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Thursday 1 April 2021

भक्त दंपति ने पुत्र खोकर भी असीम धैर्य का परिचय दिया

एक भक्त परिवार था, जिसमें पति-पत्नी के अतिरिक्त उनका , एक पुत्र था। तीनों भगवान पर अटूट विश्वास रखते थे। एक बार पुत्र बीमार हो गया। उन्होंने बहुत उपचार कराया, किंतु वह स्वस्थ नहीं हुआ। इसी बीच पति को दूसरे शहर में किसी जरूरी काम से जाना पड़ा। उसने पत्नी के सामने चिंता जताई, किंतु पत्नी ने उसे आश्वस्त किया कि वह बेटे का पूरा ध्यान रखेगी। पति भारी मन से चला गया, किंतु दुर्भाग्यवश उसके जाते ही पुत्र का देहांत हो गया।' पत्नी ने धैर्य रखते हुए अपने बेटे के शव को ढंक दिया और शाम को जब पति के आने का समय हुआ तो भोजन बनाने लगी। पति ने आते ही पूछा - पुत्र की क्या दशा है?” पत्नी बोली - 'आज वह - पूरा विश्राम कर रहा है। आप भोजन कर लीजिए, फिर उसके पास जब पति भोजन करने लगा, तो पत्नी बोली - 'पड़ोसन ने मुझसे एक बर्तन में पानी मांगा था, जो मैंने उसे दिया। अब मैं अपना . बर्तन मांग रही हूं, तो वह दे नहीं रही है और मुझ पर रोती-चिल्लाती है।” पति ने कहा - “वह बड़ी मूर्ख है। दूसरे की वस्तु लौटाने में क्यों रोना?” तब तक पति भोजन कर चुका था। तब पत्नी ने धीरे से कहा - 'अपना पुत्र भी ईश्वर की धरोहर था। आज ईश्वर ने अपनीवस्तु हमसे वापस ले-ली है, तो हम भी क्यों रोएं?” पति ने पत्नी का मुंह देखा और सारा माजरा समझकर बोला - तुम ठीक कहती हो।' ' फिर दोनों ने धैर्यपूर्वक अपने पुत्र का दाह-संस्कार किया। कथासार यह है कि मानव-जीवन परमेश्वर की धरोहर है, अतः इसके छिन . जाने पर हमें अवसाद में नहीं डूबना चाहिए। 



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