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Tuesday, 4 August 2020
विद्यासागर ने सिखाया वस्तु का शत-प्रतिशत उपयोग
ईश्वर चंद्र विद्यासागर और खुदीराम बोस के बीच मित्रता थी। दोनों की अक्सर मुलाकात होती और अनेक विषयों पर भी चर्चा करते थे। एक दिन विद्यासागर जी के घर खुदीराम बोस आए पूर्णब्रह्म बड़े प्रेम से दोनों घंटों बातचीत करते रहे। कुछ दिन विद्यासागर जी ने खुदीराम बोस के सत्कार में नारंगियां खिलाई।खुदीराम जी नारंगी यों के स्वाद की प्रशंसा करते हुए उन्हें खाने लगे। जब ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी ने उन्हें नारंगी ओ को छीलकर उनकी फाके चूस चूस कर नीचे से देखा तो बोले देखो भाई इन्हें को मत यह भी किसी काम आ जाएगी। खुदीराम जी ने आश्चर्यचकित पूछा आप किसे देंगे। का क्या उपयोग हो सकता है विद्यासागर जी बोले आप इन्हें खिड़की के बाहर रख दे और वहां से हट जाए तो अभी पता लग जाएगा खुदीराम जी ने खिड़की के बाहर उड़नछू सी हुई आंखों को रख दिया और वहां से हट गए। थोड़ी ही देर में कुछ कोई उल्फा को को लेने आ गए तब विद्यासागर जी ने कहा देखा आपने जब कोई पदार्थ किसी भी प्राणी के काम में आने योग्य हो तब तक उसे व्यर्थ नहीं सीखना चाहिए। उसे इस प्रकार रखना चाहिए कि धूल मिट्टी लगकर वह नष्ट ना हो और दूसरे प्राणी उसका उपयोग कर सकें। वस्तुतः किसी भी चीज के निर्माण की उपयोगिता तभी है जब उसका शत-प्रतिशत उपयोग हो। कोई वस्तु फेंकने के पूर्व उसके अन्य संभावित उपयोगों पर भी विचार कर लेना चाहिए।
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