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Wednesday, 30 March 2022

मर्जी का मालिक

 जय श्री राम सखियों और सखाओ। आज आपके लिए नत्थू ऊंट की कहानी लायी हु। इसे पूरा जरूर पढ़ना। 


एक समय की बात है एक ऊंट था। उसका नाम नत्थू रखा गया था। नत्थू का मालिक उसे दिनरात नकेल डालकर बांधे रखता था जिससे उसे बहुत तकलीफ होती थी। 

एक दिन नत्थू अपनी नकेल छुड़ाकर भाग गया। वह एक ही रस्ते से भागते रहा और एक नदी के पास आकर रुक गया। नत्थू को नदी पार करने नहीं आ रही थी। नत्थू फिरसे अपने मालिक के कैद में नहीं जाना चाहता था इसीलिए अपना राशन पानी वही मालिक के खेमे में छोड़ भागा था। उस कैद में उसे भलेही नकेल की वजह से बहोत तकलीफ़ होती थी पर खाना पेटभरके मिलता था। 

उसके आगे नदी थी जिसमे पानी का बहाव बहुत तेज था। फिर भी नत्थू वही बैठ गया कई दिन बित गए वह भूखा था और केवल नदी का पानी पीकर  गुजारा कर रहा था। उसकी हालत बहोत ख़राब हो गयी थी। 

एक शुण्डि नाम का कव्वा उसे काफी समय से देख रहा था। शुण्डि को नत्थू पर दया आयी। शुण्डि ने उसे उसका नाम पूछा। नत्थू ने अपने बारे में बताया। फिर शुण्डि ने कहा, "नत्थू तुम कब तक सिर्फ नदी का पानी पीकर गुजारा करोगे? वहा उसतरफ एक हराभरा खेत है तुम मेरे पीछे पीछे आ जाओ और वहाँ की घास खा लेना।"

नत्थू को इंसानो का स्वाभाव पता था इसीलिए उसने पूछा, "शुण्डि वहा इंसान होंगे न ?"

शुण्डि ने कहा, "इंसान आते है, काम करते है तभी तो खेत हराभरा रहता है। "

नत्थू ने कहा, "मै दिन रात नकेल से बंधा रहता था इसीलिए मुझे बहुत तकलीफ होती थी। मुझे फिरसे इंसानो की कैद में नहीं जाना। मै उस खेत में गया तो वे मुझे पकड़ लेंगे। तुम एक काम करो मुझे यही रहने दो। मै यहाँ अपनी मर्जी का मालिक हु।"

शुण्डि ने कहा, "मित्र तुम यहाँ मर जाओगे। "

नत्थू ने कहा, "वो तो एक दिन सभी को मरना है। पर मुझे मेरी स्वतंत्रता प्रिय है। "

इतनी बात होने के बाद शुण्डि वहा से उड़ गया। पर नत्थू की जिद देखकर वह अचंभित था और इसी सोच में उड़ते हुए दूर आ पंहुचा। वहा उसने देखा की वह जगह जंगल को लग कर उसी नदी के किनारे है और उस जगह पर इंसान बहुत कम आते है और खाने के लिए अच्छा चारा भी है। यह देख शुण्डि उड़कर फिरसे नत्थू के पास आया और बोला, "चलो मित्र यहाँ से कुछ दूर जंगल है जहा इंसान नहीं आते और तुम्हे खाने के लिए पर्याप्त मात्रा में चारा और पिने के लिए पानी भी मिलेगा।"

नत्थू उसके पीछे पीछे उस जंगल तक पंहुचा और वहा रहने लगा। 

नत्थू को अपनी स्वतंत्रता चाहिए थी इसीलिए उसने भूखा रहना स्वीकार किया। शुण्डि एक अच्छा मित्र था इसीलिए वह समझ गया की नत्थू को क्या चाहिए और उसने नत्थू की सही  ढंग से सहायता की। वो कहते है न कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है। बस इसी नियम को नत्थू ने अपनी स्वतंत्रता के लिए अपनाया। 

अगर आपको भी जीवन में कुछ चाहिए है तो आपको आलस को त्यागना पड़ेगा और परिश्रम को अपनाना पड़ेगा जैसे नत्थू ने नकेल त्यागकर भूख को स्वीकार किया बिलकुल वैसेही। 

यहाँ तक पढ़ने के लिए धन्यवाद। कहानी के बारे में आपके विचार जरूर कमेंट करे और इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करे। 


Tuesday, 29 March 2022

शीतला माता

 जय माता दी मित्रों और सखियों शीतला माता की कथा आपके लिए लेकर आयी हु। 

यह कथा बहुत पुरानी है। एक बार शीतला माता ने सोचा कि चलो आज देखु कि धरती पर मेरी पूजा कौन करता हैकौन मुझे मानता है। यही सोचकर शीतला माता धरती पर राजस्थान के डुंगरी गाँव में आई और देखा कि इस गाँव में मेरा मंदिर भी नही हैना मेरी पुजा है।

माता शीतला गाँव कि गलियो में घूम रही थीतभी एक मकान के ऊपर से किसी ने चावल का उबला पानी (मांडनिचे फेका। वह उबलता पानी शीतला माता के ऊपर गिरा जिससे शीतला माता के शरीर में (छालेफफोले पड गये। शीतला माता के पुरे शरीर में जलन होने लगी।

शीतला माता गाँव में इधर उधर भाग भाग के चिल्लाने लगी अरे में जल गईमेरा शरीर तप रहा हैजल रहा हे। कोई मेरी मदद करो। लेकिन उस गाँव में किसी ने शीतला माता कि मदद नही करी। वही अपने घर के बहार एक कुम्हारन (महिलाबेठी थी। उस कुम्हारन ने देखा कि अरे यह बूढी माई तो बहुत जल गई है। इसके पुरे शरीर में तपन है। इसके पुरे शरीर में (छालेफफोले पड़ गये है। यह तपन सहन नही कर पा रही है।

तब उस कुम्हारन ने कहा है माँ तू यहाँ आकार बैठ जामैं तेरे शरीर के ऊपर ठंडा पानी डालती हूँ। कुम्हारन ने उस बूढी माई पर खुब ठंडा पानी डाला और बोली है माँ मेरे घर में रात कि बनी हुई राबड़ी रखी है थोड़ा दही भी है। तू दही-राबड़ी खा लें। जब बूढी माई ने ठंडी (जुवारके आटे कि राबड़ी और दही खाया तो उसके शरीर को ठंडक मिली।

तब उस कुम्हारन ने कहा  माँ बेठ जा तेरे सिर के बाल बिखरे हे ला में तेरी चोटी गुथ देती हु और कुम्हारन माई कि चोटी गूथने हेतु (कंगीकागसी बालो में करती रही। अचानक कुम्हारन कि नजर उस बुडी माई के सिर के पिछे पड़ी तो कुम्हारन ने देखा कि एक आँख वालो के अंदर छुपी हैं। यह देखकर वह कुम्हारन डर के मारे घबराकर भागने लगी तभी उसबूढी माई ने कहा रुक जा बेटी तु डर मत। मैं कोई भुत प्रेत नही हूँ। मैं शीतला देवी हूँ। मैं तो इस घरती पर देखने आई थी कि मुझे कौन मानता है। कौन मेरी पुजा करता है। इतना कह माता चारभुजा वाली हीरे जवाहरात के आभूषण पहने सिर पर स्वर्णमुकुट धारण किये अपने असली रुप में प्रगट हो गई।

माता के दर्शन कर कुम्हारन सोचने लगी कि अब में गरीब इस माता को कहा बिठाऊ। तब माता बोली है बेटी तु किस सोच मे पड गई। तब उस कुम्हारन ने हाथ जोड़कर आँखो में आसु बहते हुए कहाहै माँ मेरे घर में तो चारो तरफ दरिद्रता है बिखरी हुई हे में आपको कहा बिठाऊ। मेरे घर में ना तो चौकी हैना बैठने का आसन। तब शीतला माता प्रसन्न होकर उस कुम्हारन के घर पर खड़े हुए गधे पर बैठ कर एक हाथ में झाड़ू दूसरे हाथ में डलिया लेकर उस कुम्हारन के घर कि दरिद्रता को झाड़कर डलिया में भरकर फेक दिया और उस कुम्हारन से कहा है बेटी में तेरी सच्ची भक्ति से प्रसन्न हु अब तुझे जो भी चाहिये मुझसे वरदान मांग ले।

क्यों मनाया जाता है शीतलाष्टमी का त्यौहार

तब कुम्हारन ने हाथ जोड़ कर कहा है माता मेरी इच्छा है अब आप इसी (डुंगरीगाँव मे स्थापित होकर यही रहो और जिस प्रकार आपने आपने मेरे घर कि दरिद्रता को अपनी झाड़ू से साफ़ कर दूर किया ऐसे ही आपको जो भी होली के बाद कि सप्तमी को भक्ति भाव से पुजा कर आपको ठंडा जलदही  बासी ठंडा भोजन चढ़ाये उसके घर कि दरिद्रता को साफ़ करना और आपकी पुजा करने वाली नारि जाति (महिलाका अखंड सुहाग रखना। उसकी गोद हमेशा भरी रखना। साथ ही जो पुरुष शीतला सप्तमी को नाई के यहा बाल ना कटवाये धोबी को कपडे धुलने ना दे और पुरुष भी आप पर ठंडा जल चढ़ाकरनरियल फूल चढ़ाकर परिवार सहित ठंडा बासी भोजन करे उसके काम धंधे व्यापार में कभी दरिद्रता ना आये।

तब माता बोली तथाअस्तु है बेटी जो तुने वरदान मांगे में सब तुझे देती हु  है बेटी तुझे आर्शिवाद देती हूँ कि मेरी पुजा का मुख्य अधिकार इस धरती पर सिर्फ कुम्हार जाति का ही होगा। तभी उसी दिन से डुंगरी गाँव में शीतला माता स्थापित हो गई और उस गाँव का नाम हो गया शील कि डुंगरी। शील कि डुंगरी में शीतला माता का मुख्य मंदिर है। शीतला सप्तमी पर वहाँ बहुत विशाल मेला भरता है। इस कथा को पढ़ने से घर कि दरिद्रता का नाश होने के साथ सभी मनोकामना पुरी होती है।


अंततक पढ़ने के लिए धन्यवाद। यह कहानी ज्यादा से ज्यादा लोगो तक पंहुचा दीजिये और निचे कमेंट में  एकबार शीतला माता का जयकारा लगा दीजिये। जय माता दी। 

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