जय श्री राम सखियों और सखाओ। आज आपके लिए नत्थू ऊंट की कहानी लायी हु। इसे पूरा जरूर पढ़ना।
एक समय की बात है एक ऊंट था। उसका नाम नत्थू रखा गया था। नत्थू का मालिक उसे दिनरात नकेल डालकर बांधे रखता था जिससे उसे बहुत तकलीफ होती थी।
एक दिन नत्थू अपनी नकेल छुड़ाकर भाग गया। वह एक ही रस्ते से भागते रहा और एक नदी के पास आकर रुक गया। नत्थू को नदी पार करने नहीं आ रही थी। नत्थू फिरसे अपने मालिक के कैद में नहीं जाना चाहता था इसीलिए अपना राशन पानी वही मालिक के खेमे में छोड़ भागा था। उस कैद में उसे भलेही नकेल की वजह से बहोत तकलीफ़ होती थी पर खाना पेटभरके मिलता था।
उसके आगे नदी थी जिसमे पानी का बहाव बहुत तेज था। फिर भी नत्थू वही बैठ गया कई दिन बित गए वह भूखा था और केवल नदी का पानी पीकर गुजारा कर रहा था। उसकी हालत बहोत ख़राब हो गयी थी।
एक शुण्डि नाम का कव्वा उसे काफी समय से देख रहा था। शुण्डि को नत्थू पर दया आयी। शुण्डि ने उसे उसका नाम पूछा। नत्थू ने अपने बारे में बताया। फिर शुण्डि ने कहा, "नत्थू तुम कब तक सिर्फ नदी का पानी पीकर गुजारा करोगे? वहा उसतरफ एक हराभरा खेत है तुम मेरे पीछे पीछे आ जाओ और वहाँ की घास खा लेना।"
नत्थू को इंसानो का स्वाभाव पता था इसीलिए उसने पूछा, "शुण्डि वहा इंसान होंगे न ?"
शुण्डि ने कहा, "इंसान आते है, काम करते है तभी तो खेत हराभरा रहता है। "
नत्थू ने कहा, "मै दिन रात नकेल से बंधा रहता था इसीलिए मुझे बहुत तकलीफ होती थी। मुझे फिरसे इंसानो की कैद में नहीं जाना। मै उस खेत में गया तो वे मुझे पकड़ लेंगे। तुम एक काम करो मुझे यही रहने दो। मै यहाँ अपनी मर्जी का मालिक हु।"
शुण्डि ने कहा, "मित्र तुम यहाँ मर जाओगे। "
नत्थू ने कहा, "वो तो एक दिन सभी को मरना है। पर मुझे मेरी स्वतंत्रता प्रिय है। "
इतनी बात होने के बाद शुण्डि वहा से उड़ गया। पर नत्थू की जिद देखकर वह अचंभित था और इसी सोच में उड़ते हुए दूर आ पंहुचा। वहा उसने देखा की वह जगह जंगल को लग कर उसी नदी के किनारे है और उस जगह पर इंसान बहुत कम आते है और खाने के लिए अच्छा चारा भी है। यह देख शुण्डि उड़कर फिरसे नत्थू के पास आया और बोला, "चलो मित्र यहाँ से कुछ दूर जंगल है जहा इंसान नहीं आते और तुम्हे खाने के लिए पर्याप्त मात्रा में चारा और पिने के लिए पानी भी मिलेगा।"
नत्थू उसके पीछे पीछे उस जंगल तक पंहुचा और वहा रहने लगा।
नत्थू को अपनी स्वतंत्रता चाहिए थी इसीलिए उसने भूखा रहना स्वीकार किया। शुण्डि एक अच्छा मित्र था इसीलिए वह समझ गया की नत्थू को क्या चाहिए और उसने नत्थू की सही ढंग से सहायता की। वो कहते है न कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है। बस इसी नियम को नत्थू ने अपनी स्वतंत्रता के लिए अपनाया।
अगर आपको भी जीवन में कुछ चाहिए है तो आपको आलस को त्यागना पड़ेगा और परिश्रम को अपनाना पड़ेगा जैसे नत्थू ने नकेल त्यागकर भूख को स्वीकार किया बिलकुल वैसेही।
यहाँ तक पढ़ने के लिए धन्यवाद। कहानी के बारे में आपके विचार जरूर कमेंट करे और इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करे।