फितरत तो कुछ यूं भी है,इंसान की! साहब
बारिश
खत्म हो जाये तो छतरी बोझ लगती है!
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अपनी
मंज़िल पे पहुँचना भी खड़े रहना भी,
कितना
मुश्किल है बड़े होके बड़े रहना भी।
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मां सोचती है, बेटा आज भूखा ना
रहे
पिता सोचता है कि बेटा कल भूखा ना रहे
बस यही दो सम्बन्ध ऐसे हैं संसार में
जिनका दर्जा भगवान् के बराबर है
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सिर्फ दुनिया के सामने जीतने वाला ही विजेता
नहीं होता,किन रिश्तों के सामने कब और कहाँ पर हारना है,यह जानने वाला भी
विजेता होता है
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जिंदगी में कामयाब होना हो तो एक बात हमेशा
याद रखना, पाँव भले ही फिसल जाये पर जुबान को कभी फिसलने मत देना !! पंछी अपने पाँव के
कारण जाल में फँसते हैँ, परन्तु मनुष्य अपनी जुबान के कारण
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ज्यादा बोझ लेकर चलने वाला इन्सान अक्सर डूब
जाता है चाहे वो सामान का हो या अभिमान का|
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जलने वाले की दूआ
से ही सारी बरकत है
वरना अपना कहने
वाले तो याद भी नही करते
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टूटने लगे हौसले
तो ये याद रखना,
बिना मेहनत के
तख्तो-ताज नहीं मिलते,
ढूंढ़ लेते हैं
अंधेरों में मंजिल अपनी,
क्योंकि जुगनू
कभी रौशनी के मोहताज़ नहीं होते…
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