जय श्री राम। आपके लिए एक विनम्र बुनकर की कहानी लायी हूँ। कृपया इस कहानी को अपने परिवार और मित्रों के साथ अवश्य पूरा पढ़ें।
यह कहानी प्रकासम नगर की है जहाँ कई वर्ष पूर्व एक बुनकर रहता था। उसका नाम शाश्वत था और वह बड़ेही विनम्र स्वभाव का था।
एक दिन शाश्वत बुनकर के दुकान के सामने से अयान नामक लड़का जा रहा था। अयान थोड़ा बदमाश किस्म का था। अयान ने शाश्वत को परेशान करने की सोची। फिर अयान ने सोचा, "क्यों न एक साड़ी का दाम पूछ लूँ और फिर उस साड़ी की टुकड़े करके और दाम पुछु। "
अयान शाश्वत की दुकान में आया और एक साड़ी ली और उसका दाम पूछा।
शाश्वत ने कहा, "२०० रूपए। "
अयान ने उस साड़ी को दो टुकडो में काट दिया और फिर उसका दाम पूछा।
शाश्वत ने कहा, "१०० रूपए। "
ऐसा अयान ने बहुत बार किया लेकिन तब भी शाश्वत धैर्यपूर्वक जवाब देता रहा।
ऐसा करते करते एक स्थिति ऐसी आयी की अयान आगे उस साड़ी के टुकड़े न कर सका। तब अयान के समझ आया की अब ये साड़ी उसके काम न आएगी।
तब शाश्वत ने कहा, "अब तो ये तुम्हारे क्या किसी के भी काम में नहीं आ सकती।"
तब अयान उस साडी का दाम देने लगा। लेकिन शाश्वत बुनकर ने कहा, "साड़ी का दाम देने से साड़ी की भरपाई नहीं होंगी।"
अयान ने पूछा, "तो फिर साड़ी की भरपाई कैसे होगी?"
शाश्वत ने कहा, "साड़ी की भरपाई तो तब होंगी जब मेरी पत्नी कपास की रुई बनाकर उससे सूत निकालकर मुझे उसे रंगने देंगी। फिर मेरी पत्नी उस रंगीन सूत को बुना जायेगा तब एक साड़ी बनेंगी और फिर एक साड़ी की भरपाई होंगी। साड़ी तो दूसरी आ जाएंगी लेकिन आपने की हुई गलती नहीं सुधरेंगी और गया हुआ समय वापिस नहीं आएगा.
सार यह है की समाज को आगे बढ़ने के लिए अपनी गन्दी आदतों को छोड़ना पड़ेगा।
कहानी को यहाँ तक पढ़ने के लिए धन्यवाद। कृपया इस कहानी को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें, ताकि समाज अपनी गन्दी आदतें छोड़ दे।
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