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Wednesday 5 July 2017

एक फलवाला

श्यामलाल एक फलवाला था। वह फालोका ठेला रस्ते के किनारे लगाता था। 

एक दिन एक सज्जन व्यक्ती उस ठेले पर फल खरीदने गए।  श्यामलाल ने उन्हें फल देते देते कई इधर उधर की बातें की। फिर श्यामलाल  कहा, "मै श्यामलाल और आपका नाम क्या है ?" 

थोडासा परेशान होकर वह व्यक्ती बोले, "मै त्रिपाठी !"

श्यामलाल : आप क्या करते है ?

त्रिपाठी : मै स्कूल में प्रधान अध्यापक हु ?" त्रिपाठीजी थोड़े कुपित हुए तभी श्यामलाल बोल पड़ा, "वाह!  बहुत बढ़िया !"

फिर इधर उधर की बाते करते करते श्यामलाल ने त्रिपाठीजी के सारे फल पैक कर दिए।  'फिरसे इस दुकान पर नहीं आऊंगा।' ऐसा सोचते हुए त्रिपाठीजी चलते बने। 

कुछ दिनों बाद जब सारे फल ख़त्म हो गए तो त्रिपाठीजी को श्यामलाल की दुकान पर फिरसे जाना पड़ा। बडी खुशीसे श्यामलाल ने उनका स्वागत किया और जो फल त्रिपाठीजी को चाहिए वो उन्हें देने लगा। तभी त्रिपाठीजी ने पिछलीबार ख़रीदे हुए अंगूर के बारे में कहा, "पिछलीबार तुमने अंगूर खट्टे दिए थे।"

श्यामलाल ने कहा, "कोई बात नहीं साहेब इस बार आप हर फल को चख करही ले जाइये।" और श्यामलाल हर फल का एक टुकड़ा काट कर त्रिपाठीजी को देने लगा। त्रिपाठीजी ने मना किया तो श्यामलाल ने बड़ी नम्रतासे कहा, "साहेब ये दुकान तो आपकी ही है। मै तो केवल आपकी मदत के लिए यहाँ हूँ। "

श्यामलाल के इस कथन ने त्रिपाठीजी को थोड़ा शांत कर दिया और वह अपने फल लेकर घर की तरफ निकल पड़े। 

कुछ दिनों बाद त्रिपाठीजी की स्कूल में अय्यर नामक एक बच्चे के पिता उनसे मिलने आये। श्रीमान अय्यर काफी गुस्से में थे। प्रधान अध्यापक की सेक्रेटरी उनसे कुछ कहती उसके पहले वे प्रधान अध्यापक त्रिपाठीजी के केबिन में जा पोहोचे। उस अय्यर नामक बच्चे की कई शिकायते थी और वह बच्चा कई बार त्रिपाठीजी के समक्ष लाया गया था। 

"आपने मेरे बच्चे को क्यों पिटा ?" ये कहकर श्रीमान अय्यर उस बच्चे के अध्यापक को बुलाकर माफ़ी मंगवाना चाहते थे। त्रिपाठीजी ने उनको काफी समझाने की कोशिश की लेकिन बात बन नहीं रही थी। कहीसे त्रिपाठीजी को लग रहा था की, 'यह तरीका नहीं है इस समस्या को हल करने का। '

तभी त्रिपाठीजी बोल पड़े, "श्रीमान अय्यर यह स्कूल आपका ही है मै तो केवल प्रधान अध्यापक के रूप में आपकी मदत  और इस स्कूल की देखभाल करता हु। आज जो कुछ हुआ मई उसकी माफ़ी चाहता हु। आपको पूरा हक़ है की आप आपकी नाराजगी बयान करे। "

ये सुनते ही श्रीमान अय्यर थोड़े शांत हो गए और धीमी आवाज में बात करने लगे, "मुझे पता है मेरे बेटा काफी शरारती है और उसकी कई शिकायते है। मुझे पता है की वह कितनी बार आपके ऑफिस में उसकी शरारतों की वजह से लाया गया है। पर सर मेरा भरोसा करिये इस बार उसकी गलती नहीं थी आप चाहे तो उसकी कक्षा के बाकि विद्यार्थियों से पूछताछ कर सकते है।"

त्रिपाठीजी ने इस बात के लिए हां कहा और ठीक तरह से मामले की जाँच करके उचित कारवाही का आश्वासन मिलने के बाद श्रीमान अय्यर अपने किये की माफ़ी मांगते हुए चले गए। 

त्रिपाठीजी को अब अपने फलों का ख़त्म होने का इन्तजार है ताकि वह फिरसे श्यामलाल की दुकान पर जा सके। 

बोध : - "यह जगह आपकी ही है बस मै यहाँ आपकी मदत के लिए हूँ !" बस यही सभी शिकायत कर्ताओंको शांत करने का तरीका है।  
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