ख्वाब...ख्याल... मोहब्बत, हकीकत... गम और तन्हाई...
जरा सी उम्र मेरी, किस किस के साथ, तेरे कारण बिताई....
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दुआ कौन सी थी हमे याद नही......बस इतना याद है,,.
दो हथेलियाँ जुड़ी थी !..एक तेरी थी,एक मेरी थी"!!
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पनाह मिल जाये रूह को जिसका हाँथ छूकर....
उसी हथेली पे घर बना लो..
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बहल तो जाता उसके झूठे वादों से मेरा दिल...
लेकिन कब तक चलती पानी मे, काग़ज की कश्तियाँ..??
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टूट कर भी कम्बख्त धड़कता रहता है....
मैने इस दुनिया में दिल सा कोई वफादार नहीं देखा....
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तेरी यादों में बिखरा पड़ा है मेरा वजूद ...
तुमने कभी ढूंढा ही नहीं मुझे ढूढ़ने वालों की तरह !!
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यूँ हद में रहकर भी,,,,,,चाहना बेहद मुझे !!
ऐसा हुनर .. तुमने सीखा कहाँ से ..
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इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना;
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना।
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अब तो ख़ुद अपनी ज़रूरत भी नहीं है हम को..
वो भी दिन थे कि कभी तेरी ज़रूरत हम थे..!
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कितना मुश्किल है मनाना उस शख्स को .. !!
जो रूठा भी ना हो और बात भी ना करे .. !!
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