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Friday 11 September 2020

जब गुलाब ने मालिक के रूप में अपनी बोली लगाई

यनानी दार्शनिक डायजनीज शारीरिक रूप से काफी स्वस्थ और क्लशप्ली थे। अपने जीवन के अंतिम दिनों में उन्होंने सब कुछ त्याग दिया था और निर्वस्त्र रहने लगे थे। वे महीनों जंगल में घूमते और बस्तियों से दूर रहते। एक दिन वे किसी निर्जन वन में घूम रहे थे। तभी उन्हें कुछ व्यापारी मिले। ये सभी सशस्त्र थे और इनका काम गुलामों का व्यापार करना था। ये लोग निर्धन और लाचार लोगों को पकड़ लेते और गुलाम बनाकर मंडियों मेँ बेच देते। डायजनीज को देखकर उन्हें लगा कि इतना सुंदर और बलवान गुलाम तो काफी अच्छे पैसों में बिकेगा । उन्होंने डायजनीज क्रो घेर लिया और बोले हम तुम्हें गुलाम बनाने आए हैँ । डायज़नीज ने निर्थीकता से कहा ठीक है, हम गुलाम । किंतु हम अपने मनं के मालिक हैँ। बोलो कहां चलना है? वे पहले तुम्हें जंजीरें तो डाल दें । डायजनीज ने कहा क्यों व्यर्थ समय और शक्ति नष्ट करते हो? में कहीँ नहीं भामूंगा । उन्होंने मंडी पहुंचकर डायजनीज की गुलाम के रूप में बोलो लगानी शुरू की । तब डायजनीज ने कहा नासमझी ! तुम मेरे पीछे आए हो या में तुम्हारे पीछे आया हूं? कौन, किससे बंधा है? इसलिए में अल्फा लगाता हूं कि एक मालिक बिकने आया है। जिसे खरीदना हो, खरीद ले। डायज़नीज़ ने यही आबाज लगाई। 'खरीदारों की भीड हैरान रह गई और उधर से गुज़र रहे यूनान के बादशाह सिकंदर ने डायजनीज क्रो अपना गुरु मानका उसके समक्ष सिर झुका दिया । बस्तुत: किसी क्रो शारीरिक रूप से परास्त करक्रैणुलाम नहीं बनाया जा सकता । प्रेम से अधिकार माया जा सकता है, बल से नहीं। 

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