दोय डूंगरा बीच बेल पसरी,
बीरा रे आँगना आम्बो मोलीयो।
थे तो सुण सुण ओ म्हारा सीमरथ सायब।
नणंद पड़ोसन मती राख जो,
बातो सोई देखू, यो सायब सोईजी मांग।
उठ सवार म्हासु कळकर,
बे तो थांका चढन रा सायब घुड़लाजी मांग।
म्हारा बेठनरी सुख पालखी,
बे तो थाका ओढणरा सायब खिरमाजी मांग।
तू तो गेली ए गोरी बोलण जाण, साव गमाव थारी जिभरो।
म्हारा ओढ़नरी बेरंग चुन्दडी
म्हे तो आमाजी सामा दोय मेल चिनावाँ,
जाँ बीच राखा दोय बारणा, (बाईरा ओबरा)
म्हे तो दातण करता हेलोजी मारू।
झारी भर ल्याव म्हारा भानजा।
म्हे तो जीमण बेठर हेलोजी मारू।
आय परोस म्हारी बेनड़ी।
ए तो ऐवड़ छेवड़ म्हारा भाइरे भतीजा।
आधबीच सोव म्हारा भानजा।
भानजान देख्या म्हारो कँवल हुलसे।
भतीज्याँन देख्या म्हारो मन हँसे।
रतनाळो आँगन म्हारा बिराजी उभा,
देवो म्हारी बेन आशीषडी।
थे तो बदजो ओ बीरा बडरे पीपल जूं।
फलज्योजी कड़वा नीम जू।
आणियार ओ घुँघट बाइरी भावज उभी।
देवो म्हारी ननंद आशिसडी
थे तो सात ए भावज पूत जण जो
एकज जण जो सुगणी धीयड़ी।
थारा धियाल्यान परदेश दीजो।
जूँ चित आवे भोळी ननूँदली।
थे तो धीन धीन ओ बंकंटलालजी* रा छावा बनडरे मान बड़ो कियो।
थे तो धीन धीन ये सजणारी ए जाइ बंस बँधायो म्हारा बापरो।
* बंकंटलालजी की जगह पर बिंदराजा के पिताजी का नाम ले।
ये गीत भुवा के मन कि बात दर्शाता है।
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