कुछ बच्चे बैल गाड़ी से खेलते खिलखिलाते एक साथ अपने गाँव से 3 किलोमीटर दूर लगा मेला देखने जा रहे थे । सभी काफी दिनो से पैसे जोड़ रहे थे मेला देखने के लिये।
मेले मे जाकर सभी की खुशी का ठिकाना न था खूब मस्ती किये। झुला झूले ‚.ढेर सारी मिठाईयाँ खाई। घूमते घूमते शाम भी हो गई और पैसे भी खत्म हो गये । घर लौटने के लिये 15 रू चाँहिये थे। सबने मिलकर पैसे एकठ्ठे किये जाने के लिये।
मेले से बाहर निकले तो देखा कि रास्ते पर एक बूढी औरत जो कि देख नहीं सकती थी वो ठंड में ठिठुरती जमीन पर लेटी हैं। और आसपास से जाते लोग उसके ओर चिल्लर फैक रहें हैं।
उसे देख बच्चों के पैर जैसे थम गये। सभी बच्चें बिना सोचे वापस मेले की और भागे और एक गरम कपड़ो की दुकान पर जाकर पुछा भैया ये कंबल कितने का हैं।
दुकान वाले ने जवाब दिया 200 रू का तुम लोग सच में लेना चाँहते हो तो 100 रू में दे दूँगा।
सभी दौड़ कर उस बूढी औरत के पास पहुँचे ‚ और जमीन पर पड़े सारे पैसों को एकठ्ठे किये, और गिना तो 85 रू ही हुए।
सभी मायूस हो गये तभी एक बच्चें ने किराये के लिये एकठ्ठे किये 15 रू निकाल कर अपनी हथेली आगे किया ।
सबने एक दूसरे की और देखा, और हँस पड़े।
दुकानवाले के पास जाकर कहा :- भैया ये लो 100 रू अब हमें वो कंबल दे दो ।
दुकान वाले ने कंबल दे दिया वो कंबल लेकर मुस्कुराते ‚ उछलते हुए बूढी औरत के पास गये और वो कंबल उसे ऊढा दिया।
अब घर जाने के लिये पैसे न बचने के बाद भी चेहरे पर बिना शिकन के वे सभी 3 किलोमीटर पैदल चल कर अपने गाँव गयें।
सोचने की बात हैं कि उन 85 रू फैकने वालो में से एक ने भी वो नहीं सोचा जो उन छोटे से बच्चों ने कर दिखाया।
काश हम भी बच्चों की तरह सोच पाते‚ हमारा दिल भी उनकी तरह इतना कोमल होता।
नन्हे से हाथों की मदद ने हमें सिखा दिया कि मदद कैसे की जाती हैं।
धन्यवाद नमस्कार
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