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Thursday 22 December 2016

शायरी के पन्ने

धड़कन बिना दिल का मतलब ही क्या;
रौशनी के बिना दिये का मतलब ही क्या;
क्यों कहते हैं लोग कि मोहब्बत न कर दर्द मिलता है;
वो क्या जाने कि दर्द बिना मोहब्बत का मतलब ही क्या।


समझौतों की भीड़-भाड़ में सबसे रिश्ता टूट गया;
इतने घुटने टेके हमने आख़िर घुटना टूट गया;
ये मंज़र भी देखे हमने इस दुनिया के मेले में;
टूटा-फूटा ​ बचा​ रहा है, अच्छा ख़ासा टूट गया।


दिल पे क्या गुज़री वो अनजान क्या जाने;
प्यार किसे कहते है वो नादान क्या जाने;
हवा के साथ उड़ गया घर इस परिंदे का;
कैसे बना था घौंसला वो तूफान क्या जाने।



आज फिर तेरी याद आयी बारिश को देख कर;
दिल पे ज़ोर न रहा अपनी बेबसी को देख कर;
रोये इस कदर तेरी याद में;
कि बारिश भी थम गयी मेरी बारिश को देख कर।


हर सितम सह कर कितने ग़म छिपाये हमने;
तेरी खातिर हर दिन आँसू बहाये हमने;
तू छोड़ गया जहाँ हमें राहों में अकेला;
बस तेरे दिए ज़ख्म हर एक से छिपाए हमने।



कहाँ कोई ऐसा मिला जिस पर हम दुनिया लुटा देते;
हर एक ने धोखा दिया, किस-किस को भुला देते;
अपने दिल का ज़ख्म दिल में ही दबाये रखा;
बयां करते तो महफ़िल को रुला देते।


कभी कभी मोहब्बत में वादे टूट जाते हैं;
इश्क़ के कच्चे धागे टूट जाते हैं;
झूठ बोलता होगा कभी चाँद भी;
इसलिए तो रुठकर तारे टूट जाते हैं।



बिछड़ के तुम से ज़िंदगी सज़ा लगती है;
यह साँस भी जैसे मुझ से ख़फ़ा लगती है;
तड़प उठता हूँ दर्द के मारे,
ज़ख्मों को जब तेरे शहर की हवा लगती है;
अगर उम्मीद-ए-वफ़ा करूँ तो किस से करूँ;
मुझ को तो मेरी ज़िंदगी भी बेवफ़ा लगती है।


हर सितम सह कर कितने गम छिपाए हमने;
तेरी ख़ातिर हर दिन आँसू बहाए हमने;
तू छोड़ गया जहाँ हमें राहों में अकेला;
बस तेरे दिए ज़ख्म हर एक से छिपाए हमने।


एक दूसरे से, बिछड़ के हम कितने रंगीले हो गये...
मेरी आँखें, लाल हो गयी और तेरे हाथ, पीले हो गये..!!


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