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Friday, 18 December 2020
महामना मालवीय के आदर्श से राजा की छुटी शराब
मोहन मालवीय ने जब कॉलेज की शिक्षा पूर्ण की तब उनकी आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी। उन्हें तत्काल अध्यापक की नौकरी करनी पड़ी। कालाकांकर के राजा श्री पाल सिंह ने उनकी बहुत ख्याति सुन रखी थी पूर्णविराम उन्होंने उस समय हिंदुस्तान नामक समाचार पत्र का प्रकाशन आरंभ किया था जिसके लिए उन्हें 1 सुयोग्य संपादक बनने का आग्रह किया। आर्थिक तंगी के चलते मालवीय जी ने यह प्रस्ताव स्वीकार तो कर लिया किंतु शराब के आदी राजा के सामने शर्त रखी कि जब आप नशे में हो तो कृपया कार्यालय में मेरे पास ना पूर्णविराम राजा साहब ने मान लिया। इसके बाद मालवीय जी ने संपादन का कार्य अत्यंत तन्मयता से शुरू कर दिया। किंतु 1 दिन राजा साहेब नशे में अपने शर्त भूल गए और मालवीय जी के कार्यालय जा पहुंचे। मालवीय जी ने तुरंत त्यागपत्र दे दिया। नशा राजा साहेब को बड़ी गर्मी हुई और उन्होंने मालवीय जी से क्षमा याचना की किंतु मालवीय जी बोले मैं अपने आदर्शों को सर्वोपरि मानता हूं और उनके साथ कोई समझौता नहीं कर सकता। आप मुझे क्षमा करें मैं अब आपके यहां कार्य नहीं कर सकता। राजा साहेब ने उस दिन से शराब छोड़ दी और मालवीय जी को वकालत पढ़ने के लिए ₹250 मानसिक छात्रवृ देते रहे। वस्तुत: मैतिक प्रतिमानों के पालन से जीवन आदर्श बनता है।
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