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Wednesday, 2 December 2020
जब गुलाम हाशम ने जीता अपने मालिक पर मन
बगदाद के खलीफा का हशम नाम का एक गुलाम था। वह अत्यंत सीधा-साधा और निष्ठावान था। बदसूरत होने के कारण अन्य गुलाम हमेशा उसका उपहास करते थे किंतु वह सभी बुरा नहीं मानता था और ना ही खलीफा से उनकी शिकायत करता था। खलीफा के अन्य सभी गुलामों से अधिक कार्य वह करता और जो रूखी सूखी उसे दी जाती वही खाकर संतुष्ट रहता। एक बार खलीफा अपनी बग्गी में बैठकर गई जा रहे थे। उनके गुलामों की फौज भी उनके साथी रास्ता पथरीला और फिसलन भरा था। अतः बग्गी धीरे धीरे चल रही थी पूर्णविराम अचानक एक जगह कीचड़ में घोड़े का संतुलन बिगड़ा और वह फिसल गया पूर्णविराम इस कारण पति भी असंतुलित हुई और खलीफा के हाथों में रखे हीरे मोती की बेटी गिरकर खुल गई खलीफा ने गुलामों से कहा जल्दी से हीरे मोती बिन लो। सभी को इनाम दिया जाएगा। यह सुनते ही सारे गुलाम हीरे मोती बटोरने के लिए दौड़ पड़े केवल हाशाम नाम का गुलाम खड़ा रहा यह देखकर खलीफा ने हाशामक्यों जाओ खलीफा ने खुश होकर उसी वक्त हाषम को मुक्त कर दिया।सार यह है कि अपने मालिक के प्रति एकनिष्ठ संपूर्ण सदैव अच्छा परिणाम देता है। अतः अपने मालिक या स्वामी की प्रति हमेशा निष्ठावान रहना चाहिए।
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