नमस्कार वाचक मित्रों ओर सखियों, कही पढी एक कथा मैं यहाँ आपके साथ साझा कर रही हूँ। कृपया ईसे अंत तक पढें।
शादी की सुहागसेज पर बैठी ऊर्मिला का पति नरेंद्र जब भोजन की थाल लेकर अंदर आया तो पूरा कमरा उस स्वादिष्ट भोजन की खुशबू से भर गया। उर्मिला ने अपने
पति से निवेदन किया, "मांजी को भी यही बुला लेते तो हम तीनों साथ बैठ कर भोजन करते।"
नरेंद्र ने कहा, "छोड़ो उन्हें वो सो गई होगी आओ हम साथ मे भोजन करते है।"
प्यार से उर्मिला ने पुनः अपने पति से
कहा, "नही मैंने उन्हें खाते हुए नही देखा है।"
तो नरेंद्र ने तपाकसे जवाब दिया, "क्यो तुम जिद कर रही हो। शादी के कार्यो से थक गयी होगी इस लिए सो गई होगी, नींद टूटेगी तो खुद भोजन कर लेगी। तुम आओ हम प्यार से खाना खाते है।"
उर्मिला बुजुर्गों के प्रती आदर और प्रेम से संस्कारित थी। उसने तुरंत तलाक लेने का फैसला कर लिया क्योंकि उसे नरेंद्र ने अपने ही माँ का किया तिरस्कार न भाया। औऱ तलाक लेकर उसने दूसरी शादी कर ली औऱ इधर नरेन्द्र ने भी दूसरी शादी कर ली। दोनों अलग अलग सुखी घर-गृहस्ती बसा कर खुशी-खुशी रहने लगे।
इधर उर्मिला को दो बच्चे हुए जो बहुत ही सुशील औऱ आज्ञाकारी थे। जब वह 60 वर्ष की हुई तो वह बेटो को बोली, में चारो धाम की यात्रा करना चाहती हूँ ताकि तुम्हारे सुख मय जीवन की प्रार्थना कर सकूं। बेटे तुरंत अपनी माँ को लेकर चारो धाम की यात्रा पर निकल गये। एक जगह तीनो माँ बेटे भोजन के लिए रुके औऱ बेटे भोजन परोस कर माँ से खाने की विनती करने लगे।
उसी समय उर्मिला की नजर सामने एक फटेहाल, भूखे औऱ गंदे से वृद्ध पुरुष पर पड़ी जो के भोजन, उर्मिला और बेटों की तरफ बहुत ही कातर नजर से देख रहा था।
उर्मिला को उस वृद्ध पुरुष पर दया आ गई
औऱ बेटो को बोली जाओ पहले उस वृद्ध को नहलाओ औऱ उसे वस्त्र दो फिर हम सब मिल कर भोजन करेंगे।
बेटे जब उस वृद्ध को नहला कर कपड़े पहना कर उर्मिला के सामने लाये तो वह आश्चर्य चकित रह गयी, वह वृद्ध नरेन्द्र था जिससे उसने शादी की सुहाग रात को ही तलाक ले लिया था। उसने उससे पूछा, "क्या हो गया जो तुम्हारी हालत इतनी
दयनीय हो गई?"
वृद्ध नरेंद्र ने नजर झुका कर कहा, "सब कुछ होते भी मेरे बच्चे मुझे भोजन नही देते थे। मेरा तिरस्कार करते थे। मुझे घर से बाहर निकल दिया।"
उर्मिला ने नरेंद्र से कहा, "इस बात का अंदाजा तो मुझे तुम्हारे साथ सुहाग रात को ही लग गया था जब तुमने पहले अपनी बूढ़ी माँ को भोजन कराने की बजाय उस स्वादिष्ट भोजन का थाल लेकर मेरे कमरे में आ गए थे। औऱ मेरे बार-बार कहने के बावजूद भी आप ने अपनी माँ का तिरस्कार किया। उसी का फल आज आप भोग रहे है।"
जैसा व्यहवार हम अपने बुजुर्गो के साथ करेंगे उसी को देख कर हमारे बच्चों में भी यह अवगुण आता है कि शायद यही परम्परा होती है।
सदैव माँ-बाप की सेवा ही हमारा दायित्व बनता है।
जिस घर मे माँ-बाप हँसते है वही प्रभु बसते है।
और ईसके अलावा मैं एक बात सभी शादीशूदा पुरुषों से कहना चाहूंगी, "अगर आप चाहते हो की आपकी पत्नी आपके माँ बाप की सेवा और सम्मान करें तो पहले आप आपके बुजुर्गों के साथ शांतिपूर्ण, आदरयुक्त बर्ताव करें। आपके काम धंदे का टेंशन कितना भी हो घर के बडे बुजुर्गों का अपमान आपके हाथों नहीं होना चाहिए। शुरुआत में थोड़ी कठिनाईयाँ आयेगी पर सही समयपर सब ठीक हो जाएगा।"
"अपनी इज्जत अपने हाथ" यह बात १०० फीसदी सब पर लागू होती हैं।
मेरी बात पसंद आई तो अपनाना वरना सपना समझकर भूल जाना।
धन्यवाद!
सबका मंगल हो।
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