जय श्री राम दोस्तों! कैसे हो आप?
आज मैंने एक किताब के कुछ पन्ने आपके साथ शेयर किये है| यह किताब नरेस चंद्र सेन गुप्ता ने लिखी है |
नरेस चंद्र सेन गुप्ता ये ब्रिटिश राज के समय #कलकत्ता_हाईकोर्ट में #वकील थे तथा #ढाका #विश्वविद्यालय में #विधिशास्त्र विभाग के डीन भी थे |
उनकी किताब The Evolution of law में उन्होंने ये साफ़ साफ़ कहा है की जब कोई #विदेशी किसी अन्य देश के समाज व्यवस्था के बारेमे लिखता है तो
१) वह ये सारी बातें अपने देश की समाज व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए लिखता है|
२) एक स्थानीय समीक्षक जिस तरह से समाज की भावनाओ को समझ सकता है उसतरह से विदेशी नहीं समझ सकता
३) इसके अलावा, विदेशी पर्यवेक्षक अक्सर एक उद्देश्य के साथ लिखते हैं, चाहे वह पूरी तरह से कल्पनाशील काम के रूप में क्यों न हो, लेखक के अपने देश की आलोचना के माध्यम से विदेशी संस्थानों को आदर्श बनाने के उद्देश्य से या राष्ट्रीय संस्थानों के महिमामंडन के उद्देश्य से।
इस वजह से एक विदेशी समीक्षक के द्वारा वर्णित समाज व्यवस्था का अर्थ भिन्न भी हो सकता हो जो की वास्तव में न हो या वास्तव में उसके विपरीत भी हो सकता है|
इस बात परसे हमें यह समझना चाहिए की सालों से भारतीय समाज व्यवस्था को जिस तरह गलत बताया जा रहा है वैसा कभी था ही नहीं - जो अंग्रेजी रिपोर्ट्स में लिखा गया हो वह लिखने वाले का अपना नजरिया हो| जैसे "दरिद्र" का "दलित" किया गया वैसे ही कई ऐसी बातें लिखी गयी हो जो वास्तव में #यूरोपीय देशों में उस समय मौजूद रही हो पर लिखते वक्त ये जताया गया हो जैसे की ये सारी बातें यहाँ #भारत के उपमहाद्वीप में घटित है|
और ये रिपोर्ट्स आज भी हमें जातियों में बाटने के लिए काफी है|
ऐसेही कई और तत्थ्यो के साथ आपसे पुनः बातचीत होंगी तबतक के लिए आप इस लेख को ज्यादा से ज्यादा शेयर करे ताकि जातिवाद जैसे देश को विभाजित करने वाले हत्कंडे को हम सब मिलकर बेअसर कर सकें|
धन्यवाद|
ऊपर संदर्भित किताब का लिंक : https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.24779
जिन्हे सच में भारत की समाज व्यवस्था क्या थी ये जानना है वे कृपया #लोकमान्य_तिलक, #बाबासाहेब_आंबेडकर, #ज्योतिबा_फुले, #सावरकर जैसे महान #देशभक्तों की किताबे पढ़े आपको स्वतः पता चल जायेगा की सच क्या है|
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