कल कृष्ण जन्मोत्सव सभी हिन्दू भाई बहनों ने मनाया।
मै इस संदर्भ में कुछ कहना चाहती हूं।
यशोदा मैया:
क्या था मैया का चरित्र?
हमारे कृष्ण लाला पर कई serial और सिनेमा बन चुके है। पर हर जगह मैया का चरित्र एक डरपोक माता कि तरह बताया है। जब भी लल्ला किसी असुर को मारता है मैया बेहोश होते हुए ही दिखाई है। क्यों यशोदा को इस तरह बताया है ये पता नहीं। पर निसंदेह यह यशोदा का चरित्र नहीं है।
क्या गीता का ज्ञान देनेवाला किसी डरी सहमी स्त्री को अपनी माता बनाएगा? क्युकी गीता डर से मुक्त करती है तो कृष्ण जैसे महापुरुष डर कर बेहोश होनेवाली स्त्री को माता नहीं चुनते?
मैया ने पूर्ण पुरुष को अपने पुत्र रूप में प्राप्त करने के लिए नंदबाबा के साथ कई जन्मों से तप किया था।
क्या मैया को इस बात की अनुभूति नहीं थी कि मेरा लाला धरती पर धर्म की स्थापना के लिए आया है? बिलकुल मैया को पता था कि कृष्ण लला कोन है। पर सिनेमा और सीरियल ने ये बात कभी बताई ही नहीं।
हर मा अपने शिशु कि किसी खतरे में देखकर विचलित जरूर होती है। पर इसका मतलब ये नहीं है कि वो डरपोक है और डर के मारे बार बार बेहोश होती है। एक महान बालक कि माता उससे भी महान होती है और वही माता बालक को निडर होना सिखाती है। अगर उस स्त्री के बस में अपने बालक की रक्षा करना नहीं है तो वह अपने आराध्य के शरण जाकर बालक कि रक्षा हेतु प्रार्थना करती है। अब प्रार्थना आखे बंद करके करे तो उसे क्या बेहोश होना माना जाएगा? नहीं न।
यशोदा मैया कभी बेहोश या डर से सहमति नहीं थी वह केवल परमपिता परमात्मा के शरण जाकर कृष्ण लाला के सुरक्षित होने की प्रार्थना करती थी।
जिस व्यक्ति ने तप किया हो वो डर के मारे बेहोश नहीं होता अपितु आंखे बंद कर अपने आराध्य को समर्पित होता है और समस्या के निवारण हेतु प्रार्थना करता है।
यशोदा और देवकी दोनों ही कृष्ण लाला की माताएं है और दोनों ही निसंदेह शोर्यशाली है। दुख से रोने के बजाय दोनों ने भी अपने अंतर्मन में बसे परमेश्वर को निरंतर जाना है और उसकी पूजा प्रार्थना कि है। एक कारावास में थी और दूसरी गोकुल में थी। दोनों माताओं का चरित्र जिस तरह हम सिनेमा सीरियल में देखते है वैसा कतई नहीं था।
वो दोनो भी महान माताएं है। उन्होंने निरंतर कृष्ण के लिए अपने वात्सल्य कि गंगा बहाई है और जो मा वात्सल्य पूर्ण है वो बेहोश नहीं होती वो पूर्ण होश में रहकर अपने बालक को निरंतर आशीर्वाद देती है, सद्भावनाएं देती है।
और यही चरित्र है माता यशोदा, माता देवकी का।
और यही चरित्र है माता कौशल्या का भी।
और यही चरित्र इतिहास के सभी महान माताओं का।
अगर हर स्त्री यशोदा की तरह तप कर अपने डर को जीत ले तो हर बालक कृष्ण होगा और हर बालिका भी कृष्ण कि तरह होंगी।
यशोदा कभिभी कृष्ण को संकट में देखकर बेहोश नहीं हुई, या रोई भी नहीं प्र मैया धैर्य पूर्वक सृष्टि के संचालक को समर्पित हुई और लाला कि रक्षा की प्रार्थना किया करती थी।
यशोदा का जो चरित्र सिनेमा और सीरियल में बताया उसने स्त्रियों को भ्रमित कर दिया है। इस भ्रम का परिणाम यह है की हम कृष्ण जैसी पीढ़ी खो चुके है।
अगर जिजामाता डरपोक होती तो शिवाजी महाराज नहीं बनते। और मणिकर्णिका रोनवाली रहती तो झासी कि रानी नहीं कहलाती। इन दो महान स्रियो ने इतिहास की महान स्त्रियों से ही निडरता और साहस के पाठ पढ़े है। और उनमें से दो स्त्रियां यशोदा माता और देवकी माता भी है।
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