यह न पूछ कि शिकायतें कितनी हैं तुझ से;
यह बता कि तेरा कोई और सितम बाकी तो नही।`
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धड़कनों से रूह तक, उनका ही आगोश हो,
मोहब्बत से यूँ रु-बरु होने की चाहत है!
मयख़ाने में भी वो बात कहाँ,
अब तो उनकी निगाहों से पीने की चाहत है!
उनको छूकर गुजरी हवाएं भी सितम करती हैं,
की अब ना होश में आने की चाहत है!
बेसब्र मेरी आरज़ू को सुक़ून मिल जाये,
ऐसे उन्हें पनाहों में छुपाने की चाहत है!
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मुझ पर जब सितम करो तो तरस मत खाना .
मुझ पर हर सजा जाएज़ है क्योंकि मैने महोब्बत की है
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उनके सितम का था असर की हम मुस्कुराना हीं भूल गए
सब कुछ भूल दिया दिल से..पर एक उसे भूलना भूल गए
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मुझे फिर तबाह कर मुझे फिर रुला जा,
सितम करने वाले कहीं से तू आजा,
आँखों में तेरी ही सूरत बसी है,
तेरी ही तरह तेरा ग़म भी हंसीं है..
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मेरे मन तू क्यों रोता है जो लिखा है वही होता है
रास्ते दस और खुलते हैं जब एक बंद होता है
जिन पेड़ों पर फल नहीं होते
क्या वहाँ चिड़ियों का बसेरा नहीं होता है
हिम्मत हारने से तुझे क्या मिलेगा
रात के बाद ही तो सवेरा होता है
कितनी भी उड़ान भर ले आसमान में
मिलना तो सबको जमीं पर होता है
मत मायूस हो दुनिया के सितम ख़ुद पर पाकर
सुना है जिसका कोई नहीं उसका खुदा होता है
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मुझ पर सितम ढहा गए मेरी ही ग़ज़ल के शेर,
पढ़-पढ़ के खो रहे हैं वो गैर के ख्याल में।
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दर्द दे गए सितम भी दे गए;
ज़ख़्म के साथ वो मरहम भी दे गए;
दो लफ़्ज़ों से कर गए अपना मन हल्का;
और हमें कभी ना रोने की कसम दे गए।
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मुझे मंज़ूर थे वक़्त के हर सितम मगर,
तुमसे बिछड़ जाना, ये सज़ा कुछ ज्यादा हो गयी।
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ये भी मुझसे सवाल करते हो;
मरना चाहें तो मर नहीं सकते;
तुम भी जीना मुहाल करते हो;
अब किस-किस की मिसाल दूँ तुम को;
हर सितम बे-मिसाल करते हो।
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पास होकर सितम करना तो आदत थी तुम्हारी,
अब यादो में रह कर क्यों जीना मुश्किल करते हो…!
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हिसाब-किताब हम से न पूछ अब, ऐ-ज़िन्दगी,
तूने सितम नही गिने, तो हम ने भी ज़ख्म नही गिने!
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समय का पासा पलट भी सकता है !
जो तू भी सह सके उतना सितम कर .. !
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नही मिला कोई तुम जैसा आज तक
पर ये सितम अलग है के मिले तुम भी नही
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उनके होंठों पे मेरा नाम जब आया होगा;
ख़ुद को रुसवाई से फिर कैसे बचाया होगा;
सुन के फ़साना औरों से मेरी बर्बादी का;
क्या उनको अपना सितम न याद आय होगा?
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कहाँ? तलाश करोगे किसी हम जैसे को
जो सितम भी सहे और तुम से मोहब्बत भी करे
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पर्दा-ए-लुत्फ़ में ये ज़ुल्म-ओ-सितम क्या कहिए
हाए ज़ालिम तिरा अंदाज़-ए-करम क्या कहिए,
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कितने सितम करोगे इस टुटे हुए दिल पर ,
थक कर बताना जरूर मेरा जुर्म क्या था
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कर सितम कितने भी मुझ पर इस दिल में धङकन तेरे नाम की होगी
ख्वाहिशें तो अधूरी हैं बहुत सी, मगर आखिरी ख्वाहिश तेरे दीदार की होगी
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