। इस साल वो नही है इसलीये मेरा नसीब फुटा है। वह जहाभी होंगी सुखी रहे।“ ऐसा आशीर्वाद उस दिये ने दिया।


राजाने यह सब बाते सूनली और उसे अपनी गलती समझ गयी और बहुराणी निर्दोष है यह बात भी पता चल गयी। अगले ही दिन राजा बहुराणीको निर्दोष घोषीत किया और बडे सम्मानके साथ उसे राजमहल वापस ले आया। पुरा राजपरिवार फिरसे राजी खुशी साथ रहने लगा और राज्य मे खुशहाली छा गयी।

हे दीप देवता आपकी कहाणी जिसनेभी पढी और सुनी ऊसकी भूल चूक माफ करीये, घटती की पुरी करीये।
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Strategic Alliances

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