नींद और मौत में क्या फर्क है...?
किसी ने क्या खूबसूरत जवाब दिया है.... "नींद आधी मौत है" और "मौत मुकम्मल नींद है"
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जिंदगी तो अपने ही तरीके से चलती है....
औरों के सहारे तो जनाज़े उठा करते हैं।
सुबहे होती है , शाम होती है
उम्र यू ही तमाम होती है ।
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कोई रो कर दिल बहलाता है और
कोई हँस कर दर्द छुपाता है.
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क्या करामात है कुदरत की,
ज़िंदा इंसान पानी में डूब जाता है
और मुर्दा तैर के दिखाता है...
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बस के कंडक्टर सी हो गयी है जिंदगी ।
सफ़र भी रोज़ का है और जाना भी कही नहीं।.....
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लकीरें भी बड़ी अजीब होती हैं------
माथे पर खिंच जाएँ तो किस्मत बना देती हैं
जमीन पर खिंच जाएँ तो सरहदें बना देती हैं
खाल पर खिंच जाएँ तो खून ही निकाल देती हैं
और रिश्तों पर खिंच जाएँ तो दीवार बना देती हैं..
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एक रूपया एक लाख नहीं होता , मगर फिर भी एक रूपया एक लाख से निकल जाये तो वो लाख भी लाख नहीं रहता
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झुको 'वहीं... जहाँ किसी के दिल में- तुम्हें झुकाने की 'जिद्द' ना हो !!
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खूबसूरत प्राणायाम
अपने भविष्य को पूरी शक्ति से अपने भीतर खींचे...
अपने वर्तमान को अपनी क्षमता अनुसार रोक कर रखें...
अपने भूतकाल को पूरी ताकत से बाहर निकाल दें...
यही है सर्वश्रेष्ठ जीवन योग...
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