जय श्री राम! आज आपके लिए परोपकार की पराकाष्टा की कहानी लेकर आयी हुं। कृपया कहानी को पूरा पढ़िए।
घटना गाँव तोरुर की है। वहा एक धनी साहूकार रहता था जिसका नाम नारायण था।
नारायण ने एक हाथी को पाल रखा था। एक दिन वह हाथी उन्मत हो उठा। उसने अपने मालिक नारायण को उठा के पटक दिया। नारायण ने उसको शांत करने की बहुत कोशिश की लेकिन वह शांत नहीं हुआ। और इस बार हाथी ने उसे पटका और उसकी पीठ में अपने नुकीले दाँत घुसा दिये जिसके कारण वह बेहोश हो गए।
इतनी हलचल होने के कारण आस पास के लोग भी वहा आ पहुचे और उन्होंने उस हाथी को शांत कर दिया। फिर सब लोगो ने नारायण को वैद्यशाला ले गए ताकि नारायण का सहीसे उपचार हो सके।
नारायण की जांच करने के बाद वैद्यजी बोले, "नारायण के पीठ का घाव बहुत गहरा है। उसे सिर्फ टाकेँ देकर नहीं भरा जा सकता। इसके लिए हमें एक इंसान का डेढ़ पौन मांस लगेंगा।"
नारायण के परिचित, घरवाले कोई भी इस काम के लिए तैयार नहीं थे। लेकिन जब यह बात एक वैद्य, जो की बहुत अच्छे संस्कारों वाला था, उसे पता चली तो वह इस काम के लिए खुद होकर सामने आया।
फिर नारायण को टाके लगे और उसके घाव का इलाज हुआ। तब कहा जा के उसकी जान बची।
असल में मनुष्यता का दूसरा नाम ही परोपकार है। अगर हम अपने तन, मन, धन में से थोडासा देश को ठीक करने में लगाए तो, तो हमारे लिए अच्छा होता है।
कहानी को यहाँ तक पढ़ने के लिए धन्यवाद। कृपया इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करिये।
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