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Thursday, 13 August 2020
सदचिंतन से गणिका ने क्या नर्क से स्वर्गारोहण
एक सन्यासी बड़े ही वितरा गीत है। शहर के बाहर नदी किनारे एक छोटी सी कुटिया में रहते थे और भगवत भजन करते थे। उनकी त्यागी वृति और ज्ञान पूर्ण बातों से प्रभावित होकर लोग उनके पास आते और उनके सानिध्य मैं सत्संग का लाभ पाते। सन्यासी सभी को अच्छा बनने की राह दिखाते और यथासंभव व्यसनों व कुप्रवृत्तियों से बचने की सलाह देते। एक दिन एक वैश्य ने सन्यासी की कुटिया के सामने एक विशाल भवन बनवाया और वह राग रंग शुरू हो गया। सन्यासी उसे देखकर यह सोचते की तैसी पति ता है। कैसे निकृष्टतम कर्म करती है। यह अवश्य ही नरक में जाएगी। औजार वैश्य रोज सुबह उठकर सन्यासी की कुटिया का धर्म में पवित्र वातावरण पर विचार करती कि इनका जीवन कितना पवित्र है। सन्यासी ने इस स्थान को अपने भजन भाव से पैसा पुनीत शांति से भर दिया है। क्या मैं उनके जैसा सात्विक जीवन कभी जी सकूंगी। कालांतर में दोनों की मृत्यु हुई और दोनों यमलोक पहुंचे। सन्यासी नेहा भी वैश्य को देख कर कोसा पूर्णाराम यमदूत ने वैश्य को नर्क में डाल दिया पूर्णाराम किंतु उन्होंने वह भी उसे सन्यासी का ध्यान करते पाया और देखा कि वह उन्हीं के भावों से ओतप्रोत उनके जैसे बनने की प्रार्थना कर रही है। तब यमदूत ने उसे स्वर्ग में स्थान दिया।
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