जवारे
पूजा के लिए जवारे चाहिए रहते है। होलिके दूसरे दिन नया फैलाव वाला गमला लेकर उसमे मिटटी डाल दे और एक मुठी गेहू इस मिटटी पर डालकर रखदे। हर रोज पानी दे। गणगौर तक हरेभरे जवारे उग आएंगे। इस गमले में दो छोटी बास की लकड़िया लगाकर रखे और उसे कपास और रेशमी कपडे के मदतसे सजाये ताकि वो ईसर और गोरादे के प्रतिक बन सके।
सिंजारा
चैत्र शुद्ध द्वितीयाके दिन गणगौर का सिंजारा रहता है। इस दिन बाल धोना और मेहंदी लगाना। गणगौर को भोग लगाने के ले लिए गुड और गेहू के फल आप चाहे तो सिंजारेके दिन बना कर रख सकते है।
पूजा की तैयारी
दिवार पर गोरादे और ईसरजी मतलब पार्वतीजी और शंकरजी, चाँद, सूरज, स्वस्तिक, इत्यादी चीजे निकाले। पूजाके लिए थालीमे हल्दी, कुकू, चावल, मेहंदी, मोली, वस्त्र, काजल, पान, सुपारी, रूपया, कपूर, धुपारती, कच्चा दूध (गायका दूध जो उबाला नहीं हो।) ये चीजे रखले।यथा शक्ति सोलह श्रृंगारका सामान माता को चढ़ा सकते है। दातन मतलब निमकी सोलह छोटी लकडिया बांध कर लेना तथा कवारी कन्याके सोलह फल और विवाहित स्त्री के आठ फल चढ़ाना पड़ता है।
व्रत की विधि
चैत्र शुद्ध तृतीया के दिन गणगौर रहती है। इसी दिन गौरी तृतीया रहती है। इस दिन सबेरे जल्द से जल्द प्रातः विधि पूर्ण करके विवाहिता आठ फल, सुपारी और रूपया लेकर व्रत के पालन का संकल्प ले। इस दिन एक समय खाना खाकर व्रत किया जाता है। विधिवत पूजा करके खाना खाया जाता है।
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