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Monday 30 July 2018

visitor

An American tourist visited Jain Muni. He was astonished to see the Muni's room was a plain, simple.The only furniture was a mat and wooden pots.
Tourist :"With due respect, may I ask: where's your furniture and other household things?"
Muni : "Where is yours?"
Tourist : "Mine? But I'm only a visitor here."
Muni : "So am I !!"

*Understand life before it too late*.

महाभारत के युद्ध में भोजन प्रबंधन

यह कथा मैंने पहली बार पढ़ी है संभव है आपके लिए भी नई हो।
         🍁  महाभारत के युद्ध में भोजन प्रबंधन🍁
       
महाभारत को हम सही मायने में विश्व का प्रथम विश्वयुद्ध कह सकते हैं क्योंकि शायद ही कोई ऐसा राज्य था जिसने इस युद्ध में भाग नहीं लिया।
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आर्यावर्त के समस्त राजा या तो कौरव अथवा पांडव के पक्ष में खड़े दिख रहे थे। श्रीबलराम और रुक्मी ये दो ही व्यक्ति ऐसे थे जिन्होंने इस युद्ध में भाग नहीं लिया।
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कम से कम हम सभी तो यही जानते हैं। किन्तु एक और राज्य ऐसा था जो युद्ध क्षेत्र में होते हुए भी युद्ध से विरत था। वो था दक्षिण के "उडुपी" का राज्य।
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जब उडुपी के राजा अपनी सेना सहित कुरुक्षेत्र पहुँचे तो कौरव और पांडव दोनों उन्हें अपनी ओर मिलाने का प्रयत्न करने लगे।
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उडुपी के राजा अत्यंत दूरदर्शी थे। उन्होंने श्रीकृष्ण से पूछा - "हे माधव ! दोनों ओर से जिसे भी देखो युद्ध के लिए लालायित दिखता है किन्तु क्या किसी ने सोचा है कि दोनों ओर से उपस्थित इतनी विशाल सेना के भोजन का प्रबंध कैसे होगा ?
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इस पर श्रीकृष्ण ने कहा - महाराज ! आपने बिलकुल उचित सोचा है। आपके इस बात को छेड़ने पर मुझे प्रतीत होता है कि आपके पास इसकी कोई योजना है। अगर ऐसा है तो कृपया बताएं।
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इसपर उडुपी नरेश ने कहा - "हे वासुदेव ! ये सत्य है। भाइयों के बीच हो रहे इस युद्ध को मैं उचित नहीं मानता इसी कारण इस युद्ध में भाग लेने की इच्छा मुझे नहीं है।
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किन्तु ये युद्ध अब टाला नहीं जा सकता इसी कारण मेरी ये इच्छा है कि मैं अपनी पूरी सेना के साथ यहाँ उपस्थित समस्त सेना के भोजन का प्रबंध करूँ।
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इस पर श्रीकृष्ण ने हर्षित होते हुए कहा - "महाराज ! आपका विचार अति उत्तम है। इस युद्ध में लगभग ५०००००० (५० लाख) योद्धा भाग लेंगे और अगर आप जैसे कुशल राजा उनके भोजन के प्रबंधन को देखेगा तो हम उस ओर से निश्चिंत ही रहेंगे।
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वैसे भी मुझे पता है कि सागर जितनी इस विशाल सेना के भोजन प्रबंधन करना आपके और भीमसेन के अतिरिक्त और किसी के लिए भी संभव नहीं है।
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भीमसेन इस युद्ध से विरत हो नहीं सकते अतः मेरी आपसे प्रार्थना है कि आप अपनी सेना सहित दोनों ओर की सेना के भोजन का भार संभालिये।" इस प्रकार उडुपी के महाराज ने सेना के भोजन का प्रभार संभाला।
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पहले दिन उन्होंने उपस्थित सभी योद्धाओं के लिए भोजन का प्रबंध किया। उनकी कुशलता ऐसी थी कि दिन के अंत तक एक दाना अन्न का भी बर्बाद नहीं होता था।
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जैसे-जैसे दिन बीतते गए योद्धाओं की संख्या भी कम होती गयी। दोनों ओर के योद्धा ये देख कर आश्चर्यचकित रह जाते थे कि हर दिन के अंत तक उडुपी नरेश केवल उतने ही लोगों का भोजन बनवाते थे जितने वास्तव में उपस्थित रहते थे।
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किसी को समझ नहीं आ रहा था कि आखिर उन्हें ये कैसे पता चल जाता है कि आज कितने योद्धा मृत्यु को प्राप्त होंगे ताकि उस आधार पर वे भोजन की व्यवस्था करवा सकें।
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इतने विशाल सेना के भोजन का प्रबंध करना अपने आप में ही एक आश्चर्य था और उसपर भी इस प्रकार कि अन्न का एक दाना भी बर्बाद ना हो, ये तो किसी चमत्कार से कम नहीं था।
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अंततः युद्ध समाप्त हुआ और पांडवों की जीत हुई। अपने राज्याभिषेक के दिन आख़िरकार युधिष्ठिर से रहा नहीं गया और उन्होंने उडुपी नरेश से पूछ ही लिया
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हे महाराज ! समस्त देशों के राजा हमारी प्रशंसा कर रहे हैं कि किस प्रकार हमने कम सेना होते हुए भी उस सेना को परास्त कर दिया जिसका नेतृत्व पितामह भीष्म, गुरु द्रोण और हमारे ज्येष्ठ भ्राता कर्ण जैसे महारथी कर रहे थे।
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किन्तु मुझे लगता है कि हम सब से अधिक प्रशंसा के पात्र आप है जिन्होंने ना केवल इतनी विशाल सेना के लिए भोजन का प्रबंध किया अपितु ऐसा प्रबंधन किया कि एक दाना भी अन्न का व्यर्थ ना हो पाया। मैं आपसे इस कुशलता का रहस्य जानना चाहता हूँ।
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इसपर उडुपी नरेश ने हँसते हुए कहा - "सम्राट ! आपने जो इस युद्ध में विजय पायी है उसका श्रेय किसे देंगे ?
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इसपर युधिष्ठिर ने कहा "श्रीकृष्ण के अतिरिक्त इसका श्रेय और किसे जा सकता है ? अगर वे ना होते तो कौरव सेना को परास्त करना असंभव था।
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तब उडुपी नरेश ने कहा "हे महाराज ! आप जिसे मेरा चमत्कार कह रहे हैं वो भी श्रीकृष्ण का ही प्रताप है।" ऐसा सुन कर वहाँ उपस्थित सभी लोग आश्चर्यचकित हो गए।
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तब उडुपी नरेश ने इस रहस्य पर से पर्दा उठाया और कहा - "हे महाराज! श्रीकृष्ण प्रतिदिन रात्रि में मूँगफली खाते थे।
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मैं प्रतिदिन उनके शिविर में गिन कर मूँगफली रखता था और उनके खाने के पश्चात गिन कर देखता था कि उन्होंने कितनी मूंगफली खायी है।
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वे जितनी मूँगफली खाते थे उससे ठीक १००० गुणा सैनिक अगले दिन युद्ध में मारे जाते थे। अर्थात अगर वे ५० मूँगफली खाते थे तो मैं समझ जाता था कि अगले दिन ५०००० योद्धा युद्ध में मारे जाएँगे।
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उसी अनुपात में मैं अगले दिन भोजन कम बनाता था। यही कारण था कि कभी भी भोजन व्यर्थ नहीं हुआ।" श्रीकृष्ण के इस चमत्कार को सुनकर सभी उनके आगे नतमस्तक हो गए।
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ये कथा महाभारत की सबसे दुर्लभ कथाओं में से एक है। कर्नाटक के उडुपी जिले में स्थित कृष्ण मठ में ये कथा हमेशा सुनाई जाती है।
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ऐसा माना जाता है कि इस मठ की स्थापना उडुपी के सम्राट द्वारा ही करवाई गयी थी जिसे बाद में ‌श्री माधवाचार्य जी ने आगे बढ़ाया।

                 🙏जय जय श्री राधे गोविंद🙏

श्रुंगार मराठी भाषेचा.


मराठी भाषेतील स्वल्पविराम, अनुस्वार आदिंचा वापर करुन लिहिलेली कविता नेटवर सापडली. कुणी लिहिली हे कदाचित विकी'पीडी'या लाच ठाऊक असेल.
वाचाच, मस्त आहे..!

​शृंगार मराठीचा​                 

​​अनुस्वारी​​ शुभकुंकुम ते
भाळी सौदामिनी |             
​​प्रश्नचिन्ही​​ डुलती झुमके
सुंदर तव कानी |            
नाकावरती ​​स्वल्पविरामी​​
शोभे तव नथनी |             
​​काना​​-काना गुंफुनी माला
खुलवी तुज मानिनी |      
_​वेलांटी​_चा पदर शोभे
तुझीया माथ्याला |                
_​मात्रां​_चा मग सूवर्णचाफा
वेणीवर माळला |         
   
_​उद्गारा​_चा तो गे छल्ला
लटके कमरेला |                  
_​अवतरणां​_च्या बटा
मनोहर भावती चेहर्‍याला |    
     
_​उ​_काराचे पैंजण झुमझुम
पदकमलांच्यावरी |        
​​पूर्णविरामी​​ तिलोत्तम तो
शोभे गालावरी ॥
श्रुंगार मराठी भाषेचा.....

Monday 23 July 2018

तलाक

नमस्कार वाचक मित्रों ओर सखियों, कही पढी एक कथा मैं यहाँ आपके साथ साझा कर रही हूँ। कृपया ईसे अंत तक पढें।

शादी की सुहागसेज पर बैठी ऊर्मिला का पति नरेंद्र जब भोजन की थाल लेकर अंदर आया तो पूरा कमरा उस स्वादिष्ट भोजन की खुशबू से भर गया। उर्मिला ने अपने
पति से निवेदन किया, "मांजी को भी यही बुला लेते तो हम तीनों साथ बैठ कर भोजन करते।"

नरेंद्र ने कहा, "छोड़ो उन्हें वो सो गई होगी आओ हम साथ मे भोजन करते है।"

प्यार से उर्मिला ने पुनः अपने पति से
कहा, "नही मैंने उन्हें खाते हुए नही देखा है।"
तो नरेंद्र ने तपाकसे जवाब दिया, "क्यो तुम जिद कर रही हो। शादी के कार्यो से थक गयी होगी इस लिए सो गई होगी, नींद टूटेगी तो खुद भोजन कर लेगी। तुम आओ हम प्यार से खाना खाते है।"

उर्मिला बुजुर्गों के प्रती आदर और प्रेम से संस्कारित थी। उसने तुरंत तलाक लेने का फैसला कर लिया क्योंकि उसे नरेंद्र ने अपने ही माँ का किया तिरस्कार न भाया। औऱ तलाक लेकर उसने दूसरी शादी कर ली औऱ इधर नरेन्द्र ने भी दूसरी शादी कर ली। दोनों अलग अलग सुखी घर-गृहस्ती बसा कर खुशी-खुशी रहने लगे।

इधर उर्मिला को दो बच्चे हुए जो बहुत ही सुशील औऱ आज्ञाकारी थे। जब वह 60 वर्ष की हुई तो वह बेटो को बोली, में चारो धाम की यात्रा करना चाहती हूँ ताकि तुम्हारे सुख मय जीवन की प्रार्थना कर सकूं। बेटे तुरंत अपनी माँ को लेकर चारो धाम की यात्रा पर निकल गये। एक जगह तीनो माँ बेटे भोजन के लिए रुके औऱ बेटे भोजन परोस कर माँ से खाने की विनती करने लगे।

उसी समय उर्मिला की नजर सामने एक फटेहाल, भूखे औऱ गंदे से वृद्ध पुरुष पर पड़ी जो के भोजन, उर्मिला और बेटों की तरफ बहुत ही कातर नजर से देख रहा था।
उर्मिला को उस वृद्ध पुरुष पर दया आ गई
औऱ बेटो को बोली जाओ पहले उस वृद्ध को नहलाओ औऱ उसे वस्त्र दो फिर हम सब मिल कर भोजन करेंगे।

बेटे जब उस वृद्ध को नहला कर कपड़े पहना कर उर्मिला के सामने लाये तो वह आश्चर्य चकित रह गयी, वह वृद्ध नरेन्द्र था जिससे उसने शादी की सुहाग रात को ही तलाक ले लिया था। उसने उससे पूछा, "क्या हो गया जो तुम्हारी हालत इतनी
दयनीय हो गई?"

वृद्ध नरेंद्र ने नजर झुका कर कहा, "सब कुछ होते भी मेरे बच्चे मुझे भोजन नही देते थे। मेरा तिरस्कार करते थे। मुझे घर से बाहर निकल दिया।"

उर्मिला ने नरेंद्र से कहा, "इस बात का अंदाजा तो मुझे तुम्हारे साथ सुहाग रात को ही लग गया था जब तुमने पहले अपनी बूढ़ी माँ को भोजन कराने की बजाय उस स्वादिष्ट भोजन का थाल लेकर मेरे कमरे में आ गए थे। औऱ मेरे बार-बार कहने के बावजूद भी आप ने अपनी माँ का तिरस्कार किया। उसी का फल आज आप भोग रहे है।"

जैसा व्यहवार हम अपने बुजुर्गो के साथ करेंगे उसी को देख कर हमारे बच्चों में भी यह अवगुण आता है कि शायद यही परम्परा होती है।

सदैव माँ-बाप की सेवा ही हमारा दायित्व बनता है।
जिस घर मे माँ-बाप हँसते है वही प्रभु बसते है।

और ईसके अलावा मैं एक बात सभी शादीशूदा पुरुषों से कहना चाहूंगी, "अगर आप चाहते हो की आपकी पत्नी आपके माँ बाप की सेवा और सम्मान करें तो पहले  आप आपके बुजुर्गों के साथ शांतिपूर्ण, आदरयुक्त बर्ताव करें। आपके काम धंदे का टेंशन कितना भी हो घर के बडे बुजुर्गों का अपमान आपके हाथों नहीं होना चाहिए। शुरुआत में थोड़ी कठिनाईयाँ आयेगी पर सही समयपर सब ठीक हो जाएगा।"

"अपनी इज्जत अपने हाथ" यह बात १०० फीसदी सब पर लागू होती हैं।

मेरी बात पसंद आई तो अपनाना वरना सपना समझकर भूल जाना।
धन्यवाद!
सबका मंगल हो।

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Practice and Prepare

Gyan ka
Deep 

My
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Tiger in the Toilet

Kaizen Story: Tiger in the Toilet 🐯

Once a stranded Tiger entered the washroom in a Corporate Office and hid in a dark corner. Since there were people outside the washroom through the day, the Tiger was afraid to come out.

Many people frequented the washroom, but the frightened Tiger didn’t touch anyone. However, after four days it couldn’t bear hunger anymore, so it caught a man who had come in, and ate him.

This man happened to be an Assistant General Manager in the organization, but nobody noticed his disappearance.

Since nothing untoward happened, the Tiger became bolder and after two days caught another man and ate him.

This man was the General Manager of the organization.

Still, nobody worried over his disappearance (Some people even happy that he was not seen in the office).

Next day, the Tiger caught the Vice President who was a terror in the organization.

Again nothing happened. The Tiger was very happy and decided that this was the perfect place for him to live.

The very next day the happy Tiger caught a man who had entered the washroom while balancing a tray of teacups in one hand.

The frightened man fell unconscious. Within fifteen minutes a huge hue and cry ensued, and everyone in the office started looking for the man. The search team reached the washroom, flushed out the Tiger and saved the unconscious man. He was the tea boy in the office.

Moral of the Story:

It is not the position, but our usefulness to others that makes us lovable and respectable. If your subordinates are happy in your absence that means you are not a perfect leader.

Acknowledgement: From the book "
Tiger in the Toilet." 🐅

नामदान

महाराज जी के पास एक स्त्री आती है।
कहती है आप ने जो नामदान मुझे बक्शा है, वो वापिस ले लीजिये।
महाराज जी बोले क्यो. . ?
स्त्री कहने लगी भजन पे बैठती हूँ मन लगता नही,भजन होता नही। और अगर भजन पर नही बैठती तो बेचैनी
होती है ,मूड खराब हो जाता है। ,अब महाराजी आप बताए मै नाम दान वापीस ना करूँ तो क्या करूँ....?
महाराज जी बोले बेटी एक शरत पे मै दिया हुआ नामदान वापिस ले सकता हूँ.?
स्त्री बोली वो क्या शरत है महाराज जी ?
महारज जी बोले बेटी मैं आटे में नमक डालता हूँ आप उसे आटे मे से नमक अलग करके दिखा दो फिर आप
चाहो तो मैं अपना दिया नामदान वापिस ले लूँगा।
यह सुन स्त्री महाराज जी के चरनो मे गिर पडी।
सो गुरू का बकशा नाम एक रसायन की तरह हमारे तन मन वजूद मे घुल जाता है जो शिष्य का चोला
छोडने तक मरते दम तक साथ रहता है।.
पहरा देती है मुर्शद की नजर हर दम,,
मजाल है कोई बुरी बला छू जाए हमको।
क्यों करते हो गरूर अपनी ठाठ पर..!!
मुट्ठी भी खाली रह जायेगी
जब पहुँचोगे घाट पर....!!!!
बड़ी ही प्यारी दोस्तों की संगत मिली,
सभी गुरुमुख ही गुरुमुख मिले जो सतगुरु की रेहमत
मिली,
लाख लाख शुक्र करूँ तेरा दाता जो दुनिया की भीड़ से बचाए रखा,
अच्छे लोगों से जोड़ मेरा मन गुरु कृपा में लगाए रखा!!!

मिसिंग टाइल

*मिसिंग टाइल सिंड्रोम*

मिसिंग टाइल सिंड्रोम
एक मनोवैज्ञानिक समस्या है
जिसमें हमारा सारा ध्यान जीवन की
उस कमी की तरफ रहता है जिसे
हम नहीं पा सके हैं |
और यहीं बात हमारी ख़ुशी चुराने का सबसे बड़ा कारण है।

जिन्दगी में कितना कुछ भी अच्छा हो,
हम उन्हीं चीजों को देखते हैं जो *मिसिंग* हैं और यही हमारे दुःख का सबसे बड़ा कारण है।

क्या इस एक आदत को बदल कर हम अपने जीवन में खुशहाली ला सकते हैं ?

मिसिंग टाइल सिंड्रोम -
एक बार की बात है एक छोटे शहर में
एक मशहूर होटल  ने अपने होटल में एक स्विमिंग पूल बनवाया।
स्विमिंग पूल के चारों  ओर बेहतरीन इटैलियन  टाइल्स लगवाये,
परन्तु मिस्त्री की गलती से एक स्थान पर टाइल  लगना छूट गया। अब जो भी आता पहले उसका ध्यान टाइल्स  की खूबसूरती पर  जाता। इतने बेहतरीन टाइल्स देख कर हर आने वाला मुग्ध हो जाता।
वो बड़ी ही बारीकी से उन टाइल्स को देखता व प्रशंसा करता। तभी उसकी नज़र उस मिसिंग टाइल पर जाती और वहीं अटक जाती....
उसके बाद वो किसी भी अन्य टाइल की ख़ूबसूरती नहीं देख पाता।
स्विमिंग पूल से लौटने वाले हर व्यक्ति की यही शिकायत रहती की एक टाइल मिसिंग है।
हजारों टाइल्स  के बीच में वो मिसिंग टाइल उसके दिमाग पर हावी रहता थी।
कई लोगों को उस टाइल को देख कर बहुत दुःख होता कि इतना परफेक्ट बनाने में भी एक टाइल रह ही गया।
तो कई लोगों को उलझन हो होती कि कैसे भी करके वो टाइल ठीक कर दिया जाए। बहरहाल वहां से कोई भी खुश नहीं निकला, और एक खूबसूरत स्विमिंग पूल लोगों को कोई ख़ुशी या आनंद नहीं दे पाया |

दरअसल उस स्विमिंग पूल में वो मिसिंग टाइल एक प्रयोग था।
मनोवैज्ञानिक प्रयोग जो इस बात को
सिद्ध करता है कि हमारा ध्यान कमियों की तरफ ही जाता है।
कितना भी खूबसूरत सब कुछ हो रहा हो पर जहाँ एक कमी रह जायेगी वहीँ पर हमारा ध्यान रहेगा।
टाइल तक तो ठीक है पर यही बात हमारी जिंदगी में भी हो तो ?
तो यह एक मनोवैज्ञानिक समस्या है जिससे हर  व्यक्ति गुज़र रहा है।

इस मनोविज्ञानिक समस्या को मिसिंग टाइल सिंड्रोम का नाम दिया गया।
उन चीजों पर ध्यान देना जो हमारे जीवन में नहीं है, आगे चल कर हमारी ख़ुशी को चुराने का सबसे बड़ा कारण बन जाती हैं।

         ऐसे बहुत से उदाहरण हो सकते हैं जिसमें हम अपनी किसी एक कमी के पीछे सारा जीवन दुखी रहते हैं।
ज्यादातर लोग उन्हें क्या-क्या मिला है
पर खुश होने के स्थान पर उन्हें क्या नहीं मिला है पर दुखी रहते हैं।

       मिसिंग टाइल हमारा फोकस चुरा कर हमारी जिन्दगी की सारी  खुशियाँ चुराता है। यह शारीरिक और मानसिक कई बीमारियों की वजह बनता है,
अब हमारे हाथ में है कि हम अपना फोकस मिसिंग टाइल पर रखे और दुखी रहें या उन नेमतों पर रखे जो हमारे साथ है और खुश रहें...

*Keep trying to aspire high but never ignore the blessings you already have, enjoy the life given to you, knowingly/unknowingly its designed by you only!”*
✌🏻✌🏻👍🏻👍🏻

Strategic Alliances

  Strategic Alliances -  For any achievement gone need the right person on your team.  Sugriv was very keen on this. Very first Sugriva was ...