स्वामी रामकृष्ण परमहंस कलकत्ता के पास स्थित किसी गांव में भजन के लिए जा रहे थे। वह गांव दूर था, इसलिए बैलगाड़ी में बैठकर जा रहे थे। तब परमहंस की ख्याति ज्यादा नहीं फैली थी। लोग उन्हें काली मंदिर के पुजारी या ज्यादा से ज्यादा एक मामूली संत ही समझते थे।
रास्ता लम्बा था तो परमहंस के मन में एक प्रेरणा उठी और वह श्रीकृष्ण चरित सुनाने लगे। जहां जाना था, वह जगह काफी दूर थी, इसलिए गाड़ीवन का मन भी कथा में लगने लगा। उसे इतना रस आया कि कथा सुनने में ही रम गया।
गाड़ीवान का ध्यान बैलों की ओर तब गया, जब वे धीमे चलने लगे थे। बैलों की गति देखकर गाड़ीवान को गुस्सा आ गया और उसने एक बैल की पीठ पर जोर-जोर से दो चार डंडे जमा दिए। जैसे ही गाड़ीवान ने बैल की पीठ पर डंडे मारे, गाड़ी मे बैठे हुए रामकृष्ण परमहंस अपनी जगह से अचानक नीचे गिर पड़े और कराहने लगे। परमहंस की अचानक हुई इस हालत को देखकर गाड़ीवान आश्चर्य और घबराहट से भर गया।
उसने गाड़ी रोकी और दौड़कर रामकृष्ण के पास पहुंचा। उन्हें गौर से देखा, तो पता चला की बैल को मारे गए डंडों की चोट के निशान परमहंस की पीठ पर भी बन गए हैं। गाड़ीवान का ध्यान गया कि परमहंस एकटक उस बैल को ही देखे जा रहे थे।
सभी को अपना ही रूप मानने की बातें, तो गाड़ीवान ने कई बार सुनी थी, लेकिन उसका जीता-जागता प्रमाण पहली बार दिखाई दिया था।
गाड़ीवान का ध्यान बैलों की ओर तब गया, जब वे धीमे चलने लगे थे। बैलों की गति देखकर गाड़ीवान को गुस्सा आ गया और उसने एक बैल की पीठ पर जोर-जोर से दो चार डंडे जमा दिए। जैसे ही गाड़ीवान ने बैल की पीठ पर डंडे मारे, गाड़ी मे बैठे हुए रामकृष्ण परमहंस अपनी जगह से अचानक नीचे गिर पड़े और कराहने लगे। परमहंस की अचानक हुई इस हालत को देखकर गाड़ीवान आश्चर्य और घबराहट से भर गया।
उसने गाड़ी रोकी और दौड़कर रामकृष्ण के पास पहुंचा। उन्हें गौर से देखा, तो पता चला की बैल को मारे गए डंडों की चोट के निशान परमहंस की पीठ पर भी बन गए हैं। गाड़ीवान का ध्यान गया कि परमहंस एकटक उस बैल को ही देखे जा रहे थे।
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