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Wednesday, 10 June 2020
तीनो चोरों को अलग अलग सजा देकर अकबर ने पाई प्रशंसा
अकबर का न्याय बहुत प्रसिद्ध था। वे दूध का दूध और पानी का पानी कर देते थे। एक बार उनका दरबार लगा था। एक के बाद एक मुकदमे अकबर निपटा तेजा रहे थे तभी तीन व्यक्तियों को सैनिक पकड़कर दरबार में लाए पूर्णविराम अकबर ने उनका अपराध पूछा तो सैनिकों ने बताया कि तीनों चोरी करते पकड़े गए। अकबर ने पहले चोर को बुलाकर पूछा क्यों यह सब करते हो शर्म नहीं आती? चोर के चेहरे पर गहरी गिलानी ने भाव थे और आंखों में आंसू। अकबर ने उसे छोड़ देने का आदेश दिया। फिर दूसरे को अकबर के समक्ष पेश किया। अकबर ने उसे देखा और वही प्रश्न किया चोर की आंखों में शर्म के भाव थे पूर्णविराम अकबर ने उसे पीठ पर 10 कोड़े लगाने का आदेश दिया। तीसरे अपराधी से जब अकबर ने अपना पुरवोक्त कृष्णा किया तो वह खुशी से हंसने लगा। अकबर का आदेश था इसका मुंडन पैर छूने से इसके सिर को हो तो और गधे पर चढ़ा कर पूरे नगर मैं घुमाए। वैसे ही किया गया। अकबर ने जानना चाहा कि एक ही अपराध में पकड़े गए तीन लोगों को अलग-अलग दंड देने के बाद वे क्या कर रहे हैं? पता लगा कि पहले ने आत्महत्या कर ली दूसरा स्वयं को घर में बंद कर रो रहा है और तीसरा चौराहे पर पान खाकर ठहाके लगाते हुए फिर से चोरी करने की इच्छा व्यक्त कर रहा है यह जानकर पूरा दरबार अकबर के न्याय की प्रशंसा करने लगा पूर्णविराम दरअसल संस्कारों से प्रवृत्तियां विकसित होती है। इसलिए व्यवहार के मापदंड संस्कारों के आधार पर तय करना चाहिए।
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