महर्षि कपिल ने एक जगह ऐसा कहा है कि मनुष्यों के कुल वजन से 20 गुना से अधिक वजन पशुओं जलचर नभचर सांप आदि का होना चाहिए तभी मनुष्य पृथ्वी पर रह सकता है। यह अनुपात गड़बड़ाते ही प्रकृति आपदा द्वारा मनुष्य का विनाश रच देती है। इसलिए पशु हिंसा पृथ्वी को बहुत ही गहरा आघात पहुंचाती है।
पृथ्वी
को इसीलिए गौ कहा गया है, क्योंकि गौ पर अत्याचार सीधा
पृथ्वी पर अत्याचार है। गाय की हत्या कितनी घातक होती है यह बताने की जरूरत नहीं
है। हत्या किए जा रहे पशु की आह से सारी समष्टि चेतना चीत्कार करती है, शास्त्रों
में साफ साफ आया है कि यह आह ही भूकम्प तूफान महामारी बनकर अपना बदला लेती है।
सारे देवी देवताओं के वाहन भी पशु हैं और पशुओं के प्रति अपनत्व सिखाते हैं। पशुवध
के वीभत्स पाप का घड़ा भरता है तो बिना आहट किए काल बनकर निगल जाता है। इससे स्पष्ट
प्रमाण पृथ्वी नहीं दे सकती, प्रकृति एफिडेविट बनाकर कोर्ट में
जमा नहीं करेगी कि इन पशुओं की क्रूरहत्या की एवज में मैं महामारी, तूफान, भूकम्प
बनकर आई हूँ।
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