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Tuesday 18 August 2020

गुरुदेव के व्यवहार ने किया पड़ोसी का ह्रदय परिवर्तन

नोबेल पुरस्कार मिलते ही गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर को बधाई देने वालों का तांता लग गया। दूर दूर से लोगों ने आकर उनका अभिनंदन किया। बस उनसे अगर कोई मिलने नहीं आया तो वह था उनका पड़ोसी पूर्णविराम उसने सोचा कि आखिर सभी लोग इनके चरण क्यों छूते हैं इन में ऐसी क्या खास बात है पड़ोसी के उपेक्षापूर्ण सोमवार को मन ही मन परेशान कर दिया थोड़े दुखी हुए समुद्र के किनारे टहल रहे थे तो उन्होंने देखा कि सूर्य सागर दमक उठा था टैगोर भावविव्हल को देखते रहे। तभी उनकी नजर पास ही के पानी से भरे गड्ढे पर पड़ी। प्रातः कालीन सूर्य की किरणों वह भी सोना बरसा रही थी। टैगोर के मन में विद्युत की भांति यह विचार कौंधा कि जब सूर्य इस कदर समानता रखता है तो मुझ में भेदभाव क्यों। सवाल चरण स्पर्श का है। मेरा पड़ोसी नहीं करता है तो मैं ही उसके चरण छू लेता हूं। ऐसा सोचते हुए वे पड़ोसी के घर गए। वह कह रहा था उन्होंने उसके चरण छूते हुए आशीर्वाद मांगा। पड़ोसी रह गया उसकी आंखें छलक पड़ी। वह बोला आप जैसे प्रेषित अन्य व्यक्ति को नोबेल पुरस्कार मिलना सवार था उचित है। ऐसा करते हुए वह उनके चरणों में गिर गया। सार यह है कि जब ईश्वर समस्त प्राणियों को एक ही दृष्टि देखता है और उन पर समान रूप से अपनी कृपा बरसाते है तो हमें भी समानता का व्यवहार करना चाहिए। 

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