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Saturday, 5 September 2020
सब कार्यों पर अहंकार करने से नष्ट होता है पूर्णा
हनुमान जी जब लंका दहन कर लौट रहे थे तब उन्हें कुछ अहंकार हो गया। श्री रम ने इसे तोड़ लिया। रास्ते में हनुमान जी को प्यास लगी। उनकी रोशनी शांत बैठे एक मुनि पर गई। उनके पास जाकर हनुमान जी ने मुनि से कहा मै श्री रामचंद्र जी का कार्य करके लौट रहा हूं। मुझे बड़ी प्यास लगी है। थोड़ा जल्दी से या किसी कैलाश का पता बताइए पूर्ण राम मुनि ने उन्हें जला यश का पता बता दिया। हनुमान सीता की देवी चूड़ामणि अंगूठी और ब्रह्मा जी का दिया हुआ पत्र मुनि श्री के आगे रखकर जल पीने चले गए। इतने में एक बंदर वहां आया और उसने इन सभी वस्तुओं को उठाकर मुनि के कमंडल में डाल दिया। जब हनुमान जल्दी कर लौटे और अपनी वस्तुओं के विषय में पूछा राम नाम उनके हजारों अंगूठियां दिखाई पड़ी। उन्होंने पूछा यह सब अंगूठियां आपको कहां से मिली तथा इनमें मेरी अंगूठी कौन सी है मुनि ने उत्तर दिया जब श्री राम अवतार होता है और सीता हरण के पश्चात हनुमान जी पता लगा कर लौटते हैं तब शोध मुद्रिका यही छोड़ जाते हैं। ही सब मुझे का है इसमें पड़ी है। तब हनुमान जी का कार्य यह सोच कर नष्ट हो गया कि न जाने कितने राघव यहां आए और मुझे जैसे कितने लोगों ने उनके कार्य किए हैं। उन्होंने श्री राम के पास जाकर क्षमा मांगी।
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