तू छोड़ गया तो ख़ता इसमें तेरी क्या है
हर शख़्स मेरा साथ निभा भी नहीं सकता
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क्या ख़ता मुझसे हुयी जो ख़त का आना बन्द है
आप हैं मुझसे ख़फ़ा या डाकखाना बन्द है.
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तन्हाई में बिखरी खुशबू-ए-हिना तेरी है।
वीरान खामोशियों से आती सदा तेरी है।।
अश्क के कतरों से भरता गया दामन मेरा।
फिर भी खुशियों की माँग रहे दुआ तेरी है।।
अच्छा बहाना बनाया हमसे दूर जाने का।
टूट गये हम यूँ ही या काँच सी वफा तेरी है।।
सुकून बेचकर ग़म खरीद लाये है तुमसे।
लगाया था बाज़ार इश्क का ख़ता तेरी है।।
वक्त की शाख से टूट रहे है यादों के पत्ते।
मौसम ख़िज़ाँ नहीं बेरूखी की हवा तेरी है।।
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तुम्हारे पास हूँ शायद ,शायद दूर भी हूँ.
मुहब्बत हो गई तुमसे ,बस इतनी ख़ता है मेरी
माना के मुजरिम हूँ , मगर बेकसूर भी हूँ..
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