एक शहरमे एक ब्राम्हण रहता था। ऊसकी पाच बहुए थी। सावनका महिना आया। बडी चार बहुए अपने अपने मायकेगयी। छोटी बहू के मायकेमे कोई नही था। इसलीये वह अपनेही घरमे रुक गयी।
सावन शुद्ध पंचमीके दिन नागपंचमीका त्यौहार आया। छोटी बहुने नाग देवतासे प्रार्थना की,“हे नाग देवता, मेरे मायकेमे कोई नही इसलीये मुझे मायकेमे रहनेका सुखनही है। आपही मुझे मायकेका सुख दीजीये।“
शेषनागजीको ऊसकी दया आयी। शेषनागजी मनुष्य रूप लेकर उस ब्राम्हणके घर आये और बोले,“मै आपकी छोटी बहुका मामा हू। इतने दिन मै परदेस था इसलीये मै विवाहके समय नही आ पाया था। मै अपनी भांजीको लेजाने आया हू।“
घर पहोचनेके बाद नागदेवताने नागराणीको बताया, “यह अपनी बेटी है। इसे कोई तकलीफमत देना और सही तरीकेसे अतिथी सत्कार करना।“
एक दिन नागराणीकी जचकी हुई। छोटी बहू हाथमे दिया लीये खडी थी। छोटे छोटे नाग के बच्चे हिलडूलरहे थे। ऊनको देखकर छोटी बहू डर गयी और उसके हाथसे दिया गीर गया। इस वजहसे छोटे नागकी पुछ जल गयी। नागराणीको यह देख गुस्सा आया और उसने शेषनागजीसे कहा,“ईसे अपने सासुराल पहुचा दिजिये।“ शेषनागजीने सोने चांदीका नजराणा दिया और मनुष्य रूप लेकर छोटी बहुको उसके सासुराल पहुचा दिया।
दिन बितते गये और नागदेवताके बच्चे बडे हो गये, तब उन्होने अपनी पुछ के बारेमे पुछा। तब नागराणीने सारी हकिगत बतायी। सब सुनकर बच्चोको गुस्सा आया और वह उस छोटी बहुको डंख करनेके लीये उसके घरकी तरफ निकल पडे।
उस दिन नागपंचमी थी। छोटी बहूको अपने नाग भाईयो याद आयी। उसने दीवारपर नागदेवताका चित्र निकाला,पुजा की, दूध और ज्वारीकी लाहीका भोग लगाया। उतनेमे नाग के बच्चे वहा पहुचे। उन्होने देखा की छोटी बहू नागदेवतकी पुजा कर रही है। उन्होने ऊसकी प्रार्थना सुनी, “हे नागदेवता, मेरे पुछजलेभाई जहा भी होंगे उन्हे राजीखुशी रखीये, और ऊनको हमेशा सुखी करीये।“
यह सुनकर नागके बच्चोका गुस्सा शांत हो गया और ऊनके मनमे छोटी बहुके लीये प्यार उमडने लगा। इसलीये वह रातभर उसके यहा रुके। अगले दिन दूध पिकर और लाही खाकर अपनी बहनको नवलखा हारका तोहफा देकर नागदेवता चले गये।
हे नागदेवता छोटी बहुको जैसे मायकेका सुख और भाईका प्यारदिया वैसेही सभीको दिजिये।
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