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Monday 3 August 2015

दिये की अमावस्या

एक राजा था। उसे एक बेटा और एक बहू थे। बहुने एक दिन घरमे रखी मिठाई चुरकर खा ली और चुहे का नाम लिया। ये सूनकर घर मे रहने वाले सभी चुहोको को गुस्सा आया। सभी चुहोने मिलकर तय किया की राजा की बहू को सबक सिखएंगे।


एक दिन राजा के यहा मेहमान आये। चुहोने मेहमानोके बिस्तरमे राजाकी बहू की चोली रख दी। अगले दिन सबेरे घरके नौकर लोगोने देखाकी बहुराणी की चोली मेहमानोके बिस्तर से मिली और पुरे राजमहल मे एकही बात के चर्चे होने लगे, “बहुराणी की चोली मेहमान के बिस्तर से कैसे मिली?“ राजमहल मे सभी लोग बहुराणी की निंदा करने लगे और उसे राजमहल से निकाल दिया गया।



उस बहू का एक नियम था की रोज दिये अच्छेसे चमकाना और सुबह शाम संध्या समय दिये लगाना। और साल मे एक बार मतलब श्रावण अमावस्या के दिन याने दिये की अमावस्या के दिन मिठी रसोई बनाना,दियोकी पुजा करना और भोग लगाना। ये सब वह बहुरणीही करती थी।


पर जबसे बहुराणी को घर से निकाल दिया गया, घरके दिये किसीने साफ नही किये। दीप अमावस्या के दिन किसीने भी दिये चमकाये नही, मिठी रसोई बनाई नही, दीयो की पुजा नही हुई,भोग नही लगा और दिये भी जलाये नही।


उसी दिन राजा अपने मंत्रीयो और राजकुमार के साथ शिकार करने गया था। वह लोग राजनगरी लौट रहे थे तो उतनेमे रात हो गयी। राजा और उसके सभी साथी एक जगह विश्राम के लीये रुक गये। आधीरातको राजा की निंद खुली और वह उठकर बैठा तो उसे एक चमत्कारिक घटना दिखी।राजाने देखा पासके बरगद के पेड पर राजा की नगरी के सभी दिये आकर बैठे है। सब दिये आपस मे बात कर रहे थे की आज किसने क्या खाया? कैसी पुजा हुई? इतनेमे एक दिया बोल पडा,“पिछले दस साल मे सबसे अच्छा भोग और पुजा मेरी हूआ करती थी पर इस साल तो मेरा नसीब ही फुटा है। इस बार तो मेरी पुजा ही नही हुई तो भोग बहोत दूर की बात है।“



फिर बाकी दियोने पुछा,“भाई तुम्हारे साथ ऐसा कैसे हूआ? इसकी क्या वजह है?” तब वह दिया बोला,“मै राजाके घर का दिया हू। राजाके घरमे एक बहुराणी थी। एकदिन उसने घरकी मिठाई चुराकर खा ली और चुहोका नाम बताया। इस बात का चुहोको गुस्सा आया और बहुराणी को सबक सिखानेके लीये चुहोने बहुराणी की चोली मेहमानोके बिस्तरमे रख दी। इस वजह से बहुराणीकी बहोत निंदा हुई और उसे घरसे निकाल दिया गया। राजाके घरमे सिर्फ बहुराणीही मेरी पुजा करती थी। मीठा भोग लगाती थी। इस साल वो नही है इसलीये मेरा नसीब फुटा है। वह जहाभी होंगी सुखी रहे।“ ऐसा आशीर्वाद उस दिये ने दिया।


राजाने यह सब बाते सूनली और उसे अपनी गलती समझ गयी और बहुराणी निर्दोष है यह बात भी पता चल गयी। अगले ही दिन राजा बहुराणीको निर्दोष घोषीत किया और बडे सम्मानके साथ उसे राजमहल वापस ले आया। पुरा राजपरिवार फिरसे राजी खुशी साथ रहने लगा और राज्य मे खुशहाली छा गयी।

हे दीप देवता आपकी कहाणी जिसनेभी पढी और सुनी ऊसकी भूल चूक माफ करीये, घटती की पुरी करीये।
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