महारानी लक्ष्मीबाई के जीवन की एक घटना है जो प्रत्येक नागरिक के लिए राष्ट्र की सर्वोपरिता को रेखांकित करती है। महारानी और अंगरेजों में मध्य कट्टर शत्रुता थी। अंगरेजों ने महारानी को झुकाने के अनेक प्रयास किए, लेकिन देशभक्त महारानी को डिगा न सके। महारानी लक्ष्मीबाई का संकल्प था कि राष्ट्र के लिए प्राण दे देंगी, किंतु अंगरेजों के समक्ष समर्पण नहीं होंगी एक बार लक्ष्मीबाई और अंगरेजों की लड़ाई चल रही थी। अंगरेज महारानी के हाथों पराजित होकर अपनी जान बचाते भाग रहे भागते-भागते अंगरेजों को एक मंदिर a मस्जिद दिखाई दिए। अंगरेज उसमें जा छिपे, क्योंकि वे जानते थे कि मंदिर-मस्जिद हिंदुओं और मुस्लिमों के धर्मस्थल हैं, इसलिए वे इन्हें नष्ट नहीं करेंगे; किंतु रानी के एक मुस्लिम तोपची ने अल्लाह से प्रार्थना की-या अल्लाह! मातृभूमि की रक्षा के लिए तेरे पवित्र स्थान को ' नष्ट कर रहा हूं। यह कहकर उसने मस्जिद पर तोप दाग दी और अंगरेजों के साथ ही वह मस्जिद भी ढेर हो गई। अब तोपची ने तोप का मुंह मंदिर की ओर कर दिया, लेकिन मंदिर पर गोला दागने की उसकी हिम्मत नहीं हुई। पास ही खड़ी लक्ष्मीबाई तोपची का “मनोभाव भांप गई। उन्होंने स्वयं आगे बढ़कर मंदिर पर यह कहते हुए तोप दाग दी कि मातृभूमि धर्म से बढ़कर है। इस प्रकार मंदिर में छिपे अंगरेज मृत्यु को प्राप्त हुए। वस्तुतः राष्ट्र संदेव धर्म या संप्रदाय से ऊपर होता है। जिस राष्ट्र की मिट्टी से हमारा पालन पोषण होता है उसकी रक्षा करना हमारा सर्वोच्च दायित्व होता है।
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