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Thursday 30 July 2020

नेहरू जी ने महात्मा गांधी से सीखा मितव्ययिता का पाठ

महात्मा गांधी की पार्टी के कार्य के सिलसिले में हराया यात्राएं किया करते थे। जो देश की स्वतंत्रता के उद्देश्य को लेकर होते थे पूर्ण मेरा एक बार गांधी जी ऐसे ही किसी कार्य में से इलाहाबाद आए और पंडित मोतीलाल नेहरू के निवास स्थान आनंद भवन में। नेहरू परिवार ने इसे अत्यंत सौभाग्य का विषय माना और गांधी जी का आत्मीयता परिपूर्ण सत्कार किया। गांधीजी रात्रि विश्राम के बाद जब सुबह उठे तो नित्य कर्म से निवृत्त होकर हाथ मुंह धोने। इसी दौरान जवाहरलाल नेहरू गांधी जी से बात भी कर रहे थे पूर्व रामकोला करते-करते गांधी जी का पानी खत्म हो गया इससे उनका मन कुछ उखड़ गया और बातचीत बीच में ही रुक गई। नेहरु जी ने उनसे पूछा तो वे बोले देखो ना मैं बातचीत में इतना खो गया कि सारा पानी खर्च हो गया और अब मुझे दोबारा पानी लेना पड़ेगा। नेहरू जी ने उनकी बात सुनकर हंसते हुए बोली बस इतनी सी बात है। यहां तो गंगा और यमुना दोनों बहती है।जितना चाहे उतना इस्तेमाल कीजिए। गांधी जी ने कहा गंगा और यमुना ही मात्र क्यों ना उपलब्ध हो किंतु मनुष्य को अपने लिए उतनी ही मात्रा में उसे लेना चाहिए जितनी अनिवार्य हो। मितव्ययिता से किसी भी वस्तु का उपयोग करने पर आगे की पीढ़ियों के लिए वह संग्रहित रहती है और इस प्रकार वह समाज की अधिकतम आवश्यकता की पूर्ति करती है। सार यह है कि मितव्ययिता को अपनाकर कल्याण को साकार किया जा सकता है।

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